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दर्शन के नाम पर श्रद्धालुओं से अवैध वसूली वालों पर गिरी गाज, देर सवेर जागे प्रशासन ने अब लगाई कार्रवाईयों की झड़ी


उज्जैन - अधिकारियों के लिए प्रयोगशाला बना उज्जैन का महाकाल मंदिर इन दिनों लेनदेन के मामलों को लेकर देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसा भी नहीं है कि ये पहली बार हुआ था, इससे पहले भी इस तरह के कई मामले प्रकाश में आए थे। जिस पर मीडिया ने मंदिर समिति के कर्ताधर्ताओं को अलर्ट भी किया था, लेकिन किसी ने इस बात को अधिक तवज्जो नहीं दी। जिसका परिणाम आज इस स्वरूप में सामने आया है। बहरहाल अच्छी बात ये है कि देर-सवेर ही सही, इस मामले में कार्रवाई तो हुई। मंदिर समिति के सहायक प्रशासक द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर के बाद पुलिस ने पहले मंदिर समिति के दो कर्मचारी राकेश श्रीवास्तव और विनोद चौकसे को हिरासत में लेकर पूछताछ की। जिसके बाद गुरूवार को इसी मामले में मंदिर समिति के ही चार और अधिकारी कर्मचारियों पर प्रकरण दर्ज किया गया। साथ ही निजी सुरक्षा कंपनी क्रिस्टल के दो कर्मचारियों को भी इसमें आरोपी बनाया गया है। इस मामले में पुलिस की जांच लगातार जारी है। माना जा रहा है कि जैसे जैसे जांच आगे बढ़ेगी इसमें और भी कई बड़े नाम सामने आ सकते हैं। इधर शासन के निर्देश पर महाकाल मंदिर के प्रशासक गणेश कुमार धाकड़ को फिलहाल प्रशासक के पद से मुक्त कर दिया गया है।
कैसे हुआ खुलासा
दरअसल 19 तारीख को अपने रूटीन दर्शन के लिए कलेक्टर स्वयं महाकाल मंदिर पहुंचे थे। उसी समय उन्हें नंदी हॉल में कुछ श्रद्धालु मिले। जब कलेक्टर ने उनसे जाना कि वे यहां तक कैसे पहुंचे तो पता लगा कि उनके प्रति व्यक्ति ग्यारह सौ रूपए लेकर नंदी हॉल लाया गया है। इस मामले पर मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष होने के नाते कलेक्टर ने मंदिर के अधिकारियों को निर्देश दिए कि ऐसा करने वाले लोगों पर एफआईआर दर्ज करवाई जाए। इसी कार्रवाई के बीच जानकारी लगी कि महाकाल थाने पर मंदिर समिति के ही दो कर्मचारियों से अधिकारी पूछताछ कर रहे हैं। अब ये पूछताछ किस मामले को लेकर की जा रही थी, ये बात पुलिस ने उस समय सार्वजनिक नहीं की। लेकिन रात बीतने के साथ ही पुलिस जांच में पुख्ता सबूत हाथ लगे और मामले का खुलासा हुआ कि मंदिर समिति के दो कर्मचारी राकेश श्रीवास्तव और विनोद चौकसे ने श्रद्धालुओं से दर्शन कराने के नाम पर लाखों के वारे न्यारे कर लिए हैं।
अब आधादर्जन कर्मचारियों पर हुई एफआईआर
20 दिसम्बर को पकड़े गए महाकाल मंदिर समिति के दो कर्मचारी राकेश श्रीवास्तव और विनोद चौकसे ने पुलिस रिमांड के दौरान अपने उन साथियों के नामों का खुलासा किया, जो उनके साथ मिलकर श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति को हर माह लाखों का चूना लगा रहे थे। पुलिस ने ऐसे आधादर्जन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा ने बताया कि महाकाल मंदिर में दर्शन प्रभारी राकेश श्रीवास्तव व सफाई निरीक्षक विनोद चौकसे ने पूछताछ में अपने चार साथियों के नाम का खुलासा किया है। राकेश व विनोद से मिली जानकारी व इनके बैंक खाते और इंटरनेट मीडिया अकांउट वाट्सेप की जांच की गई। जिसके आधार पर मंदिर में भस्म आरती प्रभारी रितेश शर्मा, प्रोटोकाल प्रभारी अभिषेक भार्गव, आईटी सेल प्रभारी राजकुमार व सभामंडप प्रभारी राजेंद्र सिसौदिया के नाम सामने आए। इनके अलावा महाकाल मंदिर की सुरक्षा संभाल रही क्रिस्टल कंपनी के कर्मचारी जितेंद्र परमार व ओमप्रकाश माली को भी आरोपी बनाया है। पुलिस को अनुमान है कि जैसे जैसे जांच आगे बढ़ेगी और कई नाम इसमें जुड़ेंगे।
लंबे समय से सभी कर्मचारी हैं मंदिर में पदस्थ
जिन जिन कर्मचारियों के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का प्रकरण दर्ज किया गया है, ये सभी लंबे समय से एक ही विभाग में रहकर ऐश कर रहे थे। इनमें आईटी सेल प्रमुख के कार्यकाल पर बात की जाए तो ये 10 साल से भी अधिक समय से आईटी प्रभारी की पोस्ट पर जमे हुए थे। जबकि सूत्र बताते हैं कि इन्हें पहले मंदिर में जूता स्टैंड का प्रभार दिया गया था। लेकिन धीरे धीरे इन्होंने आईटी शाखा के प्रभार पर अपना कब्जा जमा लिया। सूत्र बताते हैं कि तगड़ी सेटिंग के चलते इनसे कभी कोई पूछताछ की ही नहीं जाती थी। कुछ समय पहले इन्हें किसी मामले में बर्खस्त भी किया गया था, लेकिन फिर इनके चहेतों ने इन्हें इनका ये पद सौंप दिया। बहरहाल अब पुलिस जांच में ही इस बात का खुलासा होगा कि इन्होंने भगवान महाकाल का कितना माल हड़प किया है। पुलिस को भी जांचना चाहिए कि ये जिस पद पर आसीन थे, वास्तव में ये उस काबिल थे या नहीं।
पुलिस भी करती रही खानापूर्ति
ऐसा नहीं है कि इस तरह के मामलों की जानकारी मंदिर समिति को नहीं थी। लगातार सोशल मीडिया पर इस तरह की खबरें प्रसारित की जा रहीं थी। कुछ मामलों में तो श्रद्धालुओं ने ही थाने जाकर उन कर्मचारियों पर प्रकरण दर्ज करवाया था, जिनके द्वारा उनसे रूपए लिए गए थे या रूपयों की मांग की गई थी। लेकिन महाकाल मंदिर समिति के उदासीन कर्मचारियों ने ऐसे मामलों में ज्यादा रूची नहीं दिखाई। इसलिए पुलिस ने भी खानापूर्ति करते हुए मामलों को रफादफा करने में देरी नहीं की।
ये मामले आए थे प्रकाश में
03 अप्रैल 2024 को भिलाई (छततीसगढ़) के श्रद्धालु तुलेश्वरी साहू ने महाकाल थाने में निजी सुरक्षा कंपनी क्रिस्टल के गार्ड सुनील व पंकज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उन्होंने महाकाल मंदिर में दर्शन के नाम पर 500-500 रूपए लिए।
इसके दो दिन बाद 06 अप्रैल 2024 को ही एक बड़े अखबार समूह ने स्टिंग ऑपरेशन के जरिए इस बात का खुलासा किया था कि महाकाल मंदिर में किस तरह से दलालों की पूरी गैंग सक्रिय है, जो रूपए लेकर बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को दर्शन पूजन करवाती है। इसमें पुलिस कांस्टेबल अजीत, दलाल हर्ष व बृजेश के खिलाफ रिपोर्ट की गई थी। साथ ही ये भी बताया गया था कि इसमें मंदिर के पुरोहित व सहयोगी भी मदद करते हैं, लेकिन इस मामले को आया गया कर दिया गया।
इसी तरह 12 जून 2024 को महाकाल थाने में एक और शिकायत दर्ज करवाई गई। जिसमें बताया गया कि खुद को पुजारी बताकर अर्जुन त्रिवेदी नाम के व्यक्ति ने उत्तर प्रदेश के श्रद्धालुओं के साथ धोखाधड़ी की गई। इस मामले को भी न तो पुलिस ने गंभीरता से लिया और न ही श्री महाकालेश्वर मंदिर समिति ने।
हालही में 19 दिसम्बर 2024 को गुजरात और उत्तर प्रदेश से आए श्रद्धालुओं से मंदिर में दर्शन कराने व भगवान महाकाल को जल चढ़ाने के नाम पर 1100 रूपए प्रति व्यक्ति के मान से 9900 रूपए लिए गए। इस मामले को स्वयं कलेक्टर ने पकड़ा था। इसमें भी पुरोहित प्रतिनिधि राजेश भट्ट, पप्पू उर्फ अजय शर्मा और कुणाल शर्मा के खिलाफ नामजद एफआईआर की गई। लेकिन किन्हीं कारणों के चलते इन्हें भी पुलिस ने छोड़ दिया।
     उपरोक्त सभी मामलों में पुलिस ने न तो किसी के खातों की जांच की और न कभी कोई ठोस कार्रवाई। जिसके चलते न सिर्फ इन लोगों के बल्कि इन्हें देख देख दूसरों के हौसले भी बढ़ते रहे।
मंदिर में आज भी चल रहा सैटिंग का खेल
महाकाल मंदिर को लेकर अगर ये कहा जाए कि पूरे कुएं में भांग घुली है, तो ये अतिशियोक्ति नहीं होगी। महाकाल मंदिर में सामान्य दर्शन हों या फिर किसी आरती में सम्मिलित होना हो, सब कुछ सैटिंग के साथ होता है। मंदिर समिति के कर्मचारियों से लगाकर निजी सुरक्षा कर्मचारी लगभग सभी इस खेल में शरीक होेते हैं। दर्शन के जादूगर इशारों इशारों में ही पूरा खेल खेल जाते हैं और कार्य पूरा होने के बाद सबको अपने अपने हिस्से की राशि मिल जाती है। न तो नीचे वाला कभी ये जानना चाहता है कि सैटिंग कितने में हुई और न ऊपर वाला कभी बताता है कि कितना पैसा आया। सभी के पास अपने अपने सहयोग की राशि प्रसाद के रूप में पहुंच जाती है। विवाद की स्थिति तब बनती है, जब किसी कारण से कोई श्रद्धालु इन दर्शनों के जादूगरों द्वारा तय की गई व्यवस्था का लाभ नहीं उठा पाता।
गर्भ गृह प्रवेश मामले को भी किया अनदेखा
बीते करीब दो साल से महाकाल मंदिर के गर्भगृह में आम श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित है। इसके बाद भी करीब आधादर्जन बार ये नियम तोड़ा जा चुका है। नियम तोड़ने वाले लोग भी सत्ताधारी पार्टी के नेता ही थे। कभी राजनीतिक रसूख तो कभी कहीं और से दबाव। हर बार ऐसे मामले अनदेखी का शिकार हुए। जांच के नाम पर केवल समिति तय की गई और निम्न कर्मचारियों व निजी कंपनी के सुरक्षा कर्मचारियों के निलंबन की कार्रवाई कर मामले को रफादफा कर दिया गया। 
मारपीट करने वालों पर नहीं की गई कार्रवाई
आपको बता दें कि महाकाल की भस्मारती में अनाधिकृत प्रवेश रोकने के लिए 15 नवम्बर से आरएफआईडी बैंड के जरिए प्रवेश की व्यवस्था लागू की गई थी। इसके एक सप्ताह बाद ही 22 नवम्बर 2024 को मंदिर के एक कर्मचारी के साथ मारपीट की गई थी। उस मामले में भी बात को रफादफा कर दिया गया। उस मामले में भी मंदिर समिति ने अपनी ओर से कोई कार्रवाई नहीं की।
सबकी जांच हुई तो खाली हो जाएगा मंदिर
महाकाल मंदिर में दर्शन के नाम पर रूपए की वसूली का ये खेल आज का नहीं है। सालों से मंदिर में ये खेला निरंतर चला आ रहा है। महाकाल लोक बनने के बाद तो जैसे सबकी चांदी हो गई। महाकाल मंदिर की आय बढ़ने के साथ-साथ इन कर्मचारियों ने भी अपनी अवैध आय में भी खासी बढ़ोतरी खुद ही करना शुरू कर दी। लेकिन पाप का घड़ा भरते भरते 20 दिसम्बर को फूट ही गया। तब से लेकर अब तक अमानत में खयानत करने वालों के नाम बढ़ते ही जा रहे हैं। कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर मंदिर के हर एक कर्मचारी की जांच की जाए तो मंदिर से 80 फीसद कर्मचारियों की रवानगी हो जाएगी।
मंदिर में ज्यादातर कर्मचारी सगे संबंधी
दरअसल कुछ साल पहले तक जब मंदिर में कम ही लोग जाते थे और बाहरी श्रद्धालु नहीं आते थे, तब श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के कर्मचारियों को नाम मात्र का ही मानदेय मिलता था। जिसके चलते कम ही लोग यहा नौकरी के इच्छुक हुआ करते थे। लेकिन समय बदलने के साथ साल 2000 के दशक में व्यवस्थाएं बदली और बाहर से आने वाले श्रद्धालु महाकाल मंदिर सहित उज्जैन घूमने आने लगे, तो मंदिर में काम करने वाले कर्मचारियों ने बालेबाले अपने ही सगे संबंधियों को मंदिर में फिट करवा दिया। आज भी यदि ये जांच की जाए तो कोई किसी का चाचा निकलेगा, तो कोई किसी की बुआ। कुलमिलाकर मंदिर में काम करने वालों ने अपने ही लोगों को मंदिर में भर्ती करव दिया।
सुरक्षाकर्मियों के तो इससे भी बुरे हाल
महाकाल मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था संभाल रही सभी कंपनियों में ऐसे कर्मचारियों की भर्ती की गई है, जिनका बातचीत करने का लहज़ा तक ठीक नहीं है। सुरक्षा कंपनी ने कम पैसा देने की नीयत से ग्रामीण क्षेत्र के कई कर्मचारियों की भर्ती कर ली। अब हालात ये हैं कि दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को पता पूछने के लिए भी परेशान होना पड़ता है। आधे समय कर्मचारी उनकी बात नहीं समझ पाते और आधे समय श्रद्धालु। जिसका परिणाम ये होता है कि मंदिर आए लोगों को कई बार बाहर जाने तक का रास्ता नहीं मिलता।

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