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छिंदवाड़ा: प्रत्याशी को लेकर भाजपा में असंतोष, नकुलनाथ की स्थिति भी पहले जैसी नहीं- दिनेश निगम ‘त्यागी’(वरिष्ठ पत्रकार


छिंदवाड़ा: प्रत्याशी को लेकर भाजपा में असंतोष, नकुलनाथ की स्थिति भी पहले जैसी नहीं
* दिनेश निगम ‘त्यागी’(वरिष्ठ पत्रकार
)
लोकसभा चुनाव में इस बार प्रदेश की हॉट सीट छिंदवाड़ा पर सबकी नजर है। कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में सिर्फ यह एक सीट जीती थी। भाजपा इसे छीन कर प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने के दावे को सच करने की कोशिश में है। चुनाव प्रबंधन और माहौल बनाने में दक्ष प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को यहां का प्रभारी बनाया गया है। छिंदवाड़ा कांग्रेस का गढ़ है। कमलनाथ विपरीत परिस्थिति में भी  यहां से जीतने का माद्दा रखते हैं। कांग्रेस ने उनके सांसद बेटे नकुलनाथ को फिर मैदान में उतारा है जबकि भाजपा की ओर से विधानसभा के दो चुनाव हार चुके बंटी विवेक साहू प्रत्याशी हैं। भाजपा- कांग्रेस की स्थिति इस मायने में लगभग एक जैसी है कि भाजपा में जाने को लेकर चले प्ररकण के कारण कमलनाथ-नकुलनाथ की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। समर्थक ही उनका साथ छोड़ रहे हैं। दूसरी तरफ बंटी साहू को लगातार तीसरी बार प्रत्याशी बनाने से भाजपा के अंदर भी असंतोष है। लिहाजा, बदले राजनीतिक हालात में छिंदवाड़ा में भाजपा- कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
विधानसभा की सभी सातों सीटें जीती कांग्रेस
- लगभग चार माह पहले विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में बंपर जीत दर्ज की लेकिन छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वालीं सभी 7 विधानसभा सीटें कांग्रेस के खाते में गईं। कमलनाथ ने बंटी साहू को 37,536 वोटों से हरा कर यहां सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी। सभी सीटों में जीत के अंतर को जोड़ें तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लोकसभा क्षेत्र में 97 हजार 646 वोटों की बढ़त मिली है। भाजपा के सामने इस अंतर को कवर कर आगे बढ़ना बड़ी चुनौती है। नकुलनाथ का टिकट पहले ही फायनल हो चुका है। उन्होंने अपना प्रचार अभियान भी प्रारंभ कर रखा है। कमलनाथ के असर के कारण उनकी जीत की संभावना व्यक्त की जा रही है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर के चलते इस बार यह इतना आसान भी नहीं है।
 पटवा से सिर्फ एक उप चुनाव हारे थे कमलनाथ
- कमलनाथ ने छिंदवाड़ा से पहला चुनाव 1980 में लड़ा था। तब से अब तक वे और उनका परिवार लगातार जीतते आ रहे हैं। 1997 का सिर्फ एक उप चुनाव ऐसा था जब भाजपा के वरिष्ठ नेता स्व सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को 37,680 वोटों के अंतर से हरा दिया था। 1996 में कमलनाथ की पत्नी श्रीमती अलकानाथ लोकसभा का चुनाव जीती थीं। हवाला मामले में नाम आने के कारण कमलनाथ को  टिकट नहीं मिला था। इस मामले में क्लीनचिट मिलने के बाद 1997 में कमलनाथ ने अलकानाथ का इस्तीफा दिला दिया था। इसके बाद हुए उप चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।  कमलनाथ ने 1998 में हुए अगले ही चुनाव में सुंदरलाल पटवा से हार का बदला ले लिया था और उन्हें  डेढ़ लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर से हरा दिया था। 2019 में जब कांग्रेस प्रदेश की 29 में से 28 सीटें हार गई थी तब भी कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ यहां से जीतने में सफल रहे थे। उन्होंने भाजपा के नत्थन शाह को 37 हजार 536 वोटों के अंतर से हराया था। छिंदवाड़ा को प्रदेश में कांग्रेेस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है।
 भाजपा को इस बार इसलिए जीत का भरोसा
- भाजपा को इस बार छिंदवाड़ा में जीत का भरोसा है। इसके कई कारण है। पहला यह कि कमलनाथ और नकुलनाथ के भाजपा में जाने को लेकर लंबा एपीसोड चला। राजनीतिक हल्कों में खबर है कि डील पक्की न होने के कारण इनका भाजपा में प्रवेश रुक गया। इससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। दूसरा, पिछले चुनाव में नकुलनाथ 37 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से ही जीते थे जबकि तब उनके पिता कमलनाथ मुख्यमंत्री थे और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। इस लिहाज से यह जीत  बड़ी नहीं थी। इस बार न तो कमलनाथ मुख्यमंत्री हैं और न ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार। इसके विपरीत अयोध्या में राम मंिदर के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रियता के शिखर पर हैं। कांग्रेस में पार्टी छोड़ने की होड़ के कारण भी हालत खराब है। भाजपा  व्यवस्थित चुनाव लड़ने की आदी है। ऐसे में मुकबला कड़ा होगा और नतीजा कुछ भी आ सकता है।
भाजपा में प्रत्याशी बंटी ही कमजोर कड़ी
- छिंदवाड़ा में भाजपा की कमजोर कड़ी उसके प्रत्याशी बंटी विवेक साहू ही है। वे पहले कमलनाथ से उप चुनाव हारे थे और इसेक बाद विधानसभा का मुख्य चुनाव भी उनसे हार गए। तीसरी बार फिर उन्हें लोकसभा प्रत्याशी बना दिया गया । इसे लेकर भाजपा के अंदर असंतोष है। छिंदवाड़ा में कई दावेदार थे। वे हैरान इसलिए हैं कि उनकी समझ में नहीं आ रहा कि  लगातार हार रहे बंटी साहू को ही हर बार मौका क्यों दिया जा रहा है। एक दावेदार शेषराव यादव को असंतोष दूर करने के लिए ही जिला भाजपा का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया है। भाजपा के कई नेताओं ने बातचीत में प्रत्याशी को लेकर शिकायती लहजे में बात की। उनका कहना है कि कमलनाथ से जुड़े लोग भाजपा में आ रहे हैं, इसका नुकसान भी पार्टी को हो सकता है। कुछ कहते हैं कि यह कमलनाथ की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। इस तरह दोनों तरफ असंतोष है तो पक्ष में कई कारण थी। इसीलिए मुकाबला रोचक और कड़ा हो सकता है।

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