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कीटनाशक के उपयोग से जीवांश कृषि भूमि में छह फीट नीचे चले गए



कृषक युवा जागरूकता कार्यशाला में बताए जैविक कृषि से भूमि बंजरता पर रोक लगाने के उपाय
उज्जैन। पंजाब एवं हरियाणा के कृषकों ने अत्यधिक रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के उपयोग से अपनी भूमि की उपजाउ क्षमता पूर्णरूपेण खत्म कर दी है। भारत कृषि विभाग ने तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि इस भूमि पर वर्तमान में यदि उत्पादन लेना है तो पूरी भूमि को खोद कर वापस नई मिट्टी डालना होगी। तभी यह उपजाउ हो सकती है जो कि किसी के लिए भी संभव नहीं है लेकिन मालवा की भूमि में अभी भी जीवांश है लेकिन कीटनाशक के उपयोग से यह भूमि में छह फीट नीचे चले गए हैं। जिन्हें जैविक क्रिया द्वारा पुनः सतह तक वर्तमान में लाया जा सकता है और भूमि की उपजाउ क्षमता वापस हासिल की जा सकती है। लेकिन यदि अब भी नहीं संभले तो पंजाब बनने में देरी नहीं होगी। 
उक्त बात भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ की सहकारी शिक्षा क्षेत्रीय परियोजना द्वारा सेवा सहकारी संस्था मुख्यालय बिछड़ोद में जैविक कृषि भूमि बंजरता पर रोक विषय पर आयोजित युवा जागरूकता कार्यशाला में जैविक कृषि के विषय विशेषज्ञ अखलेश दास ने कही। कार्यशाला के मुख्य अतिथि सेवा सहकारी संस्था बिछड़ोद के पूर्व उपाध्यक्ष अब्दुल हमीद थे। स्वागत भाषण में सहकारी शिक्षा कृषि प्रेरक प्रेमसिंह झाला ने परियोजना द्वारा कृषि के क्षेत्र में किये गये कार्यों का उल्लेख किया। कार्यशाला का आयोजन एवं संचालन प्रभारी परियोजना अधिकारी चंद्रशेखर बैरागी ने किया। 
जैविक खेती से होगी आर्थिक बचत
अखलेश दास ने कहा हमारी कृषि भूमि दिनों दिन सख्त होती जा रही है जिसका मुख्य कारण अधिक मात्रा में अनावश्यक रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक का उपयोग है। यदि हमें अपनी भूमि को संरक्षित एवं उपजाउ रखना है तो हमें परंपरागत तरीकों से भूमि को जीव द्वारा उपजाउ बनाना होगा। इसके लिए हमें कहीं से भी कोई केमीकल या दवाई नहीं लाना है। अपितु हमारे आसपास उपलब्ध सामग्री के उचित मार्गदर्शन में उपयोग करके कम लागत एवं अपनी ही मेहनत से प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान में कृषक अपनी अच्छी उपज के लिए 40 प्रतिशत रसायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक पर खर्च करता है। यदि वह जैविक कृषि करें तो यह 40 प्रतिशत सीधे बचत होगी और किसानों को आर्थिक लाभ होगा। अंत में आभार चंद्रशेखर बैरागी ने माना। 

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