19 दिन में 13 पुल पुलियाओं का गिरना क्या कुछ संकेत है ?
डॉ. चन्दर सोनाने
देश का बिहार राज्य अनेक मामले में अजब-गजब है ! राज्य में पिछले माह उसे एक और तमगा मिल गया। पिछले माह 18 जून से 7 जुलाई तक मात्र 19 दिन में 13 पुल-पुलियाएँ ध्वस्त हो गई। इतने कम समय में रिकॉर्ड पुल-पुलियाओं का गिरना क्या देशवासियों को ये संदेश है कि अब भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार हो गया है ! अब गुणवत्ता की बात करना बेकार है। राजनीति, ठेकेदार और अधिकारियों के अपवित्र गठबंधन ने हर तरह के निर्माण में गुणवत्ता की धज्जियाँ उड़ा दी है।
भ्रष्टाचार का उदाहरण केवल बिहार राज्य में ही देखने को आ रहा है, ऐसा नहीं है। उत्तरप्रदेश में श्रीराम मंदिर के भव्य शुभारंभ को एक साल भी नहीं हुआ की पहली बारिश में मंदिर के शिखर से पानी टपकने लगा। यही नहीं राम वन पथ गमन मार्ग को बने भी एक साल भी नहीं हुआ कि वह भी पहली बारिश में ही अनेक जगह से दरकने, टूटने और धँसने लगा। यह भ्रष्टाचार का उत्तरप्रदेश का उदाहरण है। राजनीति, ठेकेदारों और अधिकारियों के भ्रष्ट गठजोड़ ने राम को भी नहीं छोड़ा !
मध्यप्रदेश की बात करें, तो हाल ही में पिछले दिनों शिवपुरी जिले में बनी सड़क भी पहली बारिश में ही जगह-जगह से उखड़ने लगी। अफसर लिपापोती में लग गए। बिहार, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के उदाहरण केवल एक बानगी है। कमोबेश हर राज्य में यही हालत है कहीं कम तो कहीं ज्यादा। चारों ओर भ्रष्टाचार का नंगा तांडव हो रहा है। कोई देखने वाला नहीं है।
जैसा की अक्सर होता है बिहार में 19 दिनों में 13 पुल-पुलियाओं के ध्वस्त होने पर वहाँ की नीतीश सरकार ने 15 इंजीनियरों को संस्पेंड कर दिया। किन्तु ठेकेदारो पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और ना ही किसी तरह की किसी के विरूद्ध कोई एफआईआर दर्ज की गई। बिहारवासियों और गैर बिहारवासियों के मन में डर सा जरूर बैठ गया है। उनके मन में ये लगने लगा है कि बिहार से गुजरना खतरे से खाली नहीं है। न जाने कब कौन सा पुल या पुलिया ध्वस्त हो जाए और उनकी यात्रा अंतिम यात्रा में बदल जाए !
हम केवल बिहार की बात करें तो यह पहली बार नहीं है कि वहाँ पहली बार पुल या पुलिया गिरी या ध्वस्त हुई है। पहले भी राज्य में ऐसी घटनाएँ हो चुकी है। अलबत्ता बिहार में जो पुल गिरे हैं, वो तो बाल्यावस्था से लेकर जवानी में ही दम तोड़ रहे हैं। ऐसी इक्का-दुक्का घटनाएँ पहले भी होती रही हैं, लेकिन पुल ध्वस्तीकरण का यह अटूट सिलसिला राज्य में पिछले माह 18 जून से शुरू हुआ, जहाँ 7 जुलाई तक 13 पुल दम तोड़ चुके थे। टूटने वाली तेरहवीं एक पुलिया है। इस क्रम में गिरने वाला पहला पुल राज्य के अररिया जिले के सिकटी प्रखंड में था। इसके भी पहले इसी साल मार्च के महीने में सुपौल ज़िले में कोसी नदी पर बन रहे पुल का एक हिस्सा गिरा था। इस हादसे में एक मज़दूर की मौत हो गई थी, जबकि 10 अन्य घायल हुए थे। इसी तरह बिहार में पिछले साल गंगा नदी पर बन रहे पुल का एक हिस्सा गिर गया था। यह पुल क़रीब 1 हजार 717 करोड़ की लागत से भागलपुर ज़िले के सुल्तानगंज और खगड़िया ज़िले के अगुवानी नाम की जगह के बीच बन रहा था।
पुल ध्वस्तीकरण की बात करें तो आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2012 से 2022 के बीच 285 पुल ध्वस्त हो गए। इसमें 2022 में गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना पुल टूटने से 141 लोगों की मौत का भीषण हादसा भी शामिल है। पुल-पुलियाओं के टूटने से भ्रष्ट तंत्र को कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है तो आमजन को। वे पुल-पुलिया के टूट जाने पर कैसे जान जोखिम में डालकर उसे पार करते है ये वे ही जानते हैं !
ऐसा ही कब तक चलता रहेगा ? बिहार में 19 दिनों में 13 पुल-पुलियाओं के ध्वस्त होने से क्या यह संकेत नहीं मिलता है कि अब निर्माण कार्यां में गुणवत्ता की बात करना फिजुल है ! पुल-पुलिया हो या सड़क या अन्य कोई भवन निर्माण कार्य सभी में राजनीति, ठेकेदार और अधिकारियों का अटूट गठबंधन है। क्या यह गठबंधन टूटेगा ? कोई इसे तोड़ पायेगा ? या ऐसा ही भ्रष्टाचार का नंगा नाच चलता रहेगा। आज ऐसे ही यक्ष प्रश्न हर किसी के मन में उमड़-घुमड़ रहे हैं।
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