नए मंदिर में शीघ्र स्थापित होंगी नई मूर्तियां, होगा पंचकल्याणक
उज्जैन। मुनि समतासागर और ऐलक निश्चलसागरजी महाराज के सानिध्य में दिगंबर जैन मंदिर लक्ष्मीनगर में शिलान्यास का कार्यक्रम मंत्रोच्चारण के साथ याग मंडल विधान, श्रीजी की शांतिधारा अभिषेक एवं वास्तु विधान के साथ संपन्न हुआ। तत्पश्चात मुनिश्री के प्रवचन एवं संपूर्ण समाज का वात्सल्य भोज हुआ।
उल्लेखनीय है कि विगत तीन-चार वर्षों से श्री महावीर मंदिर लक्ष्मीनगर का नवनिर्माण कार्य जोरों पर चल रहा है। जहां पर विद्यासागर महाराज के परम शिष्य मुनिश्री समतासागरजी महाराज के पहुंचने के साथ ही वहां पर वेदी शुध्दि एवं शिखर शिलान्यास का कार्यक्रम पिछले तीन दिनों से चल रहा था। जिसका समापन बुधवार को वास्तु विधान के साथ संपन्न हुआ। मंदिरजी में जीर्णोंध्दार के लिए नई वेदियों के पुण्र्याजक एवं लाभार्थियों का भी चयन किया गया। जिसमें अजयकुमार मनोजकुमार पहाड़िया एवं हेमंत गंगवाल इंदौरवालों को नई वेदी निर्माण का लाभ मिला वहीं उपर की तीन नवीन वेदियों का निर्माण एवं मूर्तियों का लाभ राकेशकुमार सुनीलकुमार जैन खुरईवालों को प्राप्त हुआ। जिसमें पंचबालयती की मूर्तियां विराजित होंगी। वहीं सीधे हाथ पर चंद्रप्रभु भगवान की मूर्ति और वेदी निर्माण के लाभार्थी सुनील जैन महेन्द्र कुमार सोगानी रहे। उल्टे हाथ की मूर्तियां मुनि श्रुवतनाथ भगवान की मूर्ति एवं वेदी के लाभार्थी राकेशकुमार जैन होंगे। लाभार्थियों का सम्मान सामाजिक संसद एवं ट्रस्ट द्वारा किया गया। मुनिश्री समतासागर महाराज से दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष अशोक जैन चायवाला एवं महावीर मंदिर के अध्यक्ष अशोक जैन गुनावाले, सचिव सुनील जैन खुरईवाले ने अनुरोध किया कि महाराजश्री आपके सानिध्य में ही उज्जैन में पंचकल्याणक श्री महावीर मंदिर का होना चाहिये। जिसके लिए मुनिराज ने कहा कि आचार्यश्री की अनुमति के उपरांत ही वे यहां पर ग्रीष्मकालीन वाचना एवं पंचकल्याणक की अनुमति दे सकता हूं, पहले आचार्यश्री से मेरे यहां रूकने की अनुमति लाएं। इसी तारतम्य में शीघ्र ही एक कमेटी सुनील जैन भैय्याजी इंदौरवालों के नेतृत्व में बनी जिसमें अशोक जैन चायवाला, अशोक जैन गुनावाले, सुनील जैन खुरईवाले एवं मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टीगण आचार्यश्री से शीघ्र अनुमति लेने डोंगरगढ़ जाएंगे।
मुनिश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि मृत्यु को जीतकर आत्मा की प्राप्ति के लिए जैन धर्म सर्वश्रेष्ठ है। संसार में सद्मार्ग पर सब चलना चाहते हैं लेकिन विरले ही होते हैं जो सद्मार्ग पर चल पाते हैं। भगवान रामचंद्र के नाम पर भारतीय संस्कृति को जाना जाता है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम चंद्र ने राजा रहने के साथ ही अपनी मर्यादाओं को कभी नहीं उलांघा और सबकुछ छोड़कर वनवास भी धारण किया। उन्होंने निश्चय किया था कि वनवास वे अकेले जाएंगे लेकिन उनका छोटा भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता भी उनके साथ गए। जैन धर्म में भी राम को मर्यादा पुरूषोत्तम माना गया है। भारतीय संस्कृति सूर्य उदय की संस्कृति है। पूर्व दिशा की संस्कृति है, पश्चिम में तो सूर्य डूबता है और लोग विलासिता की ओर बढ़ते हैं। कार्यक्रम के पश्चात संपूर्ण ट्रस्टियों और पात्र सुनील जैन खुरई, कमल शारदा मोदी, केवलचंद लुहाड़िया, केसरीमल जैन, अशोक जैन गुनावाले, राजेन्द्र गौरव लुहाड़िया, प्रकाशचंद्र कोठारी का सम्मान किया। इस अवसर पर विमलचंद जैन, इंदरकुमार जैन, सूरजमल जैन, संजय लुहाड़िया, शैलेन्द्र जैन, चेतन सोगानी, जीवंधर जैन, मनोज लुहाड़िया आदि उपस्थित थे।