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पुलिस की बर्बरता के खिलाफ 12 फरवरी से होगा आमरण अनशन


 
उज्जैन। अनुसूचित जाति की बलात्कृता अवयस्क कन्या और उसके परिवार के राक्षसी दमन के सम्बन्ध में पुलिस बर्बरता और अपहरण तथा दुष्कर्म के आरोपियों के संरक्षण का न्याय पालिका द्वारा भी संज्ञान न लेने के मामले में माननीय मुख्य न्यायाधीश मध्यप्रदेश से तत्काल न्याय तथा कमलनाथ सरकार से असत्य आपराधिक प्रकरण तत्काल वापस लेने और उत्पीड़क पुलिसकर्मियों को दण्डित करने की मांग को लेकर आचार्य सत्यम् ने 12 फरवरी से आमरण अनशन की घोषणा। 
मालव रक्षा अनुष्ठान के संयोजक आचार्य सत्यम् (सत्यनारायण पुरोहित, अधिवक्ता) ने पत्रकार वार्ता में जानकारी दी कि उज्जैन पुलिस की क्राईम ब्रांच ने 15-16 अक्टूबर 2018 को स्थानीय मीडिया को जानकारी देकर सिंधी कॉलोनी उज्जैन निवासी दलित परिवार के तीन श्रमिकों गंगाराम, रामेश्वर तथा टीना को दुर्दान्त तस्कर बताकर उनसे 747 ग्राम चरस तथा 1 देशी पिस्टल मुखबिर की सूचना पर बरामद करने और उन पर सिंहस्थ के पहले से चरस बेचने का संगीन आरोप लगाकर असत्य प्रकरण बनाकर उसका मीडिया में सचित्र व्यापक प्रचार करवाया था। पुलिस थाना नीलगंगा उज्जैन के अपराध क्रमांक 682/18 में इन आरोपियों की गिरफ्तारी सांवराखेड़ी रिंग रोड़ से 14-10-2018 की बताई गई थी, जबकि इन तीनों बेलदार श्रमिकों को 13-10-2018 की संध्या को मजदूरी करके आने के बाद सिंधी कॉलोनी स्थित निवास से मारपीट करके गिरफ्तार किया गया था। मेरे द्वारा 16-10-2018 से निरंतर इस प्रकरण में न्याय प्राप्ति की मांग और सत्याग्रह किए जा रहे हैं, पुलिस महानिरीक्षक तथा पुलिस अधीक्षक उज्जैन से निरंतर हस्तक्षेप की मांग तथा पुलिस अधीक्षक सचिन अतुलकर के 17 एवं 25 अक्टूबर 2018 के प्रकरण की जांच के दो आदेशों तथा सांसद डॉ. सत्यनारायण जटिया (अधिवक्ता) और मुझे तथा अंततः प्रताप मेहता सदस्य बार कौंसिल ऑफ इंडिया के हस्तक्षेप के पश्चात् दिए गए पुलिस अधीक्षक के आश्वासनों के विपरीत कल 7-02-2019 को एन.डी.पी.एस. न्यायालय उज्जैन से पीड़ित निर्दोष दलितों की अंतरिम अस्थाई जमानत का आवेदन भी निरस्त किया गया। आचार्य सत्यम् ने न्याय पालिका की अक्षमता तथा पुलिस द्वारा आरोपियों के परिवार की अवयस्क कन्या कु. कृष्णा के उसके मूल निवास ग्राम नाहरघट्टी, पुलिस थाना डग, जिला झालावाड ़ (राज.) से दिनांक 20-05-2016 को अपहरण तथा दुष्कर्म के पुलिस थाना डग के अपराध क्रमांक 66/16, जिसमें अवयस्क कन्या के पति, ससुर तथा अन्य आरोपी परिजनों के विरूद्ध अपहरण तथा दुष्कर्म संबंधी भारतीय दण्ड विधान की धारा 323, 325,448, 363, 365, 376(2) एन/34 तथा पास्को एक्ट की धारा 5 एवं 6 के अंतर्गत प्रकरण पंजीबद्ध कर किशोर न्याय बोर्ड झालावाड़ तथा सत्र न्यायालय झालावाड़ के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत किए गए, जिसमें अवयस्क कृष्णा के कथन के पश्चात् घटना के चश्मदीद वर्तमान पुलिस नीलगंगा के प्रकरण के आरोपी भाई रामेश्वर पिता बालूलाल सहित उसके माता-पिता देउबाई तथा पिता बालूलाल साक्षी हैं। पिता का हाथ फ्रेक्चर हुआ लेकिन इससे संबंधित दण्ड विधान की धारा का आरोप पुलिस डग ने भी आरोपियों पर नहीं लगाया। कृष्णा के किशोर न्याय बोर्ड झालावाड़ में आरोपियों के विरूद्ध कथन देने के पश्चात् आरोपियों ने भाई रामेश्वर और माता-पिता के न्यायालयों में कथन रोकने के लिए यह आपराधिक प्रकरण बनवाया गया। अधिवक्ता मोहनलाल पाण्डेय के साथ ही आरोपियों के परिवारजनों और उनके नियोक्ता जिसके अधीनस्थ तीनों आरोपी काम करते थे, उसके न्यायालय में प्रस्तुत शपथ-पत्रों के बावजूद चार आवेदनों के उपरान्त भी एन.डी.पी.एस. न्यायालय उज्जैन से जमानत का लाभ न मिलने पर उच्च न्यायालय की इंदौर खण्डपीठ के समक्ष जमानत आवेदन एम.सी.आर.सी. 647/19 प्रस्तुत किया गया। न्यायमूर्ति शैलेन्द्र शुक्ला ने 11-01-2019 को सुनवाई के दौरान मत व्यक्त किया कि जप्त चरस की मात्रा एन.डी.पी.एस. एक्ट के अनुसार निर्धारित व्यावसायिक मात्रा 1 किलो से कम है, इसलिए आरोपियों को जमानत का लाभ दिया जाना चाहिए। इस पर शासकीय अधिवक्ता राकेश माहेश्वरी ने आरोपियों को खतरनाक अपराधी बताते हुए जमानत का विरोध किया। मेरे द्वारा पुलिस के प्रस्तुत चालान के आधार पर केवल आरोपी गंगाराम के विरूद्ध उसकी पत्नि की शिकायत होने और उसके द्वारा भी इस प्रकरण में गंगाराम के पक्ष में शपथ-पत्र प्रस्तुत करने का कहने पर भी शासन को आरोपियों के विरूद्ध अतिरिक्त प्रमाण प्रस्तुत करने का समय देकर 21-01-2019 को सुनवाई की गई। शासकीय अधिवक्ता द्वारा कोई प्रमाण प्रस्तुत करने में विफल रहने पर केवल इस आधार पर जमानत निरस्त की गई कि जप्त चरस की मात्रा 746 ग्राम निर्धारित व्यावसायिक मात्रा 1 किलो के बिलकुल करीब है, इसलिए आरोपियों को जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। 7-02-2019 को इस प्रकरण के निर्दोष दलित आरोपियों तथा उनके परिवार के दलित अवयस्क कन्या कृष्णा को न्याय दिलाने के लिए भी 30 जनवरी से किए जा रहे आमरण अनशन को 06-02-2019 को स्थगित कर एन.डी.पी.एस. न्यायालय उज्जैन में कृष्णा के अपहरण और दुष्कर्म के गंभीर आपराधिक प्रकरण के साक्षी भाई रामेश्वर, उसकी पत्नि तथा बीमार मामा गंगाराम को अंतरिम जमानत पर दो माह के लिए मुक्त करने का आवेदन मेरे शपथ-पत्र के साथ प्रस्तुत किया गया, जो उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में फिर निरस्त किया गया। कमलनाथ सरकार दलित हितैषी होने का दावा करती है। उसने अपने दल तथा अन्य राजनैतिक कार्यकर्ताओं पर पिछले शासनकाल में दर्ज सैंकड़ों प्रकरण वापस लेने का निर्णय लिया है। क्या इस नितांत असत्य एवं गंभीर अपराध के आरोपियों को दण्ड से बचाने के लिए पंजीबद्ध किए गए अपराध जिसके माध्यम से निर्दोष और पीड़ित दलितों को अपने परिवार की मासूम कन्या के अपहरण एवं दुष्कर्म के मामले में न्याय प्राप्ति से वंचित करने के लिए उन्हें झूठा फंसाया गया है तथा बिना किसी पूर्व आपराधिक रेकार्ड के दुर्दान्त अपराधी बताकर तथा झूंठा फंसाकर दण्डित करवाने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रकरण की तत्काल उच्च स्तरीय जांच आदेषित करेगी ? उसके पूर्व पुलिस अधीक्षक तथा इस प्रकरण के विवेचना अधिकारी और चरस जप्त करने वाली पुलिस और क्राइम ब्रांच टीम, जिसने आरोपियों को घर से मारपीट कर गिरफ्तार किया और मीडिया को भी गलत जानकारी निर्दोष आरोपियो को बदनाम करने के लिए सचित्र देने का अपराध किया, उन सभी को तत्काल निलंबित किया जावेगा ? यदि नहीं, तो हम दलितों और मासूम कन्या को न्याय दिलाने हेतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय से न्याय प्राप्ति का विलम्बित मार्ग अपनाने के स्थान पर आमरण अनषन को बाध्य होंगे। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीष रहे न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर ने तुकाराम जोषी विरूद्ध महाराष्ट्र शासन के प्रकरण में आक्षेप किया था कि न केवल महाराष्ट्र शासन अपितु मुम्बई उच्च न्यायालय भी याचिकाकर्ता के साथ न्याय न कर पाने के कारण प्रदेष में नक्सलवाद के विस्तार के लिए जिम्मेदार है। क्या मध्यप्रदेश के मुख्य न्यायाधिपति माननीय श्री एस.के. सेठ जो अपने निष्पक्ष निर्णयों के लिए विख्यात हैं, अपने सहयोगी न्यायमूर्ति शैलेन्द शुक्ला द्वारा की गई वैधानिक त्रुटि का संज्ञान लेकर दलित उत्पीड़न के इस गंभीरतम अपराध का संज्ञान लेकर पीड़ितों को न्याय तथा अपराधियों को दण्डित करवाने का कष्ट करेंगे ? 

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