परमात्मा के गुणो से विमुख होना मृत्यु समान-डॉ सक्सेना
उज्जैन। प्रभु की शरण में जाना व उसके गुणों को आत्मसात करना ही जीवन का आधार है ईश्वर के गुणों से विपरीत चलना मृत्यु के समान है।
उक्त विचार आर्य समाज के साप्ताहिक सत्संग मे वैदिक विद्वान डॉ बी. एम. सक्सेना ने व्यक्त किये। इसके पूर्व वैदिक संसार के सम्पादक सुखदेव शर्मा ने कहा कि हमारे पूर्व जन्मों के संचित कर्मों की पुन्जी ही हमारे वर्तमान सुख दुःख का आधार है। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन को सुखी एवं उज्जवल बनाने व मोक्ष मार्ग का पथिक हेतु शुभ कर्मो को करना होगा। देव यज्य के ब्रम्हा पंडित राजेन्द्र व्यास ने वेद मन्त्र की व्याख्या करते हुए कहा कि आज ब्रम्ह शक्ति व क्षात्र शक्ति के समन्वय की आवश्यकता है। ईश प्रार्थना का वाचन डॉ. रामप्रसाद मालाकार ने एवं भजन प्रेमसिंह वर्मा ने प्रस्तुत किये। कार्यक्रम के अन्त मे आर्य परिवार रतलाम के श्यामलाल सोनी के निधन पर श्रद्धांजलि दी गयी। सत्संग का संचालन ललित नागर ने किया। प्रसाद वितरण व शान्ति पाठ के साथ सत्संग समाप्त हुआ।