स्मृति शेष - प्रो पी डी शर्मा मृत्यु से चंद मिनट पहले तक ग़ज़ल रचते रहे- डॉ. देवेन्द्र जोशी
स्मृति शेष - प्रो पी डी शर्मा
मृत्यु से चंद मिनट पहले तक ग़ज़ल रचते रहे
डॉ. देवेन्द्र जोशी
सेवानिवृत्ति प्राध्यापक और सुप्रतिष्ठत गजलकार प्रो पी डी शर्मा मुसाफिर का सोमवार 15 अप्रैल को रात्रि 9:30 बजे आकस्मिक निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने मोबाइल पर बताया कि प्रोफेसर शर्मा को साइलेंट अटैक आया जिसकी वजह से वे सोए के सोए ही रह गए । अगले दिन महानंदा नगर स्थित उनके निजी निवास से निकली अंतिम यात्रा में परिजनों और ईष्ट मित्रों ने भाग लेकर दिवंगत प्रोफेसर शर्मा को अंतिम विदाई दी। पेशे से भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक प्रोफेसर पहलाद शर्मा भौतिक शास्त्र, अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र, राजनीति विज्ञान में एम ए आयुर्वेद रत्न,साहित्य रत्न होने के साथ ही विधि स्नातक भी थे। उनकी यह शिक्षा विविधता और अनुभव गहराई रचनाओं में भी देखने को मिलती है। वे गजल के अलावा व्यंग्य आलेख और छंद मुक्त कविताएं भी लिखते थे । वे गीतांजलि साहित्य संस्था के संस्थापक थे और गजलांजलि तथा शब्द प्रवाह से भी जुड़े रहे।
उनके रचना संसार की अगर बात करें तो गीत , गजल , कविता, शायरी एक ऐसा जुनून है जो व्यक्ति को नित्य कुछ नया सोचने और रचने के लिए प्रेरित करता है। जब व्यक्ति के पास थोडी फुर्सत और समय की अनुकूलता हो तो इससे अच्छा शगल दूसरा नहीं हो सकता। सर्जक की विधा गजल हो तो वह अपने भीतर एक अलग ही दुनिया बसा कर संसार के तमाम झंझटों से दूर उसमें आठों पहर विचरण करने लगता है। यहां तक कि अपने आस - पास घटित होने वाली घटनाओं , क्रिया - प्रतिक्रिया और जीवन के सहज वैचारिक आरोह - अवरोह के लिए भी उसकी अभिव्यक्ति का जरिया गजल के ये मिसरे ही बन जाते हैं।
ऐसा ही कुछ महसूस होता है प्रो पी डी शर्मा की रचनाओं को पढ़ते हुए।
शायर को इस बात का पहले से ही अहसास है कि सृजन कर्म एक ऐसी गहराई है जिसकी थाह आज तक कोई नहीं पा सका है। तभी तो वे अपने पूर्ववर्ती संकलन में लिखते हैं कि -'सीखना सतत प्रक्रिया है।आदमी पैदा होने से लेकर कब्रगाह तक सीखता रहता है बशर्ते दिमाग के खिडकी दरवाजे खुले रखे। जिस दिन उसने सोच लिया उसे आता है, उसे मालूम है वहीं सीखना रूक जाएगा।'
पेशे से एप्लाइड फिजिक्स के प्राध्यापक रहे प्रो शर्मा सेवानिवृत्ति के बाद पूरी तरह गजलकारी को समर्पित हैं। एक विद्यार्थी या अध्येता की भांति अंतिम दम तक प्रतिदिन टेबल पर बैठकर 4 से 6 घंटे गजल की साधना करने वाले शर्मा जी इतना लिखते हैं तो स्वाभाविक है कि गजलों के लिए उमडने - घुमडने वाले विचारों का क्रम उनके भीतर चौबिसों घंटे जारी रहता होगा। वे प्रति वर्ष दो गजल संग्रह के बराबर ग़ज़लें रच देते थे। अपनी मृत्यु से कुछ क्षण पहले भी वे एक नयी नज़्म लिख कर निवृत्त हुए थे । किसे पता था कि यही उनकी अंतिम रचना होगी।
विज्ञान के प्राध्यापक होकर गजलों के प्रति उनका यह लगाव उनके अंदर के सर्जक से रूबरू कराता है। इससे पहले उनके संयोजन में 'गजलांजलि विशेषांक' शीर्षक से एक संकलन प्रकाशित हो चुका है जिसमें उनके समूह के कवि शायरों की रचनाएं परिचय के साथ प्रकाशित की गई है। इनमें धनीराम बादल, आशीष श्रीवास्तव 'अश्क' सदानन्द यादव, श्रीकृष्ण जोशी, डाॅ इसरार मोहम्मद खान, जगदीशोन्द्र पण्डया पीडी शर्मा, एस डी खोडे, गेंदालाल पण्डया , भरत व्यास , अश्विनी कुमार बल्ली और डाॅ सुभाचन्द्र गुरूदेव की रचनाएं शामिल है। 'मुसाफिर' चूंकि उनका उपनाम है इसलिए अपनी किताबों को वे 'मुसाफिरनामा' शीर्षक से प्रकाशित करवाते रहे। इस श्रंखला में वे अब तक अस्तित्व, सरोकार, खुशबू, मौसम,आज और कल तथा गुजारिश आदि पुस्तकों की रचना कर चुके हैं।
संकलन जज्बात की अगर बात करें तो 90 पृष्ठों की इस पुस्तक में 87 गजलें प्रकाशित हैं। सभी गजलें विचारों की सपाट बयानी है। बिना किसी आडम्बर के साफगोई के साथ उन्होंने बात कही है। गजल का एक शब्द पकडा तो उससे मिलते - जुलते जज्बात सहज ही मिसरे बनकर गजल की शक्ल में ढलते गए। गजल के जानकारों की नजरों में ये रचनाएं भले ही बहुत सादा हो लेकिन आम पाठक की दृष्टि से उतनी ही सरल - तरल है जितनी गजल के पढने वाले के लिए होनी चाहिए। इस सादगी को बयान करती उनके संग्रह जज्बात की एक गजल -
मोहब्बत का इकरार।
जीना करता दुश्वार।।
न उल्फत,न मोहब्बत।
जीना हुआ दुश्वार।।
लेकर, करोगे क्या।
दिन घायल लाचार।।
अंधे कुए में कैद।
इंसानियत की हार।।
हवा है, जमी हुई।
दरख्त भी बेकरार।।
दिल में खुशी नहीं।
गमों का इंतजार।
रास्तों में हैं सांप।
'मुसाफिर'सफर दुश्वार।।
संग्रह 'अहसास' में 88 गजलें प्रकाशित है। लेखक की कलम से में शर्मा जी लिखते हैं -' मेरी कोशिश रहती है कि बात बेबाकी से की जाए। हिन्दी उर्दू के चक्कर में न पडा जाए। दिल की गहराई से बात निकले और दिल की गहराईयों तक पहुंचे। जिन्दगी में होने वाले हादसाद, वाक्यात को आसान और साफ जबान में नये अंदाज और तराशे हुए शेरों में रखा जाए।'
अहसास हो या जज्बात प्रो शर्मा की गजलों का मूल स्वर प्रायः एक ही है। वे अंतर्मन के भावों को निर्मलता के साथ अभिव्यक्त करते हैं। एक शब्द को पकडकर वे इतना सहजता से उससे मिलते - जुलते शब्दों को रचना में पिरोकर कब एक मुकम्मल गजल की रचना पूरी कर देते हैं पता ही नहीं चलता। कहने को ये गजलें हैं लेकिन हिन्दी उर्दू और देशज भाषा के अनुकूल शब्द सम्मिश्रण के कारण ये रचनाएं गीत कविता और दोहे का आनन्द देने से भी गुरेज नहीं करती। गंभीर और गहरी बात को बहुत सरल और सादगीपूर्ण तरीके से कहना वाला शायर इतनी खामोशी से रुखसत हो जाएगा तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था।उन्हें उन्हीं के शब्दों में अलविदा कहना हो तो शायद ये पंक्तियां मुफीद रहेगी-
छूट जाती पीछे न जाने कौन-कौन सी यादें ।
जीवन ने प्रतिक्षण नया फूल गुलशन ने खिलाया है ।।
जो दिखता है वो तो नश्वर है कहते पीर-फकीर ।
फिर तुझको क्यों लगता 'मुसाफिर' जो है काया है ।।