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इन दिनों पर्यटन की धूम है, पूरी दुनिया में घूमने वाले पर्यटकों में भारतीयों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है-डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस.


रविवारीय गपशप 

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                   इन दिनों पर्यटन की धूम है , पूरी दुनिया में घूमने वाले पर्यटकों में भारतीयों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है । हमारे देश के पर्यटन स्थलों में भी अब घूमने के शौक़ीन बढ़ते जा रहे हैं । यदि छुट्टीयों में आपको पहाड़ों पर जाने का आनंद उठाने का ख़्याल आया है , तो आपको वहां ट्रेफिक जाम की तकलीफों से भी दो चार होने के लिए तैयार रहना चाहिए । पहाड़ों की रानी मसूरी में जब भी हम गये इस दुश्वारी का अनुभव हमें देहरादून से मसूरी जाने के बीच में ही हो गया । सच तो ये है कि अब सीजन जैसा कुछ नहीं है , दो-तीन दिन की छुट्टियाँ पड़ीं और आसपास से लोग मसूरी चल पड़ते हैं । मसूरी में ही भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों को गढ़ने वाली अकादमी है , जिसे लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के नाम से जाना जाता है । संयोग से जब भी मुझे अकादमी में जाने का अवसर आया मुझे भी इन सभी परेशानियों से दो-चार होना पड़ा । अकादमी में रहने पर जब भी माल रोड जाने का सोचो तो लायब्रेरी चौक जाने के लिए भी हमें ट्रेफिक की दिक्कत से जूझना पड़ता था । मसूरी के प्रसिद्ध लाइब्रेरी चौक का नाम चौराहे पर स्थित लाइब्रेरी का कारण पड़ा है , इसी से आगे माल रोड है , जहाँ मसूरी आने वाला हर शख़्स शाम को अवश्य आता है । लायब्रेरी चौक से लग के ही “होटल सेवाय” है । मसूरी का ये होटल अपनी पुरातन समृद्धि के साथ साथ अनेक कहानियों के लिए भी मशहूर है । सेवॉय होटल मसूरी में 1902 में खुल गया था , और तब के ज़माने में राजा महाराजाओं के अलावा ब्रिटेन की रानी मेरी ( प्रिंसेस वेल्स ) और प्रसिद्द लेखक पर्ल एस.बक भी यहाँ रुक चुके हैं । सौ वर्षों से भी अधिक पुराने इस होटल में अनेक प्रसिद्द हस्तियां रुक चुकी हैं । इस होटल में आज भी लिफ्ट नहीं है , बस ऊपर जाने के लिए सीढियाँ हैं , जो कहते हैं इसलिए ज्यादा चौड़ी बनायीं गयीं थीं , कि बर्तानिया की महारानी को ऊपर जाते हुए गाउन को सम्हालने में दिक्कत न हो । बहरहाल इनके अलावा तब में मशहूर वकील मोतीलाल नेहरू भी यहाँ रुका करते थे , जिनके बारे में ये दिलचस्प क़िस्सा है कि माल रोड घूमने के लिए वे हर रोज़ जुर्माना भरा करते थे , क्योंकि तब माल रोड के प्रवेश पर ये बोर्ड लगा था कि यदि कोई भारतीय प्रवेश करेगा तो उसे जुर्माना देना पड़ेगा । सेवाय होटल के “बार” में ऐसे अनेक विश्वप्रसिद्ध लेखकों के हस्ताक्षर दीवार पर सुरक्षित हैं जो यहाँ आकर बैठते थे , और उनकी अपनी रचनाओं पर चर्चा हुआ करती थी । रस्किन बॉण्ड अब भी यहाँ बैठे मिल ज़ाया करते हैं । लेकिन इस सब के अलावा सेवॉय होटल के बारे में मसूरी के बाज़ारों में भूतों के क़िस्से भी लोग सुनाया करते हैं । किसी ने तो मुझसे ये कहा कि ए.आर. रहमान भी जब किसी प्रोग्राम के सिलसिले में यहाँ आये थे और खाना खा कर बरामदे में टहल रहे थे तो उन्हें किसी ने हौले से धक्का दिया था , जबकि मुड़ के देखने पर पीछे कोई नहीं था । 

                  एक बार की बात है , तब मैं अकादमी में सेवा के निश्चित अंतराल पर लिया जाने वाला एक कोर्स में भाग लेने मसूरी गया था । सप्ताह के अंत में पड़ने वाली छुट्टियों में हमें अकादमी की बस में बैठा कर धनौलटी और केम्प्टी फ़ॉल की ओर जा रहे थे । हमारी बस लाइब्रेरी चौक पर आकर रुक गई , सामने से कुछ वाहन आ रहे थे , जिनमें बस और कार सभी प्रकार के वाहन थे , सड़क सकरी थी और हमें रास्ता मिलने में देर लग रही थी । तभी बस में बैठे हमारे किसी साथी ने बस में साथ चल रहे व्यवस्थापक से कहा , जो मसूरी की अकादमी का स्थानीय कर्मचारी था , “यार इतनी देर लग रही है , ये रास्ता कितना सँकरा है , दिनों-दिन गाड़ियाँ बढ़ रही हैं , लोग बढ़ रहे हैं , क्यों नहीं आप लोग रास्ते चौड़े करवाते हैं । ये आसपास के मकान हटवायें सबका भला हो जाएगा । उस सामान्य से स्थानीय बंदे ने जो कहा उससे मेरी आँखें खुल गयीं । उसने मुस्कुरा कर कहा , ज़रा आगे शीशे से सिर निकाल कर देखो क्या लिखा है ? हम सब ने खिड़की से सिर निकाला , सामने की इमारत के सामने लगे साइन बोर्ड में लिखा था “मसूरी लायब्रेरी , स्थापित 1843” उसने आगे कहा ये सब यहाँ पहले से हैं , आप बाद में आये हो तो एडजस्ट तो आपको करना चाहिए । हम सभी ने कहा , अपनी धरोहरों को सँवार करने की ये शानदार सोच है , जो हम शहरीकरण की दौड़ में भूलते जा रहे हैं ।

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