दलबदलू देवाशीष ने बिगाड़ा फूल सिंह का गणित, कड़े मुकाबले में फंसी संध्या-दिनेश निगम ‘त्यागी’वरिष्ठ पत्रकार
दलबदलू देवाशीष ने बिगाड़ा फूल सिंह का गणित, कड़े मुकाबले में फंसी संध्या
- भिंड में किसी दल के पक्ष में एकतरफा माहौल नहीं
- भाजपा-कांग्रेस में टक्कर, बसपा का प्रचार भी तेज
* दिनेश निगम ‘त्यागी’वरिष्ठ पत्रकार
चंबल-ग्वालियर अंचल की मुरैना सीट की तरह भिंड में भी कांग्रेस के बागी ने चुनावी समीकरण प्रभावित कर दिए हैं। मुरैना में कांग्रेस के रमेश गर्ग बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं तो भिंड से कांग्रेस के टिकट पर पिछला लोकसभा चुनाव लड़ चुके देवाशीष जरारिया ने बागी होकर बसपा के हाथी की सवारी की है। दलबदलू देवाशीष के बसपा का प्रत्याशी घोषित हाेने से पहले तक भिंड का चुनाव कांग्रेस के पक्ष में जाता दिख रहा था। पहली वजह भाजपा सांसद संध्या राय की निष्क्रियता से लोग नाराज थे और दूसरा वे पड़ोस के जिले मुरैना से हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह बरैया भिंड जिले से हैं। 4 माह पहले भांडेर से विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीते हैं और उनकी छवि बड़े दलित नेता की है। अचानक देवाशीष की बगावत और बसपा के टिकट पर मैदान में उतरने से कांग्रेस का गणित गड़बड़ाया है। माना जा रहा है कि देवाशीष कांग्रेस का ज्यादा नुकसान करेंगे। बसपा ने प्रचार तेज भी किया है हालांकि तब भी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। भाजपा की संख्या कड़े मुकाबले में फंसी दिख रही हैं।
हार के बाद भी सक्रिय रहे बागी देवाशीष
- कांग्रेेस छोड़कर बसपा से चुनाव लड़ रहे देवाशीष लोकसभा का पिछला चुनाव बड़े अंतर लगभग दो लाख वोटों से हारे थे। लेकिर हार कर वे घर नहीं बैठे थे। क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे। वे पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह के नजदीक हैं। लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट दिया तो उन्होंने बगावत कर दी। गोविंद सिंह ने भ्ाी अपनी पहली प्रतिक्रिया में टिकट वितरण पर नाराजगी व्यक्त की थी। कांग्रेस में लगातार काम करने के कारण वे चुनाव में इस पार्टी को ही नुकसान पहुंचाएंगे। लोगों से बातचीत में भी वे वोट काटने वाले बताए जा रहे हैं। वे मुकाबले में नहीं रहेंगे लेकिन नुकसान कांग्रेस का करेंगे। इसलिए भी क्योंकि वे भी भिंड जिले से हैं, जहां से कांग्रेस प्रत्याशी बरैया हैं।
विधानसभा क्षेत्रों में अलग-अलग स्थिति
- दो जिलों भिंड और दतिया की विधानसभा सीटों को मिला कर बने इस लोकसभा क्षेत्र में कहीं भाजपा मजबूत दिखती है तो कहीं कांग्रेस। दतिया जिले की तीन सीटों में भांडेर से फूल सिंह खुद विधायक हैं इसलिए यहां कांग्रेस बढ़त में दिखती है। दतिया में कांग्रेस ने नरोत्तम मिश्रा जैसे दिग्गज को हराया था, इसलिए यहां भी पार्टी कमजोर नहीं है। सेवढ़ा में मुकाबला बराबरी का बताया जाता है। भिंड जिले की पांच विधानसभा सीटों में से तीन भाजपा और दो कांग्रेस के पास हैं। लेकिन कांग्रेस के फूल सिंह और बसपा के देवाशीष यहां के रहने वाले हैं। भाजपा के अपने तीन विधायक हैं ही। ऐसी स्थिति में तीनाें दलों को इस जिले में अच्छे वोट मिल सकते हैं पर मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच ही होना तय है।
क्षत्रिय भाजपा से नाराज, ब्राह्मण-वैश्य का समर्थन
- भिंड क्षेत्र के जातीय समीकरणों पर नजर डालने से पता चलता है कि यहां दलित, पिछड़े, क्षत्रिय, ब्राह्मण और वैश्य वर्ग के मतदाताओं का बोलबाला है। दलित मतदाताओं का ज्यादा हिस्सा कांग्रेस और बसपा के साथ दिखाई पड़ता है। क्षत्रिय भाजपा से नाराज हैं। भिंड जिले में इनकी तादाद ज्यादा है। इनका झुकाव कांग्रेस की ओर है। ब्राह्मण और वैश्य के साथ पिछड़े वर्ग की ज्यादा जातियां भाजपा के साथ दिखाई पड़ती हैं। कांग्रेस के फूल सिंह बरैया पहले बसपा के प्रदेश प्रमुख हुआ करते थे। उन्होंने अपना अलग दल बनाकर भी दलितों के बीच ज्यादा काम किया है। हालांकि उनके कई बयान विवादास्पद रहे हैं। इसकी वजह से ब्राह्मण समाज बरैया को पसंद नहीं करता। चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी और हेमंत कटारे समाज का कितना वोट बरैया को दिला पाते हैं। यह देखने लायक होगा।
कई नेता सक्रिय, कई का रुख साफ नहीं
- भिंड लोकसभा सीट में कड़ी टक्कर के बीच कांग्रेस- भाजपा नेताओं की सक्रियता को लेकर भी चर्चा चलने लगी है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह पहले प्रत्याशी चयन को लेकर नाराज थे लेकिन अब सक्रिय नजर आ रहे हैं। फूल सिंह बरैया की नैया पार लगाने की जवाबदारी उनके कंधों पर ही है। उन्होंने ऐलान कर दिया है कि विधानसभा में हार का बदला इस चुनाव में लेंगे। चौधरी राकेश सिंह भी प्रचार में जुटे दिखते हैं। अटेर में अच्छे अंतर से जीते हेमंत कटारे भिंड की बजाय बाहर ज्यादा दिखाई पड़ते हैं। दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव मे भाजपा से बसपा मे गए डॉ रामलखन सिंह वापस भाजपा मे आ गए हैं। भाजपा से बागी होकर बसपा से विधानसभा चुनाव लड़े रसाल सिंह ने भी बसपा छोड़ दी है। हालाकि रसाल सिंह और एक अन्य बागी मुन्ना सिंह भदौरिया का रुख अब तक साफ नही है। ये किसी का प्रचार करते नजर नहीं आ रहे हैं।
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