इस्कॉन मंदिर प्रबंधन के निशुल्क दीपदान से श्रद्धालुओं को पुण्य फल नहीं मिलेगा - अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा ऐसे दीपदान का धर्म-शास्त्रों में भी उल्लेख नहीं
उज्जैन। हिंदू सनातन धर्म में वेद पुराणादि में दान का अपना महत्व बताया है। कार्तिक मास में दीपदान करना बहुत ही पुण्य दायक होता है।सनातन धर्म में दान और धर्म करने की अपनी परंपरा हैं। क्योंकि दान और धर्म स्वयं के खर्च से किया जाता हैं।
तभी भक्तों को उसके फल की प्राप्ति भी होती हैं। अंगराज कर्ण ने भी अपने स्वयं के परिश्रम से प्राप्त धन का दान किया था। इसलिए संसार में उन्हें दानवीर की पदवी मिली। अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पुजारी ने यह जानकारी देते हुए कहा कि इन दिनों इस्कॉन मंदिर के प्रबंधन द्वारा निशुल्क दीपदान कराया जा रहा है। मैं उनसे जानना चाहता हूं कि निशुल्क दीपदान की परिभाषा क्या हैं ? और किस शास्त्र में इसका उल्लेख हैं ? क्योंकि शास्त्रों में तो दान का अर्थ अपने कमाए धन की शुद्धि करना है। जिससे दान करने वाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन इस्कॉन द्वारा निशुल्क दीपदान की जो बात की जा रही है उसका कोई ओचित्य नहीं हैं। यह केवल समाज को भ्रमित और विकृत करने का कार्य है। क्योंकि यदि दान भी निशुल्क किया जाय तो वह धर्महीन, अर्थहीन और पुण्यों को क्षय करने वाला है। इस प्रकार का निशुल्क दीपदान का लालच हिंदू समाज को देना यह केवल अपनी सस्ती लोकप्रियता का साधन मात्र है। इस्कॉन मंदिर द्वारा जो निःशुल्क दीपदान करने का प्रलोभन भक्तों को दिया जाता हैं। यह धर्म युक्त नही हैं। निशुल्क दीपदान के माध्यम से इस्कॉन मंदिर प्रबंधन केवल हिंदू समाज की भीड़ बढ़ाना चाहता हैं। पूर्व में भी इस्कॉन ब्राह्मण दीक्षा देकर अन्य समाज को ब्राह्मण बनाकर वर्ण व्यवस्था को समाप्त करने का प्रयास कर चुका है जो कि अनुचित है। सनातन धर्म को मानने वाले अनुयायियों से पुजारी महासंघ अपील करता हैं की दान धर्म स्वयं के खर्च पर करें। मंदिरों में दीप प्रज्वलित करें और दीपदान तीर्थ ,नदियों व पवित्र जलाशय पर जाकर ही करें।अपने धर्म और दान का पुण्य स्वयं प्राप्त करें। क्योंकि निशुल्क दीपदान का कोई महत्व नहीं होता हैं।