पूर्व पुलिस अधिकारी रवि अतरोलिया ने सुनाई 27 वर्षों से चला रहे तिरंगा अभियान की गाथा- कीर्ति राणा।’(वरिष्ठ पत्रकार )
*खाकी भले ही छूट गई, तिरंगे के लिए अभी भी धड़कता रहता है दिल *
•••पूर्व पुलिस अधिकारी रवि अतरोलिया ने सुनाई 27 वर्षों से चला रहे तिरंगा अभियान की गाथा
कीर्ति राणा।’(वरिष्ठ पत्रकार )
इंदौर। जब तिरंगा अभियान 1997 में शुरु किया था तब रवि अतरोलिया मप्र पुलिस में डीएसपी पदस्थ थे।इन 27 सालों में बस यह हुआ है कि अतरोलिया पुलिस सेवा से (2014 में) रिटायर हो गये हैं, तब खाकी में दिल धड़कता था।अब तिरंगे के लिये धड़कते दिल वाले अतरोलिया इसकी गाथा सुनाने वाले प्रामाणिक व्यक्ति हो गए हैं।ये अगस्त महीना उनका बिजी शेड्यूल वाला रहता है।मध्य प्रदेश के साथ अन्य शहरों में भी उन्हें स्कूल, कॉलेज और सामाजिक संगठनों द्वारा आमंत्रित किया जाता है तिरंगे की प्रामाणिक जानकारी देने के लिये। अब तक वो 421 कार्यक्रम में तिरंगे की गाथा सुना चुके है।
इस अभियान की प्रेरणा का श्रेय वो सांसद नवीन जिंदल को देते हैं।हुआ यूं कि तत्कालीन सांसद सुमित्रा महाजन ने (1995 में) समसामयिक केंद्र का गठन किया था।उसी दौरान नवीन जिंदल ने घरों पर तिरंगा फहराने संबंधी केस सुप्रीम कोर्ट से जीता था।ताई ने सांसद जिंदल को आजादी पर्व पर इंदौर आमंत्रित किया था। तब अतरोलिया पुलिस कंट्रोल रूम में इंस्पेक्टर पदस्थ थे।एयरपोर्ट से जिंदल को लाने, छोड़ने और कार्यक्रम में उनके द्वारा तिरंगे के लिये लड़ी कानूनी लड़ाई के किस्से सुनकर अतरोलिया को लगा कि पुलिस सेवा में होते हुए मुझे राष्ट्र ध्वज के संबंध में इतनी जानकारी क्यों नहीं है। बस लगन लग गई, अपने खर्चे पर दिल्ली, पूना, कोलकाता गए वहां से जानकारी जुटाई।देवलालीकर कला वीथिका के छात्रों से तिरंगे की गाथा संबंधी कलरफुल पोस्टर बनवाए।
तिरंगे की पचासवीं सालगिरह 22 जुलाई 1997 को पहला कार्यक्रम किया।
समिति बना कर सब को जिम्मेदारी बांटी
इस कार्यक्रम को व्यवस्थित रूप देने के लिए अतरोलिया ने समिति बना कर पत्रकार तेजकुमार सेन, जफर खान जफर, कार्टूनिस्ट इस्माइल लहरी, शिक्षिका संगीता विनायका, संगीत शिक्षक विमल दुबे, जेआर बड़ोदिया, विद्यार्थी में अपनी दोनों बेटियों मल्लिका और मयूरी को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी।शिक्षिका-पत्नी पुष्पा अतरोलिया पहले दिन से सहयोग करती रहीं हैं।कार्यक्रम के दौरान कोई सदस्य सारे पोस्टर थामे रहता और एक-एक पोस्टर पलट कर अतरोलिया तिरंगे की यात्रा बताते रहते थे।
पुलिस इंस्पेक्टर रहते हुए इस कार्यक्रम को करते रहने पर साथी पुलिसकर्मियों ने सतर्क भी किया कि सर्विस कंडक्ट रूल की अवहेलना का शिकार मत हो जाना।उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर से राय ली तो उन्होंने समझाया तुम्हारा यह काम किसी तरह का उल्लंघन नहीं बल्कि देश सेवा है ।इस अभियान के संरक्षक तत्कालीन आईजी स्वराजपुरी और शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक केके पांडे बने।स्वराज पुरी ने उनके इस कार्य को शासकीय कार्य मानते हुए अवकाश को अधिकृत करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन अतरोलिया ने नामंजूर कर दिया।
एसजीएसआईटीएस में हुए तिरंगा अभियान कार्यक्रम के बाद 2002 में इन्हें संस्थान ने एक कम्यूटर भेंट किया था। सॉफ्टवेयर इंजीनियर आनंद परांजपे ने कार्यक्रम का पीपीटी बनाया।
भारत सरकार तिरंगा दिवस घोषित करें लेकिन सार्वजनिक अवकाश नहीं
सांसद शंकर लालवानी इंदौर में महू नाका से फूटी कोठी तक सबसे लंबा तिरंगा लगा चुके हैं।अतरोलिया के अनुरोध पर सांसद ने शिवराज सिंह को पत्र लिख कर तिरंगा दिवस घोषित करने की मांग भी की।अतरोलिया का कहना है हम भी स्कूली बच्चों के साथ पोस्टकार्ड अभियान चलाकर प्रधानमंत्री मोदी से 27 जुलाई को तिरंगा दिवस घोषित करने की मांग के साथ यह भी अनुरोध कर चुके हैं कि उस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं करें बल्कि संस्थाओं में तिरंगा-देशभक्ति के कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।पता नहीं सरकार की स्वीकृति का हमारा इंतजार कब समाप्त होगा।
अंडमान-निकोबार अब शहीद और स्वराज्य
द्वितीय विश्व युद्ध 30 दिसंबर 1947 को जापान-आजाद हिद फौज ने मिल कर गुलाम भारत का पहला भूखंड अंडमान-निकोबार आजाद कराया था। वहां सुभाष बोस ने चरखे वाला तिरंगा फहराया था और ‘शुभ सुख चैन की वरषा बरसे, भारत भाग्य है जागा’ राष्ट्रीय गीत गाकर इस द्वीप का नाम शहीद और स्वराज रखा था।प्रधानमंत्री मोदी 30 दिसंबर 2018 को यहां गए थे और नामकरण शहीद-स्वराज नाम घोषित किया था।
सबसे बड़ा ध्वज फहराने
में इंदौर नंबर वन
फ्लेग कोड इंडिया 2002 में राष्ट्र ध्वज के नौ आकार मंजूर किए हैं।टेबल पर रखने और वाहन पर लगने वाला से लेकर सबसे बड़े 21 गुणित 14 के आकार को अधिकृत किया है।26 जनवरी 09 से पहले तक इतने बड़े आकार का तिरंगा कहीं नहीं फहराया गया था।इंदौर ने इतिहास रचा और 21 गुणित 14 के आकार वाले झंडे का निर्माण बुरहानपुर से करवाया। बीच का चक्र इंदौर के ही अजय मलमकर ने अपनी तकनीक से स्क्रीन प्रिंटिग से प्रिंट किया।समाजसेवी बाबूलाल बाहेती के नाती की पोलोग्राउंड स्थित फैक्टरी से सौ फीट लंबा मजबूत पाईप बनवाया।तत्कालीन कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव ने रीगल चौराहा स्थान तय किया और तत्कालीन वित्तमंत्री राघव जी ने यह झंडा फहराया था।बाद में कलेक्टर रहे मनीष सिंह, निगमायुक्त प्रतिभा पाल ने 10 से 15 अगस्त तक घर-घर झंडा फहराने का आव्हान किया था और निर्धारित नियमों का उल्लंघन ना हो इस संबंध में अतरोलिया से जानकारी लेकर 20 गुणित 30 इंच की साइज के झंडे रोशनी के साथ सभी घरों पर फहराने का अनुरोध किया था।
पं नेहरू ने तो लाल किले पर 16 अगस्त 47 को फहराया था राष्ट्र ध्वज
अतरोलिया द्वारा जुटाई जानकारी के मुकाबिक देश को 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को मिली आजादी के जश्न के दौरान यूनियन जेक नीचे नहीं उतारा और न ही उस रात तिरंगा लाल किले पर फहराया गया था। सिल्क का वह ध्वज संसद के सेंट्रल हॉल में फहराने के साथ 21 तोपों की सलामी दी गई थी।15 अगस्त को लाल किले पर कोई ध्वजा रोहण नहीं हुआ तो उसका कारण था सत्ता हस्तांतरण की कार्रवाई संबंधी व्यस्तता।पं नेहरू ने 16 अगस्त को प्रात: साढ़े आठ बजे यह कहते हुए लाल किले पर तिरंगा फहराया था कि सुभाष बोस का सपना था लाल किले पर ध्वज फहराया जाये। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु ने एक खादी का और दूसरा सिल्क के कपड़े वाला झंडा संसद की मंजूरी के लिए रखा था।सिल्क के कपड़े वाला झंडा कपड़ा महानिदेशक कार्यालय कानपुर में आज भी सुरक्षित है।
लाल किले से कहां गया तिरंगा
सूर्यास्त के बाद उस ऐतिहासिक झंडे को लाल किले की प्राचीर से किसने उतारा, कहां रख दिया वर्षों तक इसका पता नहीं चला। अतरोलिया बताते हैं तिरंगा अभियान के संबंध में जानकारी जुटाने जब दिल्ली गया तब मैंने भी संबंधित शासकीय कार्यालयों में सभी जगह पूछा कहीं से पुख्ता जानकारी नहीं मिली। अटलजी भी यह झंडा फहराना चाहते थे।यह झंडा दो साल पहले दिल्ली में राजस्थान बटालियन में मिल गया है। यह झंडा था 8 गुणित 12 फीट का।पं नेहरु ने आजाद भारत के राष्ट्र ध्वज के पारित प्रस्ताव और झंडे को 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा में प्रस्तुत किया था जिसे मंजूर करने के बाद यह झंडा देश का सर्वमान्य ध्वज अंगीकार किया गया था।
-डॉ रवि अतरोलिया ने ‘आदतन अपराधियों का समाजशास्त्रीय अध्ययन’ विषय पर क्रिश्चियन कॉलेज से पीएचडी की है।
उनके निदेशक डॉ केपी पोथन (हेड आफ डिपार्टमेंट सोशलॉजी) थे।
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