बच्चों का भविष्य संवरे इसलिए 12 किलोमीटर दूर पढ़ाने जाती है गृहिणी, 10 महीनों से निःशुल्क, निःस्वार्थ पढ़ा रही गांव के बच्चों को
उज्जैन। देवासरोड़ स्थित ऋषिनगर में रहने वाली 49 वर्षीय ज्योति जुनेजा शहर से 12 किलोमीटर दूर मक्सी रोड़ स्थित ग्राम करोंदिया में पढ़ाने सिर्फ इसलिए जाती है ताकि उनकी नींव सुदृढ़ हो सके। निःशुल्क, निःस्वार्थ वे अकेली गांव के 42 बच्चों को ऐसी शिक्षा दे रही है जिसे पाने के लिए शहर के बच्चों के अभिभावक हजारों रूपये कोचिंग क्लासेस के नाम पर देते हैं। 10 महीनों में उन्होंने न केवल गांव के बच्चों को पाठ्यक्रम के विषयों का ज्ञान दिया बल्कि उनकी जीवनशैली में भी परिवर्तन ला दिया है। अब ये बच्चे दोपहर 2 बजे मेडम के आने का इंतजार करते हैं।
‘हम जिस समाज में रहते हैं उससे सिर्फ हमें लेना ही नहीं, देना भी तो है।’
केवल यहीं पंक्ति ज्योति जुनेजा स्वयं के द्वारा की जा रही इस सेवा के बारे में कहती हैं। दरअसल ज्योति जुनेजा के पति अशोक जुनेजा एक वर्ष पूर्व करौंदिया गांव में आए थे। यहां उनके एक परिचित का बालक अरूण राजपाल 10वीं में फैल हो गया था। बच्चे की शिकायत भरे लहजे में अरूण के पिता ने अशोक जुनेजा से यह बात कही थी। जुनेजा ने उस बच्चे से कहा जब रोज स्कूल जाते हो तो फैल कैसे हो गया, चल काॅपी बता। अरूण ने काॅपी बताई, जिसमें लिखी हुई इबारत के बारे में अशोक ने पूछा तो वह पढ़ नहीं पाया। उससे पूछा लिखा तुने है तो पढ़ क्यों नहीं पा रहा। अरूण ने जवाब दिया सर ने बोर्ड पर लिखा था मैने काॅपी पर उतार लिया। अरूण को उस समय गांव के बच्चों की स्कूल में दी जा रही शिक्षा के बारे में जानकर दुख हुआ। घर पहुंचकर उन्होंने पत्नी ज्योति जुनेजा को बताया। बस यहीं से ज्योति ने मन में गांव के बच्चों को ऐसा ज्ञान देने की ठानी जो शहर के बच्चों को भी मिलता है। एक-डेढ़ महीने गांव में घर-घर घूमकर बच्चों के अभिभावकों से संपर्क किया और जून 2016 से इन बच्चों को गांव की आंगनवाड़ी के पीछे खाली पड़े ओटले पर एकत्रित कर पढ़ाना शुरू किया। ज्योति की क्लास दोपहर 2 से शाम 6 बजे तक चलती है जिसमें पहली से 10वीं तक के 42 बच्चों को सभी विषय पढ़ाये जाते हैं।
5 दिन क्लास, शनिवार को बाल सभा
गांव में ज्योति जुनेजा की क्लास सोमवार से शुक्रवार तक चलती है। शनिवार को बालसभा का आयोजन होता है जिसमें बच्चों को कबड्डी, खो-खो जैसे खेलों के साथ बच्चे ड्राईंग बनाते हैं, गीत तथा कविताएं सुनाते हैं। ज्योति के अनुसार इस तरह की गतिविधियों से बच्चों का मानसिक विकास होता है और यही कारण है कि बच्चे बिना किसी बड़े कारण के मेरी क्लास एक दिन के लिए भी
नहीं छोड़ते।
पति का साथ, रोज 12 किलोमीटर छोड़ने और लेने आते हैं
ज्योति के पति अशोक जुनेजा भी इस पुण्यशाली काम में उनका सहयोग कर रहे हैं। प्रारंभ से ही अशोक का सहयोग रहा क्योंकि उनका भी मानना था कि गांव के बच्चे पढ़ाई लिखाई में कमजोर रह जाते हैं, उनके पास न किताबें हैं न उनकी सोच पढ़ाई के लिए इतनी विकसित। मां-बाप भी रोज कमाने-खाने की खातिर मजदूरी पर रहते हैं। ऐसे में उन बच्चों का हाथ आगे बढ़ने के लिए कौन
थामेगा। इन बच्चोें की शिक्षा की खातिर अशोक जूनेजा ने भी दोपहर 2 बजे और शाम को 6 बजे का समय इनके नाम कर दिया है। वे कितना भी जरूरी काम हो लेकिन पत्नी ज्योति को दोपहर 2 बजे स्कूल छोड़ना और शाम 6 बजे स्कूल से लाना नहीं भुलते।
जिन्हें हिंदी नहीं आती थी, अब अंग्रेजी बोल रहे
ज्योति जुनेजा की 10 महीनों की मेहनत रंग ले आई है जिन बच्चों को शुरू में हिंदी ठीक ढंग से नहीं आती थी वे अब अंग्रेजी बोल रहे हैं। थैंक्यू का जवाब गांव के बच्चे वेलकम से दे रहे हैं। 4 घंटे में ज्योति हर बच्चे की छोटी से छोटी समस्या को गंभीरता से लेते हुए उसका निराकरण करती है।
गांव की महिलाओं को करेंगी साक्षर
ज्योति जूनेजा के अनुसार वे अब गांव की महिलाओं को साक्षर करेंगी। आने वाले समय में वे शनिवार और रविवार को गांव में आकर महिलाओं को पढ़ाएंगी ताकि वे रहे न रहे इस तरह के स्कूल बंद न हों। ज्योति का कहना है कि यदि हर सक्षम महिला या पुरूष अपने कुछ समय का उपयोग इस तरह के कामों में उपयोग करे तो गांव, देहात के बच्चों को भी वहीं शिक्षा मिल सकेगी जो एक शहर के स्टैंडर्ड स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को।
शादी के 26 साल बाद लांघी घर की दहलीज
ज्योति जैन की शादी लगभग 26 वर्ष पूर्व अशोक जूनेजा से हुई थी। वे पढ़ी लिखी और सफल गृहिणी हैं। उनके दोनों पुत्रों ने इंजीनियरिंग में शिक्षा गृहण की है। उन्होंने जीवन में कभी अपने बच्चों के अलावा किसी को नहीं पढ़ाया और न ही घर के बाहर कोई काम किया। पहली बार उन्होंने गांव के बच्चों को पढ़ाकर सबल बनाने जैसे पुण्यशाली काम के लिए घर की दहलीज लांघी। घर के सारे काम आज भी वे खुद ही करती हैं दोपहर तक सभी काम निपटाकर बच्चों को पढ़ाने गांव जाती है और शाम को गांव से लौटकर पुनः अपने घर के कामों में व्यस्त हो जाती हैं।