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उज्जैन के शायर नागौरी ने जश्न ए जम्हूरियत में लिया हिस्सा



उज्जैन। दिल वही दिल है जो तस्वीर ए वतन बन जाए, आंख वो आंख नज़र जिसको तिरंगा आए। जान वो जान है जो जाए वतन की खातिर, सर वही सर है जो सरहद पे कभी कट जाए।
उक्त पंक्तियां उज्जैन से शायर रफीक नागौरी ने मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा रविन्द्र भवन भोपाल में आयोजित मुशायरा जश्न ए जम्हूरियत (गणतंत्र उत्सव) में सुनाई। मुशायरे में उज्जैन से  शायर डॉ. रफीक नागौरी को भी आमंत्रित किया गया था। ‘वो काम कर कि क़ब्र की मिट्टी महक उठे, इक पल में ही नसीब भी तेरा चमक उठे। दे दे जो जान अपने वतन के लिए तो फिर, इक पल में उस शहीद का चेहरा दमक उठे।..... मजबूर हूं रफीक इसी गम से चूर हूं, पैरों की वजह से मैं शहादत से दूर हूं। सरहद पे जा के लड़ना तो बस में नहीं मेरे, फिर भी वतन का अपने सिपाही ज़रूर हूँ। जैसी पंक्तियां सुनाकर डॉ. रफीक नागौरी ने मुशायरे में अपनी देश के लिए मुहब्बत का इज़हार किया।

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