स्कूल में यौन शोषण का शिकार हुई थीं किन्नर एक्टिविस्ट, पढ़ाई में हमेशा रही टॉपर
मुंबई / जयपुर : हम जैसे लोग हिजड़े होते हैं। लेकिन इस शब्द की संकल्पना क्या है? हम जानने की कोशिश नहीं करते। ये
उर्दू शब्द है। जो कि अरेबिक शब्द हिजर से आया है। हिजर यानी अपने समुदाय से छोड़ा
हुआ। यानी स्त्री-पुरुष के समाज से निकलकर एक अलग समाज बनाकर रहने वाला। हिंदू
धर्म के प्राचीन ग्रंथों में किन्नर शब्द की संकल्पना है। अगर शिखंडी नहीं होता तो
महाभारत क्या अंजाम तक पहुंच पाती? ये बातें जयपुर में किन्नर एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण तिवारी ने
कही। लक्ष्मी स्कूल टॉपर थीं, दूसरी
क्लास में ही उन्हें सेक्सुअली अब्यूज का शिकार भी होना पड़ा था।
बचपन में मैं सीधी-सादी थी।
शांत, बेहद भावुक। उस लक्ष्मी से
ट्रांसजेंडर्स के हक की लड़ाई लड़ने वाली इस लक्ष्मी तक का सफर मुंह पर नकाब पहनकर
करती रही। आज भी सोचती हूं कि क्या मैं इस नकाब को उतारकर वो पहली वाली लक्ष्मी बन
सकती हूं। लेकिन मेरा खोया हुआ बचपन नहीं लौट सकता। जो मुझसे छीन लिया गया। गुलजार
के वो अल्फाज याद आते हैं मुझे... ‘ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो। भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी।
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन। वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी...
’
मेरा जीतना उनके हर ताने का जवाब
था
हां, नहीं था मेरा बचपन आम बच्चों जैसा।
लड़का होता है,
लड़की होती है लेकिन इनके बीच
में कुछ मेरे जैसे लोग भी होते हैं। बीमार भी रहती थी। ऐसे में अपने हम उम्र दोस्तों के साथ खेलने का मौका भी
नहीं मिला। और जब स्कूल में गई तो डांस करना बहुत अच्छा लगता था। लेकिन डांस करने के शौक को फेमिनिज्म
की निशानी समझा गया। सहपाठी मुझे यूनक व सिक्सर कहकर बुलाने लगे। कटाक्ष और तीखे
लफ्जों से रोज सामना होता था मेरा लेकिन मैंने खूब पढ़ाई की और हमेशा टॉप किया।
डांस कॉम्पीटिशंस में भी हमेशा अव्वल रही। यही मेरा उनके तानों को जवाब था।
सेक्सुअल अब्यूज सैकंड क्लास से शुरू हो गया था। लेकिन मेरी कहानी दर्द भरी नहीं, ये तो दिवाली और होली जैसे उत्सवी
रंगों से भरी है। हर कोई किसी न किसी उम्र में सेक्सुअली अब्यूज होता है। फिर चाहे
वो शाही खानदान से ताल्लुक रखता हो या आम परिवार से क्योंकि स्कूलों में इनके बारे
में बताया ही नहीं जाता।
जहर देकर मारना चाहते थे
रिश्तेदार
जब भी साड़ी पहनकर बाहर निकलता
था तो लोग पिताजी से कहते थे कि आपका बेटा साड़ी पहनता है। लेकिन वो मुझे कहते थे
जो करना है छिप कर नहीं घर से ही करो। वो उन लोगों से कह देते थे कि लाल साड़ी
पहनी थी क्या,
उसमें वो बहुत अच्छा लगता है? वहीं जब खानदान को पता चला कि हिजड़ा
हूं तो सब एकमत थे कि मुझे जहर देकर मार दिया जाना चाहिए। मेरी मां ने भी मेरा साथ
दिया और मना कर दिया। क्या आज भी परिवार का बेटा हूं मैं।
बड़ी बहन मार्शल आर्ट सीखने
जाती थी और मैं डांस
मैं बचपन से ही जानती थी कि मैं
दूध में घुलने वाली शक्कर बनकर नहीं जीऊंगी बल्कि केसर बनकर रहूंगी। भीड़ में मेरा
अलग वजूद होगा। तभी तो रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार का सबसे बड़ा बेटा होने के बाद
भी अपनी सेक्सुअलिटी को मैंने दिल से अपनाया। 2008 में यूनाइटेड नेशंस में एशिया पेसिफिक के ट्रांसजेंडर्स को
मैंने रिप्रजेंट किया। मुझसे बड़ी मेरी बहन है, जो सबसे लाडली है। फिर मैं और उसके बाद मेरा छोटा भाई। समाज ने भले
ही अलग किया,
क्याेंकि मैं उन जैसा नहीं था।
लेकिन पिता जी हमेशा मेरे साथ खड़े रहते थे। उन्हें तो मैं सुपर हीरो मानती हूं।
क्योंकि उन्होंने तीन जेंडर पैदा किए। बड़ी बहन मार्शल आर्ट सीखने जाती थी और मैं
डांस। मेरा नेचर, मेरा
बोलना, मेरा चलना औरतों जैसा था।
सलमान रुश्दी को कराया लंबा
इंतजार
परिवार का साथ मिला, वहीं राजपीपला राजघराने के मानवेन्द्र सिंह से भी सपोर्ट मिला। वो मेरे धर्म भाई हैं। जब मेरे पापा को कैंसर डिटेक्ट हुआ था उस वक्त भी उन्होंने मेरी बहुत मदद की थी। सलमान रुश्दी अपनी किताब में मेरी कहानी शामिल करना चाहते थे, लेकिन मैं तो लक्ष्मी हूं,मैंने उन्हें बहुत इंतजार करवाया। वो तो वेन्यू पर ठीक टाइम पर पहुंच गए लेकिन मैं दो घंटे बाद उनसे मिलने पहुंची। मैंने किन्नरों के कई पुराने कायदे तोड़े हैं मैं इंटरनेशनली और नेशनली किन्नरों के लिए बहुत काम कर रही हूं। ठाणे में अपने घर पर मुश्किल से 9 दिन रुक पाती हूं। मुझे मालूम है कि हमारी कम्यूनिटी के लिए पॉलिसी बननी चाहिए। मैं इस दिशा में काम भी कर रही हूं। मैंने यूजीसी के सामने प्रस्ताव रखा कि ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग से स्कूल अौर कॉलेज में स्कॉलरशिप के अलावा अलग वॉश रूम होने चाहिए, क्योंकि मैंने बचपन में बहुत कुछ इन वॉशरूम्स में सहा है। मैं अपना बचपन तो नहीं भूल सकती, लेकिन अपने जैसों का फ्यूचर सही कर सकती हूं।