रतन टाटा ने खराब शहरी नियोजन को ठहराया कोरोना के प्रसार के लिए जिम्मेदार, डेवलपर्स पर निकाली भड़ास
मुंबई। कोरोना वायरस संक्रमण का प्रकोप भारत में लगातार फैलता जा रहा है। इनमें से भी इस महामारी का सबसे ज्यादा असर महाराष्ट्र में दिखाई दिया है। कोरोना वायरस के प्रसार के लिए उद्योगपति रतन टाटा ने डेवलपरों और आर्किटेक्टों की तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि डेवलपरन स्लम यानी झुग्गी-बस्तियों के साथ शहर के अवशेष वाला वर्ताव करते हैं। रतन टाटा के अनुसार यह पहलू भी बड़े शहरों में कोरोना महामारी के तेजी से फैलने के कारणों में शामिल है। टाटा के मुताबिक शहरों में झुग्गी बस्तियां उभर आने के लिए बिल्डरों को शर्म आनी चाहिए।
रतन टाटा ने कहा कि अफोर्डेबल हाउसिंग यानी किफायती आवास और झुग्गी उन्मूलन दो अद्भुत विरोधी विषय हैं। हम रहन-सहन की बेहद खराब स्थितियों से स्लम को हटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें दूसरे स्थानों पर फिर से बसाया जा रहा है। एक तो ऐसे इलाके 20-30 मील दूर होते हैं और ऊपर से अपनी जड़ों से उखड़े लोगों के लिए उन दूसरी जगहों पर आजीविका का कोई साधन नहीं है।
एक ऑनलाइन डिस्कशन के दौरान देश के इस शीर्ष उद्यमी ने कहा कि जहां कभी स्लम बस्ती होती थी, वहां जब ऊंची कीमत वाली हाउसिंग यूनिट्स बनती हैं तो यही झुग्गियां विकास के खंडहर में तब्दील हो जाती हैं। बिल्डरों और आर्किटेक्टों ने एक के बाद एक स्लम बना दिए हैं, जहां न तो साफ हवा है, न साफ-सफाई की व्यवस्था और न ही खुला स्थान।
टाटा ने कहा- कोविड के मामले में यही हुआ है कि पहली बार यह सामने आया कि आसपास के इलाके में जो कम कीमत वाला ढांचा बना दिया गया, वही वायरस के प्रसार का कारण बन रहा है। इस महामारी ने स्लम बस्ती द्वारा हर किसी के लिए खड़ी की जाने वाली समस्या को रेखांकित कर दिया है। अगर हमें अपनी उपलब्धियों पर गर्व होता है तो अपनी नाकामियों पर शर्मिंदा भी होना चाहिए। गौरतलब है कि मौजूदा समय महाराष्ट्र में कोरोना वायरस का प्रसार तेजी से बढ़ता जा रहा है और इसमें भी सबसे बड़ा खतरा एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके धारावी में कोरोना का प्रकोप है। धारावी में अब तक 150 से ज्यादा कोरोना के मामले सामने आ चुके हैं और यह संख्या बढ़ सकती है।
आर्किटेक्ट बनना चाहते थे
देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने का दो दशक से ज्यादा समय तक संचालन करने वाले रतन टाटा को इस बात का मलाल है कि वह लंबे समय तक आर्किटेक्ट के रूप में प्रैक्टिस नहीं कर सके। 82 वर्ष के रतन टाटा ने कहा कि भले ही वे आर्किटेक्ट के रूप में काम न कर सके हों, लेकिन बहुत थोड़े वक्त में उन्हें मानवतावाद की वह भावना मिली जो एक आर्किटेक्ट देता है। टाटा ने कहा कि यह क्षेत्र हमेशा मुझे प्रेरित करता रहा, लिहाजा मेरी इसमें रुचि बढ़ती गई। लेकिन मेरे पिता मुझे एक इंजीनियर बनाना चाहते थे। इसलिए मैंने इंजीनियरिंग में दो वर्ष खपा दिए।
फ्यूचर ऑफ डिजाइन एंड कंस्ट्रक्शन पर आयोजित एक ऑनलाइन सेमिनार में रतन टाटा ने अपने शुरुआती दिनों और कॅरियर की चर्चा छेड़ते हुए कहा कि इंजीनियरिंग करने के दौरान ही मुझे पक्का यकीन हो गया कि अपनी रुचि के मुताबिक आर्किटेक्ट बनना ही मेरे लिए सबसे अच्छा है। टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा को 1959 में कार्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में डिग्री मिली। उन्होंने भारत लौटने से पहले लॉस एंजिलिस में एक आर्किटेक्ट के ऑफिस में काम किया।