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ओम बिरला होने का मतलब, सोने जैसे दिल वाला सामाजिक कार्यकर्ता कैसे बना राष्ट्रीय राजनीति का सितारा -प्रो.संजय द्विवेदी


ओम बिरला होने का मतलब
सोने जैसे दिल वाला सामाजिक कार्यकर्ता कैसे बना राष्ट्रीय राजनीति का सितारा
-प्रो.संजय द्विवेदी
  
  ओम बिरला में ऐसा क्या है जो उन्हें लगातार दूसरी बार लोकसभा के अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी पर पहुंचाता है। अपने कोटा शहर में जरूरतमंद लोगों को कपड़े, दवाएं, भोजन पहुंचाते-पहुंचाते बिरला कब राष्ट्रीय राजनीति के सितारे बन गए, यह एक अद्भुत कहानी है। प्रधानमंत्री ने सदन में उनके द्वारा चलाए जा रहे अनेक सामाजिक कार्यों की चर्चा की। उनकी सरलता,सहजता और सदन चलाने की उनकी क्षमताएं प्रमाणित हैं। अब जब वे ध्वनिमत से लोकसभा के अध्यक्ष चुने जा चुके हैं, तब उन पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी है। यह भी शुभ रहा कि कांग्रेस ने प्रारंभिक चर्चाओं के बाद भी मत विभाजन की मांग नहीं की और उनका चयन सर्वसम्मत से हुआ। इससे संसद की गरिमा बनी और परंपराओं का पालन हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए आने वाले समय में लोकसभा ज्यादा बेहतर तरीके से अपने कामों को अंजाम दे सकेगी।
      श्री बलराम जाखड़ के बाद वे दूसरे ऐसे सांसद हैं, जिन्होंने यह गरिमामय पद दुबारा संभाला है। इस बात को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि नए सांसदों को बिरला से सीखना चाहिए। मोदी ने कहा कि “संसद 140 करोड़ देशवासियों की आशा का केंद्र है। सदन में आचरण और नियमों का पालन जरूरी है। सदन की गरिमा और परंपराओं का पालन अध्यक्ष की बहुत महती जिम्मेदारी है।” उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद में लोकसभा अध्यक्ष के रूप में बिरला जी का यह कार्यकाल उदाहरण बनेगा। जहां गंभीर बहसें होंगी और शासकीय काम के साथ विमर्शों का नया आकाश खुलेगा। 
     राजस्थान के कोटा जिले में 23 नवंबर,1962 को जन्में ओम बिरला का समूचा राजनीतिक और सावर्जनिक जीवन सेवा, समर्पण और उससे उपजी सफलताओं से बना है। भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष के रूप में काम प्रारंभ कर वे राजस्थान में युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 2003, 2008 और 2013 में तीन बार राजस्थान विधानसभा में विधायक निर्वाचित किए गए। 2014 से वे लगातार तीसरी बार लोकसभा पहुंचे हैं। इस तरह वे एक सफल जनप्रतिनिधि के रूप में कोटा के लोगों का दिल जीतते रहे हैं। 17 वीं लोकसभा में अध्यक्ष चुने जाते ही वे राष्ट्रीय फलक पर छा गए। अपने तमाम फैसलों की तरह उस समय नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक विश्वेषकों को चौंकाते हुए बिरला के नाम का प्रस्ताव रखा था। किंतु अपनी सौजन्यता, कुशल सदन संचालन और लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव न होने के बाद भी अकेले वरिष्ठ सांसदों के पैनल के आधार उन्होंने सदन चलाया । उनका सहज अंदाज और हल्की मुस्कान,मीठी डांट से सदन को चलाने का तरीका उन्हें इस बार इस पद का स्वाभाविक उत्तराधिकारी बना चुका था। अब कोटा की स्थानीय राजनीति से राष्ट्रीय फलक पर आए बिरला सदन की उपलब्धि बन चुके हैं।
      बिरला राजनीति में आने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े थे। उनके मन में समाजसेवा की भावना इसी संगठन से उपजी और वे विविध प्रकल्पों के माध्यम से इसी काम में रम गए। उन्होंने अपने क्षेत्र में 2012 में परिधान नाम कल्याणकारी कार्यक्रम प्रारंभ किया, जिसके तहत समाज के कमजोर वर्गों को किताबें और कपड़े वितरित किए जाते थे। इसके साथ ही रक्तदान और मुफ्त दवा वितरण के आयोजनों से वे लोगों के दिलों में उतरते चले गए। फिर उन्होंने मुफ्त भोजन कार्यक्रम भी चलाया। उनका संकल्प था उनके लोग भूखे न सोएं। इस तरह वे बहुत संवेदनशील और बड़े दिलवाले सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता की तरह सामने आते हैं। यह उन हाशिए के लोगों की दुआएं ही थीं कि बिरला आज सत्ता राजनीति के शिखर पर हैं।
   
     भाजपा को एक दल के रूप में इस बार लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं है और उसकी निर्भरता राजग के सहयोगियों पर बढ़ी है। इसी तरह सदन में प्रतिपक्ष ज्यादा ताकतवर हुआ है। तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी की सरकार के सामने अब नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी मौजूद होंगे। मोदी की तीसरी सरकार में नेता प्रतिपक्ष का पद मिलना भी एक बड़ी सूचना है। पिछले दो सदनों में कांग्रेस के इतने सदस्य नहीं थे कि वह नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल कर सके। इससे नेता प्रतिपक्ष अब लोकलेखा समिति के अध्यक्ष भी होंगे और सरकारी खर्चों पर टिप्पणी कर सकेंगें। इस बदले हुए परिदृश्य में सदन में प्रतिपक्ष की आवाज भी प्रखर होगी। राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने अध्यक्ष को धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए सत्ता पक्ष पर अंकुश और प्रतिपक्ष को संरक्षण देने की अपील की। उम्मीद की जानी कि ओम बिरला अपने बड़े दिल से सदन की गरिमा को नई ऊंचाई प्रदान करेंगें। फिलहाल तो उन्हें शुभकामनाएं ही दी जा सकती हैं। 

(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं।)

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