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जैन कुल में जन्म लेने से ही जैनी नहीं बन सकते, जैनत्व जीवन में आना चाहिये


 
उज्जैन। जैनी होने के लिए जैनत्व जीवन में आना चाहिये। मात्र जैन कुल में जन्म लेने से ही हम जैनी नहीं बन सकते। गुरू को देखकर उनके प्रति प्रीति का भाव आता ही है। जैन धर्म में व्यक्ति विशेष की पूजा नहीं है, अपितू उनके गुणों की पूजा की जाती है।
उक्त विचार ऋषि नगर दिगंबर जैन मंदिर में माताजी के सानिध्य में बह रही है ज्ञान की गंगा में जैन दर्शन की परम विदूषी आर्यिका दुर्लभमति माताजी ने सम्यक दर्शन के तीसरे अंग निर्विचिकित्सा अंग पर अपने प्रवचन के दौरान कही। आपने कहा यदि आपको पुण्य प्रबल नहीं है तो पुण्य प्रकृति भी पाप के रूप में आ जाएगी और पुण्य प्रबल है तो पाप प्रकृति पुण्य में बदल जाएगी। पुण्य बांधकर लाए हो तभी जैन कुल में जन्म मिला है। इसका उपयोग पूजा, विधान, देवदर्शन, गुरू चर्चा में सहयोग आदि में करना चाहिये। व्यक्ति को श्रध्दावान, विवेकवान एवं क्रियावान होना चाहिये। आज आप लोग बच्चों को धर्म के प्रति संस्कारिता करने की जगह उनकी स्कूली शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देते हैं। 5-6 साल के छोटे बच्चे स्कूल जाते हैं तो उनके कंधे पर 8-10 किलो का वनज रहता है। मां बाप धर्म की शिक्षा की जगह सांसारिक शिक्षा में अपना धन खर्च करते हैं। नई पीढ़ी के अधिकांश युवा मंदिर भी औपचारिक रूप से जाते हैं। अगर आज उन्हें बचपन में सही शिक्षा नहीं दिला सके तो वे आपके बुढ़ापे की लाठी नहीं बनेंगे। आपने आगे कहा कि साहित्य का जीवन में गहरा प्रभाव पड़ता है। साधु के लिए ध्यान अनुष्ठान है एवं श्रावक के लिए विधान अनुष्ठान है। मीडिया प्रभारी सचिन कासलीवाल ने बताया कि दुर्लभ माताजी संघस्थ १० माताजी सहित श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन सातिशय जिन चौबीसी मंदिर ऋषिनगर में विराजमान हैं। बुधवार को प्रातः 8.30 बजे से आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज की पूजन हुइ्र। तत्पश्चात माता जी द्वारा प्रवचन दिये गये। प्रातः १० बजे के लगभग आहार चर्या तथा दोपहर ३ बजे के लगभग कक्षा हुई। 

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