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पर्यावरणविद् सुनील चतुर्वेदी बोले जमीन के अंदर बड़ा मटका भरेगा तो घर के बर्तन रीते नहीं रहेंगे-कीर्ति राणा(वरिष्ठ पत्रकार )


•••पर्यावरणविद् सुनील चतुर्वेदी बोले जमीन के अंदर बड़ा मटका भरेगा तो घर के बर्तन रीते नहीं रहेंगे

कल के लिए पेड़ लगाएं 
आज छत का पानी बचाएं
♦️कीर्ति राणा, इंदौर।(वरिष्ठ पत्रकार )

पेड़ लगाने से भविष्य में हवा-पानी का लाभ मिलेगा, यह कल के हिसाब से ठीक है लेकिन जब चिंता आज की हो तो त्वरित उपाय जरूरी है।आज जिस तरह इंदौर गहराते पेयजल से जूझ रहा है तो पूरे शहर की पहली प्राथमिकता यह हो कि बारिश के पानी को सहेजने के लक्ष्य पर काम हो।अगले पखवाड़े तक मानसून दस्तक देने वाला है। हम सब का प्रयास यह हो कि बारिश का जो पानी छतों पर एकत्र होकर व्यर्थ बह जाता है उसे सीधे जमीन में उतारने के लिए काम करें। इसके साथ ही शहर में खाली पड़े सैकड़ों प्लॉट पर एकत्र होने के बाद व्यर्थ बह जाने वाले पानी को भी उन प्लाटों पर गहरे गड्ढे खोद कर सीधे जमीन में उतारे जाने पर नगर निगम और जिला प्रशासन को योजनाबद्ध तरीके से काम करना चाहिए।
यह कहना है बीते तीन दशक से जल संरक्षण के लिए काम कर रहे सुनील चतुर्वेदी का। जनचेतना से देवास और झाबुआ में जलस्तर सुधार के कार्यों से इन शहरों का जल स्तर इंदौर जैसे शहर की अपेक्षा अधिक बेहतर बना चुके पर्यावरणविद् चतुर्वेदी को भारत सरकार मेदिनी पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है।अभ्यास मंडल की मासिक व्याख्यान माला में
‘जलवायु परिवर्तन के दौर में जल संरक्षण की आवश्यकता एवं महत्व’ विषय पर साधारण शब्दों में अपनी बात समझाने के साथ ही प्रबुद्धजनों के सवालों के जवाब में चतुर्वेदी ने कहा जमीन के नीचे जो मटका है जब वो ठीक से भरने लगेगा तो पानी का संकट स्वत: दूर होता जाएगा। नीति आयोग के मुताबिक देश के 21 महानग पानी के क्राइसेस जोन में हैं।चार दशक पहले इंदौर में हमारे पास वाटर सोर्स कुए, तालाब, बावड़ी थी अब सब पर कॉलोनी कट गई है। इंदौर सौभाग्यशाली है कि नर्मदा हमारे पास है लेकिन यह भी 30-35 साल जिंदा रख सकती है। बारिश बाद नर्मदा में पानी कहां से आएगा। पेड़-वन समाप्त होते जा रहे हैं। अभी प्रति व्यक्ति सौ लीटर पानी मिल रहा है जो 
2030 में घट कर 50 लीटर 2050 में और कम हो जाएगा। 
पृथ्वी की उम्र साढ़े चार अरब साल पर हम जलवायु परिवर्तन पर चिंता कर रहे हैं।चार दशक पहले मालवा में ऐसे गरम नहीं होते थे घर, हाथ का पंखा ही पर्याप्त रहता था। 120 साल में एक डिग्री तापमान बढ़ा है जो सदी के अंत तक 2-3 डिग्री बढ़ सकता है।जलवायु परिवर्तन हर तरह का इनबेलेंस पैदा करता है।25 फीसदी कार्बन डायऑक्साइड का इजाफा हुआ है। पिछले तीन दशक में पानी का संकट बढ़ता जा रहा है। मौसम में बदलाव भी बढ़ा संकट है। जलवायु परिवर्तन में पानी का यह संकट जीवन, और खेती के लिए चुनौतीपूर्ण है।सोचिये आज नौ सौ फीट पर भी पानी नहीं मिल रहा है। 
सौ साल में औसत बारिश तो वही है बस उसका ट्रेंड बदल गया है। बारिश तो होती है पर हमारा मैनेजमेंट ठीक नहीं है। स्पीति में चार इंच बारिश में भी जीवन, खेती है। आज तक बारिश के पानी को सहेजने पर सोचा ही नहीं। हमें पता नहीं कि 1500 वर्गफुट पर बने मकान की छत पर बारिश के महीनों में कितना पानी आता है।डेढ़ लाख लीटर पानी हर छत पर आता है। मुश्किल से बीस हजार लीटर बचा पाते हैं।एक तरफ जल का संकट और दूसरी तरफ बारिश के पानी को सहेजने की चिंता नहीं है। जबकि इस पानी को जमीन में उतार कर जल स्तर बढ़ा सकता है। 1995 में देवास ने भी बैंगलुरु जैसा संकट भोगा लेकिन अब देवास में वो हालात नहीं है देवास में बारिश के पानी को जमीन में उतारने से हालात सकारात्मक हो गए हैं। 

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