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ग्वालियर: भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर, बसपा वोट कटवा पार्टी बनकर उभरी-दिनेश निगम ‘त्यागी’(वरिष्ठ पत्रकार )


ग्वालियर: भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर, बसपा वोट कटवा पार्टी बनकर उभरी
- पिछड़े वर्ग की अधिकांश जातियां भाजपा के साथ
- दलित, मुस्लिम कांग्रेस के पक्ष में, क्षत्रिय-ब्राह्मण बंटे
- राजनीितक दांव-पेच के चलते बन बिगड़ रहे समीकरण
* दिनेश निगम ‘त्यागी’(वरिष्ठ पत्रकार )

चंबल- ग्वालियर अंचल की अन्य लोकसभा सीटों की तरह ग्वालियर में भी भाजपा- कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर के आसार हैं। बसपा ने भी  प्रत्याशी कल्याण सिंह कंसाना को मैदान में उतारा है लेकिन वे वोट कटवा साबित होते दिख रहे हैं। भाजपा-कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाहा और प्रवीण पाठक विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। दोनों बड़े चेहरे नहीं हैं लेकिन मतदाता उनसे परिचित हैं। जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, अंचल की तासीर के अनुसार जातीय आधार पर मतदाता लामबंद होता जा रहा है। 
 इस तरह बन-बिगड़ रहे जातीय समीकरण
- भाजपा के प्रत्याशी कुशवाहा पिछड़े वर्ग से हैं, इसलिए इस वर्ग के तहत आने वाली अधिकांश जातियां कुशवाहा, गुर्जर, यादव, लोधी आदि भाजपा के साथ खड़ी दिखाई पड़ती हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रवीण पाठक ब्राह्मण हैं, इसलिए  हमेशा भाजपा के साथ रहने वाला  ब्राह्मण कांग्रेस की तरफ झुका नजर आ रहा है। क्षत्रिय भाजपा के खिलाफ है लेकिन आमतौर पर वह ब्राह्मणों के साथ नहीं जाता। इसलिए ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों दलों के बीच बंटे नजर आ रहे हैं। दलित मतदाता कांग्रेस और बसपा के साथ रहता है, इस बार भी यहीं स्थिति है। हालांकि बसपा प्रत्याशी दलित वर्ग से नहीं हैं, इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। हर बार की तरह इस बार भी मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का समर्थन करता दिख रहा है। साफ है जिस ओर जातीय समर्थन का पलड़ा भारी हो जाएगा, जीत वहां दस्तक देगी। देश, प्रदेश में चूंकि इस समय भाजपा के पक्ष में माहौल ज्यादा है। इसलिए वह बढ़त में दिखाई पड़ रही है।
 पहले कांग्रेस, अब भाजपा का कब्जा
- ग्वालियर में हमेशा जीत-हार के समीकरण बनते बिगड़ते रहे हैं। इस बार भी ऐसा हाेता दिख रहा है। वर्ष 2007 में हुए एक उप चुनाव के बाद ग्वालियर सीट पर भाजपा का कब्जा है। इससे पहले यहां कांग्रेस जीतती रही है। 1998 तक ग्वालियर से सांसद कांग्रेस के स्व माधवराव सिंधिया रहे। 1999 में वे गुना- शिवपुरी सीट से लड़े तब ग्वालियर में भाजपा के जयभान सिंह पवैया ने जीत दर्ज की।  2004 में कांग्रेस के रामसेवक सिंह बाबूजी ने पवैया को हराया। इसके बाद दो बार भाजपा से यशोधरा राजे सिंधिया सांसद रहीं। तब से सीट पर भाजपा का कब्जा है। कोई चार दशक बाद ग्वालियर में कांग्रेस का महापौर जीता है। कांग्रेस विधायकों की तादाद भी कम नहीं है। इस लिहाज से सीट कभी कांग्रेस कभी भाजपा के पक्ष में जाती रही है। इस बार भी मुकाबला कड़ा दिख रहा है।
 किसी भी पक्ष में आ सकता है नतीजा
- ग्वालियर में भाजपा भारी दिखती है लेकिन कड़े मुकाबले में नतीजा किसी भी पक्ष में आ सकता है। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा- कांग्रेस को क्षेत्र की 8 में से 4-4 सीटों में जीत मिली थी। कांग्रेस ने पहली बार नगर निगम में महापौर का चुनाव जीता था। इस लिहाज से भी दोनों दल बराबरी पर दिखते हैं। कांग्रेस के प्रवीण पाठक 2018 में विधानसभा चुनाव जीते थे लेकिन 2023 में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। भाजपा के भारत सिंह कुशवाहा भी विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। दोनों प्रत्याशी समाजों को साधने में ताकत झोंक रहे हैं।
 प्रचार, मुद्दों में भाजपा से पिछड़ी कांग्रेस
- प्रदेश के अन्य लोकसभा क्षेत्रों की तुलना में ग्वालियर में दोनों दलों का प्रचार गति पकड़े दिख रहा है। क्षेत्र में भाजपा के साथ कांग्रेस और बसपा प्रत्याशियों के भी बैनर, पोस्टर देखने को मिल रहे हैं। लेकिन प्रचार और मुद्दों के मामले में भाजपा की तुलना में कांग्रेस पिछड़ती नजर आ रही है। इसकी वजह संसाधन, नेता और कार्यकर्ता हैं। भाजपा के पास इसकी कमी नहीं है। मुद्दों के लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए काम, अयोध्या में राम मंदिर सहित राष्ट्रीय मसलों पर भाजपा मजबूत दिखती है। कांग्रेस के पास न नेता हैं, न कार्यकर्ता और न ही संसाधन। कांग्रेस के घोषणा पत्र में मुद्दे अच्छे हैं  लेकिन उनका प्रचार नहीं हो पा रहा। फिर भी जातीय समीकरणों के कारण कांग्रेस मुकाबले में है।
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