लैंगिक अपराधों से बालकों को संरक्षण देने के लिये बनाये गये पॉक्सो अधिनियम पर संभागीय कार्यशाला आयोजित की गई
नि:शुल्क विधिक सहायता के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई
उज्जैन | लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम-2012 (पॉक्सो एक्ट) पर स्थानीय विक्रमादित्य होटल में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संभाग स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में संयुक्त संचालक श्री एनएस तोमर ने बताया कि 18 वर्ष से कम आयु के बालकों के साथ लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न और अश्लील साहित्य अपराधों से बालकों को संरक्षण प्रदान करने के लिये पॉक्सो अधिनियम बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत बालकों को मिलने वाले संरक्षण के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना आवश्यक है, जिससे कि ऐसे अपराधों में कमी लाई जा सके। कार्यशाला में उप संचालक महिला सशक्तिकरण श्री राजेश गुप्ता, महिला एवं बाल विकास के जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री गौतम अधिकारी, जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी श्री साबिर अहमद सिद्धिकी एवं जिला विधिक सहायता अधिकारी श्री दिलीपसिंह मुझाल्दा सहित संभाग के श्रम, शिक्षा, पुलिस, विधिक, अनुसूचित जाति, जनजाति विभाग के अधिकारी एवं जिला बाल कल्याण समिति के पदाधिकारी मौजूद थे।
कार्यशाला में जिला विधिक सहायता अधिकारी श्री दिलीपसिंह मुझाल्दा ने बताया कि जिला विधिक प्राधिकरण भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया है तथा यह कमजोर एवं गरीब वर्ग के लोगों, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों, महिलाओं को नि:शुल्क विधिक सहायता प्रदान करने का कार्य करता है। उन्होंने कहा कि विधिक सहायता प्राप्त करने के लिये कोई भी पात्र व्यक्ति 15100 नम्बर पर फोन लगाकर सहायता प्राप्त कर सकता है।
कार्यशाला में उप संचालक महिला सशक्तिकरण श्री राजेश गुप्ता ने बताया कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम-2012 का संक्षिप्त रूप पॉक्सो एक्ट है। इस एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चे, जिनके साथ किसी भी तरह का लैंगिक शोषण हुआ है या करने का प्रयास किया गया है, वे सब इसके दायरे में आते हैं। इस कानून के अन्तर्गत बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, हरासमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान की गई है। यह कानून जहां बच्चे के साथ लैंगिक शोषण की घटना हुई हो या होने की संभावना हो, दोनों ही स्थिति में लागू होता है। उन्होंने बताया कि यह कानून लिंग निरपेक्ष है तथा पॉक्सो कानून के अन्तर्गत आने वाले मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालय में होती है। इस कानून के तहत आरोपी को सिद्ध करना होता है कि उसने अपराध नहीं किया है, पीड़ित को नहीं।
जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी श्री साबिर अहमद सिद्धिकी ने बताया कि पॉक्सो कानून के तहत कोई भी पुलिसकर्मी, टीचर, हॉस्पिटल स्टाफ या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जिसकी देखरेख में बच्चा हो या जिस पर बच्चे को भरोसा हो, अगर वह बच्चे के साथ लैंगिक हमला करता है अथवा दो या उससे ज्यादा लोग मिलकर ऐसी हरकत करते हैं तो ऐसे मामले पर पॉक्सो एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किया जाता है। दोषी करार दिये जाने के बाद मुजरिम को धारा-6 के तहत 10 साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा या जुर्माना हो सकता है। कार्यशाला में बताया गया कि पॉक्सो अधिनियम की धारा-19 के तहत अपराधों की रिपोर्ट कोई भी व्यक्ति जिसे यह आशंका है कि बालकों के विरूद्ध अपराध किये जाने की संभावना है या अपराध किया गया हो, इसकी जानकारी विशेष किशोर पुलिस इकाई, स्थानीय पुलिस को कर सकता है। पुलिस द्वारा रिपोर्ट लिखी जाकर सूचना देने वाले को रिपोर्ट पढ़कर सुनाई जायेगी। बालक के विरूद्ध अपराध की पुष्टि होने पर पुलिस द्वारा बालक को चौबीस घंटे के भीतर चिकित्सालय अथवा संरक्षण दिलवाये जाने की कार्यवाही की जायेगी।