अधिकांश कन्याएं पढ़-लिखकर खुद को बहुत बड़ा समझने लगी, उनमें विवेक मर्यादा लगभग समाप्त हो गई
उज्जैन। वीतराग भगवान के सम्मुख आना हो तो हनुमान की तरह भक्त बनकर आना चाहिये। मंदिर में शिखर मात्र के दर्शन से अंतरंग भाव गदगद हो जाते हैं। हम सबके जीवन में अहंकार प्रवेश कर गया है, सब का पता याद है, खुद का पता याद नहीं है। अधिकांश कन्याएं ज्यादा पढ़ लिखकर अपने आपको बहुत बड़ा समझने लग जाती हैं उनमें विवेक, मर्यादा जो कि नारी का पहला आभूषण है लगभग समाप्त हो गई है। हमारे विवाह समारोह में बहुत सारी विक्रतियां आ गई हैं। पुराने जमाने के विवाहों में एवं आज के विवाहों में जमीन आसमान का अंतर आ गया है।
उक्त बात आर्यिका १०५ श्री आदर्शमती माता जी की संघस्थ विदुषी १०५ दुर्लभ माताजी संघस्थ १० माताजी ने श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन सातिशय जिन चौबीसी मंदिर ऋषिनगर में कही। मीडिया प्रभारी सचिन कासलीवाल के अनुसार रविवार प्रातः ८.३० बजे आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज का पूजन हुआ तत्पश्चात माता जी द्वारा प्रवचन दिये गये। प्रातः १० बजे के लगभग आहार चर्या, दोपहर ३ बजे के लगभग कक्षा का आयोजन हुआ। दीप प्रज्वलन आर.के जैन ने किया एवं चित्र अनावरण डॉ ऋषभ जैन ने किया एवं मंगलाचरण जिनेन्द्र जैन एवं पाठशाला के बच्चों ने किया।