अपना एमपी गज्जब है... यहां जमीन पर पेड़ कटते हैं कागजों पर लगाए जाते हैं.. - अरुण दीक्षित वरिष्ठ पत्रकार
अपना एमपी गज्जब है...
यहां जमीन पर पेड़ कटते हैं
कागजों पर लगाए जाते हैं..
वैसे तो यह हर साल की रिवायत बन गई है!जुलाई का महीना आते आते सूबे की सरकार को हरियाली महोत्सव याद आने लगता है।आम आदमी को इस रिवायत की याद अखबारों में छपने वाले बड़े बड़े विज्ञापन दिलाते हैं।एक दो दिन बड़े बड़े विज्ञापन छापने वाले ये अखबार साल भर जंगल और पेड़ कटने की छिटपुट खबरें छापते रहते हैं।हालांकि पिछले कुछ सालों से ऐसी खबरों की संख्या बहुत बढी है।इसके साथ ही जंगल माफिया और जंगल महकमे के साथ टकराव भी बढ़ा है।इस टकराव में सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों की जाने भी गई हैं!इस पर बात बाद में फिर कभी करेंगे!आज तो बात सिर्फ हरियाली की होगी!
हां तो मैं कह रहा था कि इन दिनों प्रदेश में हरियाली महोत्सव छाया हुआ है। पीएम और सीएम की तस्वीरों के साथ पहले पन्ने पर छपे विज्ञापनों ने बताया है कि आज 6 जुलाई को एमपी में करोड़ों पेड़ लगाए जायेंगे।खुद सीएम राजधानी में एक पेड़ लगाएंगे!हरियाली महोत्सव,जिसे पहले वन महोत्सव भी कहते थे,की महत्ता बताते हुए बड़े वन विशेषज्ञों के बड़े बड़े ज्ञानपूर्ण लेख भी अखबारों में छप रहे हैं।ज्यादातर अदृश्य रहने वाला ई मीडिया तो ऐसे लेखों से भरा पड़ा है।
आगे बढ़ने से पहले एक बात आपको बताता चलूं..मुझे जंगल बहुत अच्छे लगते हैं।तीस साल पहले जब अचानक दिल्ली से भोपाल फेंका गया था तब यह सोचा भी नही था कि यहीं जम जाऊंगा।आने के बाद पहली बारिश में जो प्रदेश के जंगल और पहाड़ देखे तो फिर यहीं का होकर रह गया!अब जायेंगे भी कहां?
बात हरियाली महोत्सव की हो रही है।जहां तक मुझे याद है,एमपी में बीजेपी को सत्ता में लाने वाली,उमा भारती ने यह आदेश दिया था कि प्रदेश के हर नागरिक के नाम एक पेड़ लगाया जाए।इस तरह तब करीब पांच करोड़ लगाने की बात सरकार की ओर से हुई थी।यह भी संयोग है कि जाड़े में (दिसंबर 2003) मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी उमा भारती पेड़ लगाने के मौसम तक उस कुर्सी पर नही रह पाईं।23 अगस्त 2004 को उनकी पार्टी के लोगों ने ही,एक वारंट के बहाने, उनसे कुर्सी वापस ले ली। वे तब से आज तक राजनीति के बियाबान जंगल में भटक ही रही हैं!
उमा के जाने के बाद बाबूलाल गौर गद्दी पर बैठे।यादव कुल में जन्में बाबूलाल ने अपने शासन काल में उमा के पंच "ज" के स्थान पर "गोकुल गांव" को तरजीह दी।उनके लगभग सवा साल के शासन के बाद दिल्ली ने शिवराज सिंह चौहान को एमपी की सूबेदारी सौंपी!उसके बाद जो कुछ हुआ वह अब तक चल रहा है।
जहां तक मुझे याद आ रहा है ,शिवराज सिंह चौहान ने इसे एक सालाना इवेंट बना दिया।पेड़ों की कीमत पर बने कागज पर छपने वाले अखबारों में यह इवेंट छाया रहता था। हर साल यह दावा किया जाता कि सरकार ने करोड़ों (पांच से दस करोड़ तक) पेड़ लगाए हैं।बड़े बड़े आयोजन होते!पूरी दुनियां को यह बताया जाता कि देश में सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाले राज्य में घनघोर हरियाली छाई हुई है।हरियाली की इन खबरों के बीच कुछ अखबारों में कुछ खबरें भी छपती..मसलन पौधे आए ही नही और रोपण हो गया।गड्ढे खुदे नही और पेड़ लग गए!कुछ अफसर तो इतने करामाती थे कि वे कागज पर ही अमेजन का जंगल उगा देते थे!
एक साल तो हरियाली महोत्सव के नाम पर ऐतिहासिक कमाल हुआ!शायद 2017 का साल था।सीएम साहब के दरबारियों ने उन्हें दुनियां में रिकॉर्ड बनाने का सुझाव दिया।साहब ने फौरन ऐलान कर दिया।बताते हैं कि उन दिनों जंगल महकमे के एक आला अफसर की पुत्री रिकॉर्ड दर्ज करने वाली संस्था से जुड़ी थी।उन्होंने रिकॉर्ड का प्रमाण पत्र हासिल करने के नाम पर सरकारी खजाने से मोटी रकम निकाल ली।
पूरे प्रदेश में सघन वृक्षारोपण अभियान चला।चूंकि प्रदेश में इतने पौधे थे नहीं जिनसे रिकॉर्ड बनाया जा सके।इसलिए अफसरों ने उत्तर दक्षिण,पूरब पश्चिम सहित दसों दिशाओं से पौधे आयात किए!
पूरे प्रदेश में गढ्ढे खोदे गए।सीएम और डीएम के साथ उनके प्यादों ने भी जम कर पौधे लगाए।खूब वाहवाही हुई।दावा किया गया कि पौधे लगाने का रिकॉर्ड बन गया है।सीएम और उनके अफसरों ने अलग अलग दावे किए।
लेकिन कुछ घंटे बाद ही इस अभियान की असलियत सामने आने लगी।बीजेपी के ही एक बड़े नेता ने कुछ तस्वीरें सार्वजनिक की।आज वे राज्य सरकार में वरिष्ठ मंत्री हैं।बताया गया कि कागजों पर जहां सघन वृक्षारोपण हुआ था ,वास्तव में वहां एक गड्ढा भी नही खोदा गया था।फिर यह भी पता चला कि दूसरे राज्यों से सिर्फ बिल आए हैं पौधों ने ट्रकों में चढ़ने से ही इंकार कर दिया था।वन विभाग हो यह उद्यान विभाग,सबके अफसरों की पौ बारह हो गई।
दुखद बात यह रही कि जिस रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने के लिए मोटी रकम खर्च की गई थी,उसे चलाने वाली संस्था ने असलियत जानने के बाद प्रमाण पत्र के नाम पर कोरा कागज भी नही दिया।लेकिन उस अफसर से किसी ने कुछ नही कहा!
गहराई से देखें तो ऐसा कमोवेश हर साल ही हुआ है।अगर सरकारी आंकड़ों को सच मान कर हिसाब लगाया जाए तो 19 साल में एक अरब से ज्यादा पौधे प्रदेश में लगाए गए।(कांग्रेस के शासन वाला एक साल मैंने घटा दिया है)।
अब आप सोचिए कि अगर इन पौधों में से यदि आधे भी बचे होते तो आज प्रदेश में कितनी हरियाली होती?चलिए आधे छोड़ देते हैं।ज्यादातर पौधे सर्दी गर्मी नही झेल पाते है,यह मानकर सिर्फ दस प्रतिशत के ही जीवित रहने को व्यवहारिक मान लेते हैं।इस दृष्टि से भी पिछले 19 साल में राज्य में कमसे कम 15 करोड़ पेड़ होने चाहिए थे।
हो सकता है कि सरकारी कागजों में ये पौधे अब दरख़्त बन गए हों!पर जमीन पर कहीं दिखे नहीं।
इस बीच जंगल और पेड़ कटने की खबरें हर रोज आती रही हैं।स्मार्ट सिटी के नाम पर राजधानी भोपाल में ही हजारों पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई है।यह अलग बात है कि सिटी आज तक स्मार्ट नही हुआ है।अफसरों ने बड़े बड़े दावे पुराने पेड़ों को लेकर किए।लेकिन वास्तविकता यह है कि एक भी पेड़ नही बचा।सब खत्म हो गए।इसकी जिम्मेदारी किसी पर नही आई!
उधर शिवराज सिंह चौहान आज भी रोज एक पेड़ लगा रहे हैं।उन्होंने नर्मदा के किनारे भी सघन वृक्षारोपण और बागवानी का अभियान चलाया था।लेकिन वह अभियान से आगे नहीं बढ़ा।ज्यादातर कागज पर ही रहा।
और जंगल..वे तो रोज कट रहे हैं।जंगल माफिया को राजनीतिक संरक्षण है। वन कर्मचारी भी उससे मिले हुए हैं।अगर ऐसा न करें तो क्या करें!क्योंकि उन्हें तो नौकरी करनी है।अब तो उनके विभाग के मुखिया भी सर्वगुण संपन्न हैं।
सरकारी सूत्रों का यह भी कहना है कि पिछले सालों में एमपी में "फॉरेस्ट कवर" बढ़ा है।अब सरकार कह रही है तो फिर सच ही कह रही होगी।क्योंकि जब जमीन पर पेड़ कटते हैं और कागज पर लगाए जाते हैं,तब कागज में फॉरेस्ट कवर बढ़ेगा ही! ऐसे में कागज का लिखा ही सही माना जायेगा!
जहां तक जमीनी हकीकत की बात है,उसे पूरे प्रदेश में नंगी आंखों से देखा जा सकता है!पर देखेगा कौन ?
फिलहाल आप आज करोड़ों पेड़ लगते देखिए!सीएम से लेकर डीएम तक के पेड़ों के साथ मुस्कराते चेहरों पर नजर डालिए!कल अखबार आपको पेड़ों की गिनती बता देंगे! कल्पना कीजिए कि पांच साल बाद आपके आसपास कितनी हरियाली होगी? हां अगर समय मिले तो पिछले साल लगाए गए पौधों को भी देख आइएगा !!!
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