17 वीं सदी की प्रसिद्ध वेधशाला में, विद्यार्थियों को सिखाएंगे खगोल गणना
उज्जैन । वेद, व्याकरण, संस्कृत व ज्योतिष के अध्ययन-अध्यापन का केंद्र रही उज्जयिनी में खगोल गणना का अपना महत्व रहा है। अब इस ज्ञान को युवाओं तक पहुंचाने के लिए 17 वीं सदी की प्रसिद्ध वेधशाला में तैयारी शुरू हो गई है। इसके लिए वेधशाला प्रबंधन ने एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम तैयार किया है। स्टाफ की नियुक्ति होते ही कोर्स प्रारंभ कर दिया जाएगा।
शासकीय जीवाजी वेधशाला के अधीक्षक राजेंद्रप्रकाश गुप्त ने बताया कि वेधशाला वह स्थान है जहां तारों, ग्रहों, नक्षत्रों आदि को देखने अध्ययन करने, उनकी दूरी व गति जानने तथा वर्तमान मानक समय देखने के उपकरण व यंत्र लगे हुए हैं। यहां सूर्य की रोशनी में समय की गणना व रात्रि के अंधेेरे में एक टेलीस्कोप की मदद से ग्रहों व नक्षत्रों को आसानी से देखा जा सकता है। सालों से लोग वेधशाला में स्थापित यंत्रों को देखने आ रहे हैं। लेकिन अब विद्यार्थी इन यंत्रों को सिर्फ देखेंगे ही नहीं इनसे खगोलीय गणना सीखेंगे भी।
उज्जैन के दक्षिण क्षेत्र में मोक्षदायिनी शिप्रा के तट पर 1719 ईं में जयपुर के शासक महाराजा जयसिंह ने वेधशला का निर्माण कराया था। सिंधिया राजवंश ने सन 1923 में इसका जीर्णोद्धार कराया था। वेधशाला में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, भित्ति यंत्र, दिगंश यंत्र तथा शंकु यंत्र के रूप में पांच प्रमुख यंत्र स्थापित है। इससे सटिक गणना होती है।
पुरान यंत्रों का उपयोग होगा: पाठ्यक्रम शुरू होने के बाद सालों से रखरखाव कर सुरक्षित रखे गए इन यंत्रों का उपयोग हो सकेगा। देश को नए खगोल शास्त्री मिलेंगे। इसी उद्देश्य से इसकी शुरुआत की जा रही है।