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शिक्षक और पालक में अविश्वास समाज के लिए घातक


 संदीप कुलश्रेष्ठ
                  प्राचीनकाल में जब गुरूकुल व्यवस्था थी, तब गुरू बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार होता था। गुरू बच्चे में अच्छे संस्कार के साथ नैतिक गुणों का भी विकास करता था। तब बच्चे गुरूकुल में रहते हुए शिक्षा ग्रहण के साथ-साथ जीवन का पाठ भी पढ़ते थे। इसमें उसे समस्त कार्य स्वयं के द्वारा करना अनिवार्य होता था। प्रातः उठने से लेकर सोने तक का कार्य बच्चे खुद अपने हाथों से करते थे। कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता था। तब गुरू और पालक में पूर्ण विश्वास होने के कारण बच्चे का सर्वांगीण विकास हो पाता था। आज शिक्षक और पालक में अविश्वास समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। 
सुधारात्मक समझाइश या दंड देना अब हो गया अपराध -
                 कुछ समय पूर्व तक पालक अपने बच्चों के सारे अधिकार शिक्षक को देकर रखते थे। शिक्षक द्वारा बच्चे के अनुचित व्यवहार पर जिस भी प्रकार से उसे समझ आये वैसी समझाइश या दंडित किया जाता था। बच्चे और पालक का उसके प्रति समर्थन भी था। आज स्थिति बदली हुई है। वर्तमान में विद्यार्थी को उसके जीवन में सही दिशा देने के उद्देश्य से उचित समझाइश या दंड देना तो दूर कुछ कहा भी नहीं जा सकता। पहले कभी नहीं देखा गया कि किसी भी गुरू या शिक्षक के प्रति कोई शिकायत का भाव रहता था। आज स्थिति अलग है। और इसका नतीजा यह है कि बच्चे गलती करने के बावजूद उसमें सुधार नहीं होने पर वे अपना जीवन बर्बाद कर देते है। क्योंकि उसे रोकने-टोकने वाला कोई नहीं होता है। इसका खामियाजा उसे जीवन में बाद में भुगतना पड़ता है।
सब शिक्षक खराब नहीं -    
                   यह सच है कि सब शिक्षक अच्छे नहीं होते है। किन्तु यह भी उतना ही सच है कि सब शिक्षक खराब भी नहीं होते है। खराब शिक्षक के कारण अच्छे शिक्षकों पर भी अविश्वास करना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। शिक्षक पर यदि विश्वास किया जायेगा तो वह निश्चित रूप से अच्छी शिक्षा बच्चों को दे पायेगा, जिससे वह अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकेगा। बच्चों की शिक्षण प्रक्रिया में पालकों का सहयोग और समर्थन महत्वपूर्ण होता है।
शिक्षण की बजाय अन्य सुविधाओं पर जोर -
                   पहले स्कूल में अच्छे शिक्षक और अच्छी शिक्षा को ध्यान में रखकर पालक अपने बच्चे को उस स्कूल में प्रवेश दिलाते थे। उनके लिए अच्छी शिक्षा ही सर्वोपरी होती थी। आज शिक्षा पर सर्वोच्च ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यह दुखद है। आज पालक अच्छी शिक्षा की बजाय उस स्कूल में उपलब्ध अन्य सुविधाओं जैसे स्वीमिंग पुल, घुड़सवारी आदि सुविधाएं होने पर वहाँ अपने बच्चे को भेजना पसंद कर रहे है। यह उचित नहीं कहा जा सकता।
                   इसलिए, हमें यह समझने की जरूरत है कि स्कूलों की आधुनिकता और चकाचौंध की बजाय संस्कारों को अधिक महत्व दें। यह समाज के लिए एक समर्थ और संतुलित पीढ़ी के निर्माण में मदद करेगा और बच्चों को व्यापक रूप से तैयार करेगा अपने भविष्य के लिए और यह एक अच्छा शिक्षक ही कर सकता है। 
बच्चों से उसका बचपन छीना जा रहा  -
                    यही नहीं कुछ पालक तो प्राथमिक शिक्षा के लिए भी अपने बच्चों को सुबह 9 से शाम 4 बजे तक स्कूल भेज देते है। इस कारण से बच्चे का बचपन ही उससे छीना जा रहा है। बच्चे वास्तविक माहौल में रहकर खेलते हुए शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जिसमें अनेक पालक अपने बच्चों को प्रतिदिन कई किलोमीटर दूर पढ़ने के लिए भेज रहे हैं। इसके लिए वे प्रतिवर्ष लाखों  रूपए खर्च कर रहे हैं। प्रतिदिन इस प्रकार से कई किलोमीटर दूर भेजने से बच्चों का जीवन सिर्फ बसों में आने - जाने में जा रहा है। पालक यह समझते है हम अपनी जिम्मेदारी पूर्ण कर रहे है पर पालकों को यह समझना होगा के उनके बच्चे का दिनभर स्कूल में रहने के कारण बच्चों से उनका बचपन ही छीना जा रहा है। यह किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता। 
शिक्षक और पालक में हो विश्वास -
                      कुछ खराब शिक्षकों के कारण सभी शिक्षकों को खराब नहीं कहा जा सकता। शिक्षकों के प्रति सम्मान की भावना हर एक पालक में होना जरूरी है। पालक और शिक्षक में परस्पर विश्वास होगा तो ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सकती है। पालक को यह समझना होगा कि समाज को दिशा और बच्चे को भविष्य देने वाले महत्वपूर्ण अंग शिक्षक के प्रति सम्मान और विश्वास नहीं रखा तो वही बच्चे भविष्य में किसका सम्मान करेंगे। शिक्षक और पालकों के बीच विश्वास एक महत्वपूर्ण संबंध है, जो बच्चे के शिक्षा और भविष्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आपका शिक्षकों के प्रति यह विश्वास बच्चे का सर्वांगीण विकास करेगा और वह आगे जाकर वास्तविक जीवन में भी सफल सिद्ध होंगे। 
 
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