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राजीव शर्मा के संस्मरण-वेद विशारद नारद प्रथम लोक संचारक -राजीव शर्मा(वरिष्ठ आईएएस)


वेद विशारद नारद प्रथम लोक संचारक 
उत्कृष्ट जगमगाते हीरे की तरह देवर्षि नारद की प्रतिभा के कई फ़लक हैं.आध्यात्म और संसार दोनों ध्रुवों पर वे अपने शिष्य ध्रुव की तरह दीप्तिमान हैं.आज का भारत उनके व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों का अंश मात्र ही जानता है .पुराणों उपनिषदों संहिताओं रामायण और महाभारत के नारद परम भक्त ,तपस्वी ,शास्त्र वेत्ता ,आचार्य ही नहीं बल्कि देवर्षि हैं.वे इच्छा गामी ,त्रिलोक दर्शी ,निष्पक्ष गुरु और मार्ग दर्शक हैं.उनका मार्ग दर्शन चक्रवर्ती सम्राटों से लेकर साधारण आखेटक तक को उपलब्ध है .उनके जैसा सर्वत्र समादृत लोक संचारक कोई दूसरा नहीं हुआ .लोक कल्याण उनकी गतिविधियों का मूल लक्ष्य था .देवता दानव किन्नर मनुज सब उनकी राह देखते थे और मार्ग पूछते थे .भारतीय मीडिया ने नारद जी को अपना प्रेरणा पुरुष चुनकर ठीक ही किया .वे ब्रह्मा विष्णु महेश के समक्ष भी सत्य बोलने से कभी नहीं चूके .ध्रुव ,प्रह्लाद ,अम्बरीश को संबल दिया .वेदव्यास ,शुक देव ,बाल्मीकि के गुरु नारद जी स्वयं वेद विशारद थे .वे चिरंजीवी हैं.वे रामायण में भी हैं और महाभारत में भी .दस्यु रत्नाकर को उन्होंने महर्षि बाल्मीकि ही नहीं बनाया बल्कि रामायण लिखने को भी प्रेरित किया .
     पौराणिक घटनाओं में वे अनिवार्य पात्र हैं.भृगु कन्या लक्ष्मी का श्री विष्णु से विवाह हो या पुरुरवा उर्वशी पाणिग्रहण वे सूत्रधार हैं.वे महादेव के हाथो जलंधर का संहार कराते है तो कंस को भावी के प्रति सचेत करते हैं.महाभारत में सभा पर्व के पंचम अध्याय में वे कुशल राजनयिक ,तत्व वेत्ता और शास्त्रज्ञ दिखाई देते हैं जो उनकी प्रचलित लोक छवि के उलट है .तथ्य तो यह है कि वे दीन दुखियों दुर्बलों के उद्धारक थे .अंत्यजों का उत्थान उनका स्वभाव और धर्म था .
रामायण और महाभारत जिन्हें त्रेलोक्यगामी त्रिकलदर्शी कवि मानते हैं.स्वयं भगवान श्रीकृष्ण स्वयं को देवर्षियों में नारद बताकर जिनकी भगवत्ता प्रमाणित करते हैं उन्हें हिंदी फ़िल्मकारों की मूढ़ता ने विदूषक या षड्यंत्र कारी विघ्न संतोषी चित्रित करने का पाप किया है .वे प्रथम संवाद दाता ही नहीं प्राचीनतम लोक संचारक भी हैं .लौकिक विद्याओं के साथ साथ ब्रह्मविद्या से विभूषित नारद जी कोरे  सिद्धांतवादी ऋषि नहीं है .दुष्टों के संहार में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है 

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