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44 साल बाद एक बार फिर हुआ कोतवाली पर हमला - सुरेन्द्र अग्रवाल (वरिष्ठ पत्रकार)


44 साल बाद एक बार फिर हुआ कोतवाली पर हमला 
सुरेन्द्र अग्रवाल (वरिष्ठ पत्रकार)        
    छतरपुर नगर की फिजा में जहर घोलने की साज़िश क्या सोच समझकर रची गई थी? सिटी कोतवाली पर जिस तरह से पत्थर बाजी की गई है, इससे यही साबित होता है।बीच सड़क पर इतनी अधिक मात्रा में पत्थर कहां से आए। बच्चों को जुलूस में सबसे आगे क्यों किया गया। उनके हाथ में चाकू कहां से आए। यह सबसे बड़ा सवाल है? मुस्लिम समाज ने सिटी कोतवाली के घेराव का वही समय क्यों तय किया जब दलित संगठनों द्वारा पूर्व घोषित आंदोलन किया जा रहा था।इन सवालों का जवाब जिला और पुलिस प्रशासन को देना चाहिए।हमारा खुफिया तंत्र क्या कर रहा था।
       आज़ से 44 साल पहले 26 जुलाई 1980 को भी सिटी कोतवाली पर पथराव किया गया था। लेकिन वह मामला एक थानेदार द्वारा किए गए बलात्कार को लेकर जन आक्रोश का नतीजा था। आज़ तो ऐसे कोई हालात नहीं थे। 
     प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक समाज और संगठन को आंदोलन तथा विरोध प्रदर्शन का संवैधानिक अधिकार है। यदि पैगम्बर मुहम्मद साहब के विरुद्ध कोई टिप्पणी की गई थी तो शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करना जायज ठहराया जाता। लेकिन जब शहर में एक आंदोलन पहले से चल रहा है और समूचा प्रशासन कानून व्यवस्था बनाए रखने में जुटा हुआ था,उसी समय मुस्लिम समाज ने सिटी कोतवाली का घेराव क्यों किया।दो घंटे बाद भी विरोध प्रदर्शन किया जा सकता था। क्या यह किसी सोची समझी रणनीति का हिस्सा था? यदि ऐसा नहीं है तो इतनी बड़ी तादाद में पत्थर कहां से आए। बच्चों के हाथों में चाकू किसने थमाए।इन तथ्यों की गंभीरता से जांच के अलावा पत्थर बाजी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।उन चेहरों को बेनकाब किया जाना चाहिए जो शहर की फिजा में जहर घोलने के अपराधी हैं।
         फैसला सुप्रीम कोर्ट का विरोध केंद्र सरकार का
         दलित समाज को भी अपनी मांगों के लिए आंदोलन करने का पूरा अधिकार है लेकिन आंदोलन की जो रणनीति तैयार की गई वह सकल समाज के लिए विभाजनकारी राजनीति का हिस्सा है। आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है उसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती थी लेकिन भारत बंद आंदोलन के नाम पर तथाकथित देश विरोधी ताकतों ने दलितों को गुमराह कर डाला। आंदोलन के नाम पर तोड़फोड़, मारपीट, हमला।ये सब क्या है। इस आंदोलन में शामिल जिन लोगों ने जबरदस्ती दुकानें बंद कराईं, दुकानदारों से दुर्व्यवहार किया, दुकानों में तोड़फोड़ की। ऐसे लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर नुकसान की भरपाई उन्हीं से की जाए ताकि भविष्य में इस प्रकार की दुर्घटनाओं को रोका जा सके।
इसके पहले भी दलित समाज सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ आंदोलन कर चुके हैं।तब भी आंदोलन के नाम पर खुलकर गुंडागर्दी की गई थी। आखिर इस प्रकार की हरकतों से क्या हासिल होगा। सवर्ण समाज से वैमनस्यता की खाई और गहरी होती जाएगी। बहरहाल छतरपुर नगर लगातार तीन घंटे तक दहशत और आतंक के साए में सांसें लेता रहा जो अत्यंत दुखदाई और शर्मनाक है।
       सिटी कोतवाली में किए गए पथराव से घायल हुए टीआई अरविंद कुजूर एवं अन्य पुलिसकर्मियों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना सहित। आज़ इतना ही।

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