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बाबा महाकाल की भस्‍माआरती में अब महिलाओं के प्रवेश को लेकर छिड़ी बहस



उज्जैन। ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भस्मारती में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अब एक नई बहस छिड़ गई है। मंदिर से जुड़े संत ने सवाल उठाया है कि जब महिलाएं भस्मारती में भगवान महाकाल को भस्म अर्पित होते नहीं देख सकतीं तो फिर उन्हें इस आरती की अनुमति क्यों जारी की जा रही है। इससे बेहतर है कि महिलाओं को अनुमति न देकर उतनी संख्या में पुरुषों को प्रवेश दिया जाए। महिलाएं शेष चार आरतियों के दर्शन करें। इस बयान के बाद कई प्रतिक्रियाएं सामने आईं।

महाकाल मंदिर में भस्मारती दर्शन के लिए अनुमति की बाध्यता लगातार सुर्खियों में है। हाल ही में नए कलेक्टर शशांक मिश्र ने इसकी समीक्षा और रायशुमारी की बात कही थी। इसके बाद महाकाल मंदिर से जुड़े महानिर्वाणी अखाड़े के परमहंस डॉ. अवधेशपुरी महाराज ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखकर अनुमति की बाध्यता समाप्त करने की मांग की थी। अब डॉ. पुरी ने एक नया बयान दिया है।

उन्होंने कहा है कि मंदिर समिति की अनुमति व्यवस्था में ही विसंगति है। अगर मंदिर की परंपरा अनुसार महिलाएं महाकाल को भस्मी अर्पित करते हुए नहीं देख सकतीं तो फिर उन्हें अनुमति जारी ही क्यों की जा रही है। अगर अनुमति व्यवस्था बरकरार रखनी ही है तो फिर महिलाओं को ऐसी आरती में प्रवेश की अनुमति क्यों दी जा रही, जिसमें उन्हें घूंघट काढ़ना पड़े। बेहतर होगा कि फिर पुरुषों को ही भस्मारती में जाने की अनुमति दी जाए। इस बयान के बाद मंदिर की परंपरा को लेकर बहस खड़ी हो गई है।

पुजारी बोले- यह भस्मारती नहीं, मंगला आरती
महाकाल मंदिर के पं. महेश पुजारी ने कहा कि यह भस्मारती नहीं, बल्कि मंगला आरती है। चूंकि महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा मंगला आरती में महाकाल को भस्म अर्पित की जाती है, इसलिए कालांतर में इसका नाम भस्मारती पड़ गया। अगर महिलाएं भगवान को भस्मी अर्पित होते नहीं देख सकतीं तो अखाड़ा फिर भस्म अर्पित करने की परंपरा समाप्त करे। इसके स्थान पर भगवान को सिर्फ भस्म का तिलक लगाया जाए। इससे परंपरा भी बरकरार रहेगी और महिलाएं भी पूरी आरती देख पाएंगी। मंदिर समिति अगर अनुमति की बाध्यता समाप्त करे तो यह उसका विषय है। हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है।

आखिर क्यों महिलाओं को काढ़ना पड़ता है घूंघट
दरअसल, महाकाल मंदिर में मान्यता है कि जब भगवान को भस्मी अर्पित की जाती है तो वे दिगंबर रूप में होते हैं। उस समय महिलाएं उन्हें नहीं देखतीं। आरती में शामिल महिलाएं घूंघट काढ़ लेती हैं। भस्मी अर्पित होने के बाद घूंघट हटा लेती हैं। इस पर परमहंस डॉ. पुरी ने कहा है कि यह तर्क भी गले नहीं उतरता। क्योंकि आरती के बाद दिन में शेष समय भी कई मर्तबा भगवान दिगंबर रूप में होते हैं। उस समय महिलाएं उनका दर्शन पूजन करती हैं। तब आपत्ति क्यों नहीं ली जाती।

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