बेटी की जिद पूरी करने के लिए हाथी खरीदने का मन बना लिया था कवि देवताले ने-कीर्ति राणा (वरिष्ठ पत्रकार )
*बेटी की जिद पूरी करने के लिए हाथी खरीदने का मन बना लिया था कवि देवताले ने *
••••सूत्रधार के ‘कविता कोना’ में देवताले की कविता और उनसे जुड़े प्रसंगों की चर्चा
कीर्ति राणा इंदौर।(वरिष्ठ पत्रकार )
कवि चंद्रकांत देवताले को जानने-समझने वाले इस बात पर शायद ही विश्वास करें कि बेटी से अत्याधिक प्रेम करने वाले देवताले उसकी जिद पूरी करने के लिए हाथी खरीदने का मन बना चुके थे।
बेटी अनुप्रिया को पहले वो सर्कस दिखाने ले गए कि पहले वह हाथी को अच्छे से देख ले। बेटी अनु जब अपनी जिद पर अड़ी रही तो सर्कस खत्म होने के बाद वो मैनेजर के पास पहुंच गए और हाथी के उस बच्चे की कीमत पूछ ली।उसने बताया कि कम से कम साढ़े चार हजार रु तो चुकाने ही होंगे।
सूत्रधार द्वारा प्रेस क्लब में कविता कोना में कवि चंद्रकांत देवताले की कविता पोस्टर के विमोचन के बाद उनकी कविताओं पर हुई चर्चा के दौरान पुत्री अनुप्रिया (जिनकी वॉयलिन वादक के रूप में पहचान है) ने जब पिता के प्रेम को दर्शाने वाला यह प्रसंग सुनाया तो सब को आश्चर्य भी हुआ।उनका कहना था पापा का चाहे तितना मूड खराब रहे यदि कोई पूछ लेता अनु कैसी है तो उनका सारा गुस्सा पानी हो जाता था।
मैंने जब अपना बैंड परिंदे म्यूजिक ऑफ सोल बनाया तो उनसे जिद की इसका सिग्नेचर सॉंग आप को ही लिखना होगा ‘क्या जाने सरहदों को परिंदे हैं हम, परिंदे हैं हम…’ उन्हीं का लिखा हुआ है।
पिता से जुड़े प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कवि देवताले का आत्मकथ्य भी पढ़ा जिसमें उन्होंने लिखा है मुझे नकाबपोश कवि होना कभी नहीं सुहाया… शहर ने मुझे कविता में उछाल कर कहीं का न रखा…आग हर चीज में बताई गई थी…. पर आज आग का पता नहीं चलता…. जब सौ जासूस मरते होंगे तब एक कवि पैदा होता होगा…मेरे बीच कविताओं का कारखाना कभी बंद नहीं होता।उन्होंने देवतालेजी की कविता ‘आवाज भी रस्सी’ है सुनाई।
ललित निबंधकार नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कवि देवताले को याद करते हुए कहा वो यथार्थ और स्वप्न का संगम थे। उनके व्यक्तित्व संघर्ष से हम सब परिचित हैं। उनकी कविताओं में अपने आप को खोजने की तड़प दिखाई देती है। पिता, स्त्री, मां पर उनकी अदभुत कविताए हैँ ।
मां पर मार्मिक कविता है-इस परंपरा में ऐसी कविता और किसी के द्वारा शायद नहीं लिखी गई होगी।उन्होंने शिद्दत और पूरी प्रतिबद्धता के साथ बिना श्रेय की अपेक्षा के सतत लिखा।कवियों की संवेदना का धरातल एक हो सकता है लेकिन बैरागी हों या देवताले जी सबकी प्रतिबद्धता अलग होती है।आज की पीढ़ी में जो असहिष्णुता बढ़ी है ऐसा पहले नहीं था।एक समारोह में जब उनसे नांदी पाठ का आग्रह किया गया तो उन्होंने बेझिझक कहा था मैं नांदी पाठ तो नहीं जानता लेकिन नंदी की पीड़ा क्या होती है यह मैं जानता हूं।एक तरह से वे कबीर थे और समाधि पुरुष के रूप में ही महाप्रसाण किया।
कवि प्रदीप मिश्र का कहना था उन्होंने मुझे पढ़ाया, मेरे गुरु रहे।मैं उन्हें पहले नहीं जानता था 1990 में जब इंदौर आया तो मेरे परिचितों ने कहा अच्छा तुम देवताले के शहर जा रहे हो।मेरे दिमाग पर तो धूमिल, केदारनाथ सिंह, नागार्जुन चढ़े हुए थे।केट में नौकरी के दौरान एक दिन संवाद नगर में आशा कोटिया का मकान ढूंढते गया। उन्होंने कहा देवताले यहीं आगे रहते हैं। उनसे मिलने गया। मेरा इंटरव्यू ही कर लिया, बोले तुम कविता लिखो, मत लिखो लेकिन नौकरी ईमानदारी से करो।समझौता करोगे तो नौकरी ईमानदारी से नहीं कर पाओगे।बीस साल पहले कहते थे प्रदीप बुलडोजर वाला समय आने वाला है।वे ऐसे कवि हैं जो अपनी पहली पुस्तिका से बड़े कवि हो गए।हिंदी कविता के विकास में साठ के बाद तेजी से परिवर्तन हुआ लेकिन देवताले जी इसके बाद के दशक और इक्कीसवीं सदी में भी देवताले जी नजर आते हैं।वे कविता को चैलेंज करते रहे।
प्रदीप कांत ने उनकी एक लंबी कविता ‘बिना किसी तानाशाह की तस्वीर’ सुनाने के साथ ही कहा देवताले जी में गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर था। संस्कृतिकर्मी आलोक वाजपेयी ने ‘शब्दों की पवित्रता के बारे में’कविता सुनाने के साथ ही कहा उनकी कविताएं झकझोरने वाली और ओजपूर्ण हैं।पत्रकार कीर्ति राणा ने कवि रामविलास शर्मा, सिनेमा के विश्वकोष कहे जाने वाले श्रीराम ताम्रकर और देवताले इस तिकड़ी के किस्से सुनाए।पत्रकार जयश्री पिंगले ने कहा मैंने शब्दों की शतरंज खेलते हुए देखा है देवताले जी, शाहिद मिर्जा को।अभिव्यक्ति की संवेदनशीलता, चेतना का स्पंदन, मानवीय स्पर्श उनसे ही सीखा है। सूत्रधार के सत्यनारायण व्यास ने उनकी कविता ‘बच्चे के खो जाने के बाद’ सुनाई।
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