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ग्राउंड रिपोट: अलग अंदाज में दिखेगा बुंदेलखंड की सागर लोकसभा सीट का चुनाव- दिनेश निगम ‘त्यागी’(वरिष्ठ पत्रकार)


ग्राउंड रिपोट: अलग अंदाज में दिखेगा बुंदेलखंड की सागर लोकसभा सीट का चुनाव
- गुड्डू को करना पड़ रही कांग्रेसियों की मान-मनौव्वल
- लता को हो सकता क्षत्रियों की नाराजगी से नुकसान
* दिनेश निगम ‘त्यागी’(
वरिष्ठ पत्रकार)
भाजपा का गढ़ बन चुकी बुंदेलखंड अंचल की सागर लोकसभा सीट का चुनाव इस बार अलग अंदाज में देखने को मिलेगा। वजह है कांग्रेस प्रत्याशी का प्रदेश की सीमा से सटे उप्र के ललितपुर के दबंग परिवार से होना। जी हां, कांग्रेस ने चर्चित बुंदेला परिवार के चंद्रशेखर उर्फ गुड्डू राजा बुंदेला को प्रत्याशी बनाया है। गुड्डू ने विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेेस ज्वाइन की थी। इधर भाजपा की ओर से राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष लता वानखेड़े मैदान में हैं। पलड़ा भाजपा का ही भारी है, पार्टी प्रत्याशी को संगठन और सरकार दोनों की मदद मिल रही है। फिर भी बुंदेला परिवार के मैदान में होने से मुकाबला दिलचस्प हो चला है, हालांकि गुड्डू राजा को कांग्रेस नेताओं की मान-मनौव्वल करना पड़ रही है। हर चुनाव की तरह सागर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा जीत भले जाए लेकिन मुकाबला रोचक होगा।
 इसलिए बन सकते हैं कड़े मुकाबले के आसार
- यह सच है कि सागर में सांगठनिक दृष्ट से भाजपा बहुत मजबूत है। भाजपा नेतृत्व ने अपने विधायकों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि जिस प्रकार उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा, उसी तरह और उतनी ही ताकत से अपने अपने-अपने क्षेत्रों में लोकसभा का चुनाव लड़ें। बावजूद इसके कांग्रेस प्रत्याशी गुड्डू राजा कड़ी टक्कर दे सकते हैं। भाजपा ने सांसद राज बहादुर सिंंह का टिकट काट कर लता वानखेड़े को प्रत्याशी बनाया है। इससे क्षेत्र के क्षत्रियों में नाराजगी है। सागर क्षेत्र में क्षत्रिय मतदाताओं की तादाद निर्णायक लगभग 2 लाख के आसपास है। इसके अलावा कांग्रेस को परंपरागत अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं मुस्लिमों का वोट भी काफी तादाद में मिलता है। गुड्डू राजा हैं भले बाहरी लेकिन उनका ललितपुर से सटे एक बड़े इलाके में खासा असर है। यहां वे क्षत्रियों के अलावा अन्य समाजों के वाेट भी काफी मात्रा में ले सकते हैं। वे उप्र में बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। इस नाते बसपा से जुड़ा मतदाता भी उनके संपर्क में है। इसलिए भाजपा भले गुड्डू के बाहरी होने को अपने लिए ‘सोने पे सोहागा’ मान रही है लेकिन उसके लिए राह इतनी आसान भी नहीं है।
 चार चुनाव से भाजपा काट रही सांसद का टिकट
- वर्ष 1991 के चुनाव को छोड़ दें, जब कांग्रेस के आनंद अहिरवार चुनाव जीते थे, उसके बाद से सीट पर भाजपा का ही कब्जा है। वर्ष 2004 तक यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित रही, तब तक भाजपा के वीरेंद्र कुमार चुनाव जीतते रहे। 2008 के परिसीमन के बाद सागर सीट सामान्य हो गई। इसके बाद भाजपा से पहली बार 2009 में भूपेंद्र सिंह,  दूसरी बार 2014 में लक्ष्मीनारायण यादव और तीसरी बार 2019 में राज बहादुर सिंह  चुनाव जीते और सांसद बने। अब 2024 में भाजपा की ओर से लता वानखेड़े मैदान में हैं। इससे पता चलता है कि सीट के सामान्य होने के बाद भाजपा ने हर बार अपने सांसद का टिकट काट कर नया प्रत्याशी मैदान में उतारा। पार्टी को इसका फायदा भी मिला।
 बाहरी बनाम क्षेत्रीय बन रहा मुद्दा
- प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तरह सागर में भी राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय मुद्दे चर्चा में हैं, इसके साथ भाजपा बाहरी बनाम क्षेत्रीय का मुद्दा भी उछाल रही है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस किस तरह उप्र के दबंग परिवार के एक क्षत्रिय नेता को सागर पर थोपना चाहती है। दूसरी तरफ गुड्डू राजा का कहना है कि उन्होंने बहुत पहले से सागर जिले को अपना कार्यक्षेत्र बना रखा है। वे लोगों के सुख-दु:ख में शामिल होते रहे हैं।  हालांकि कांग्रेस नेताओं के रुख से भी बाहरी बनाम क्षेत्रीय के मुद्दे को हवा मिल रही है। वे न पार्टी के प्रति समर्पण दिखा रहे हैं, न पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का दबाव काम आ रहा है। लिहाजा, गुड्डू को अपने बूते ही चुनाव लड़ना पड़ सकता है। भाजपा राम लहर पर सवार होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे कर चुनाव लड़ रही है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किए गए कार्य गिनाए जा रहे हैं। कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति की याद दिलाई जा रही है।
 आठ में से 7 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा
- विधानसभा की ताकत के लिहाज से सागर क्षेत्र में भाजपा बहुत मजबूत है। क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से सात पर उसका कब्जा है। भाजपा के खाते में खुरई, सुरखी, नरयावली, सागर, कुरवाई, सिरोंज, शमशाबाद विधानसभा सीटें हैं और कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक बीना सीट। जीत के अंतर में भी बड़ा फर्क है। कांग्रेस ने बीना में महज 6155 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है जबकि सभी सीटों में कुल मिला कर भाजपा की जीत का अंतर 1 लाख 51 हजार 951 वोट है। डेढ़ लाख वोटों के इस अंतर को कांग्रेस के गुड्डू राजा कैसे कवर कर पाएंगे, यह बड़ा सवाल है।
 दो जिलों में फैला है सागर लोकसभा क्षेत्र
- सागर लोकसभा क्षेत्र का विस्तार भौगोलिक आधार पर दो जिलों में है। इसमें तहत सागर जिले की पांच एवं विदिशा जिले की 3 विधानसभा सीटें आती हैं। सागर जिले की पांच विधानसभा सीटों में से सागर, नरयावली, सुरखी और खुरई में भाजपा का  कब्जा है जबकि जिले की बीना सीट कांग्रेस के पास है। विदिशा  जिले की तीनों सीटों कुरवाई, सिरौंज और शमशाबाद भाजपा के कब्जे में हैं। सागर और विदिशा दोनों भाजपा के गढ़ माने जाते हैं। विदिशा से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, इसका फायदा भी भाजपा की लता वानखेड़े को मिलेगा। इस जिले में गुड्डू राजा का कोई खास संपर्क नहीं है। सागर लोससभा सीट में भाजपा की जीत का अंतर कभी कम नहीं रहा। 1991 में कांग्रेस के आनंद अहिरवार महज 9348 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे जबकि भाजपा की जीत का अंतर तीन लाख तक से ज्यादा रहा। भाजपा ने यहां 1996 में 1,48,317 वोट, वर्ष 1998 में 1,48,404 वोट, वर्ष 1999 में 60, 473 वोट, वर्ष 2004 में 1,47,991 वोट, वर्ष 2009 में 1,31,168 वोट, वर्ष 2014 में 1,20,737 वोट तथा वर्ष 2019 में भाजपा ने 3,05,542 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। इससे इस क्षेत्र में भाजपा की ताकत का पता चलता है।
अजा, क्षत्रिय, ब्राह्मण, कुर्मी समाज का दबदबा
- सागर लोकसभा सीट में वैसे तो सभी जातियों के मतदाता हैं लेकिन दबदबा अनुसूचित जाति, क्षत्रिय, ब्राह्मण और कुर्मी समाज के मतदाताओं का ज्यादा है। क्षेत्र में सबसे ज्यादा मतदाता अजा वर्ग के लगभग 3 लाख बताए जाते हैं। दूसरे नंबर पर लगभग 2 लाख वोटर क्षत्रिय समाज के हैं। राजबहादुर सिंह का टिकट कटने से यह वर्ग भाजपा से नाराज है और कांग्रेस ने इसी समाज के गुड्डू राजा को टिकट दे दिया है। तीसरे नंबर पर डेढ़ लाख के आसपास ब्राह्मण और एक लाख के आसपास कुर्मी समाज के मतदाता हैं। भाजपा प्रत्याशी लता वानखेड़े कुर्मी समाज से हैं। इनके अलावा लगभग 60 हजार जैन और इतने ही लोधी समाज के मतदाता बताए जाते हैं। यादव और मुस्लिम मतदाताओं की तादाद भी अच्छी खासी बताई जाती है। क्षत्रिय, अजा और मुस्लिम कांग्रेस की ताकत हैं जबकि कुर्मी, ब्राह्मण सहित अन्य जातियां भाजपा के साथ बताई जाती हैं।

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