हिंदू कैलेंडर के नव वर्ष के पहले दिन जानिए विक्रमादित्य का उज्जैन से कैसा रहा जुड़ाव
उज्जैन| आज गुड़ी पड़वा है। यानी हिंदू कैलेंडर के नव वर्ष का पहला दिन। इस कैलेंडर की शुरुआत MP के ही उज्जैन शहर से हुई। इस कैलेंडर को विक्रम कैलेंडर भी कहा जाता है। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत् की शुरुआत की थी। तभी से इस कैलेंडर के अनुसार हिंदू नव वर्ष मनाया जाता है। हाल ही में तेलुगु में विक्रम नाम से फिल्म आई और फिर विक्रम वेधा नाम से हिंदी में रिमेक। इसमें विक्रम-बेताल की थीम स्टोरी को ही अलग रूप से पेश किया गया है।विक्रमादित्य कौन थे और उज्जैन से कैसे ये सफर शुरू हुआ? इस तरह के कई सवालों के जवाब से जुड़े दस्तावेज उज्जैन के विक्रमादित्य शोध पीठ में मौजूद हैं। दैनिक भास्कर ने शोध पीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी और ज्योतिषाचार्य पं.आनंद व्यास विक्रमादित्य से जुड़ी कई रोचक बातें बताईं।
चैत्र शुक्ल एकम को 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 81 हजार 124 वर्ष हुएकर्क रेखा को भूमध्य रेखा उज्जैन में ही क्रास करती है, इस वजह से क्रासिंग पॉइंट पर महाकाल हैं , इसलिए काल गणना के चलते राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत चलाया था। इस वर्ष उसको 2080 वर्ष लग जाएगा। गुड़ी पड़वा का दिन सृष्टि का आरम्भ दिन माना गया है। अरबों वर्ष पुराना दिन है। चैत्र शुक्ल एकम सबसे पुराना दिन है जो की जिस रोज सृष्टि की उत्पति हुई वो ही दिन काल गणना का पहला दिन हुआ। अब चैत्र शुक्ल एकम को 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 81 हजार 124 वर्ष हो गए।विक्रमादित्य का जन्म 102 ईसा पूर्व हुआ था। उन्होंने 57 ईसा पूर्व भारत से शक साम्राज्य का पतन किया। शकों को हराने के बाद उन्होंने उनके कैलेंडर शक संवत की जगह इसी साल से विक्रम संवत शुरू किया। जिसे आगे चलकर हिंदू कैलेंडर कहा गया। करीब 2080 वर्ष पहले विक्रम संवत शुरू हुआ जब राजा विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे। दुनिया भर में 60 से अधिक संवत हुए लेकिन विक्रम संवत सबसे ज्यादा प्रचलित है।हालांकि भारत में आज भी अंग्रेजी कैलेंडर से ही काल की गणना की जा रही है। राजा विक्रमादित्य के समय में सबसे बड़े खगोल शास्त्री वराहमिहिर थे। जिनके सहायता से इस संवत के प्रसार में मदद मिली. विक्रम संवत अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे है, अंग्रेजी केलण्डर में वर्ष 2023 चल रहा है जबकि 22 मार्च से विक्रम संवत 2080 शुरू होगा। हिंदू कैलेंडर का पहला महीना चैत्र और आखिरी महीना फाल्गुन होता है।
साम्राज्य ऐसा कि न उससे पहले हुआ न उसके बाद
न भूतो न भविष्यति। यानी न अतीत में हुआ और न भविष्य में होने की संभावना है। इस वाक्य को चरितार्थ किया विक्रमादित्य ने। विक्रमादित्य का नाम दो शब्दों के समास से बना था। विक्रम और आदित्य। अपने नाम के ही अनुसार जब विक्रम यानि पराक्रम का सूर्य चमका तो सब देखते रह गए। विक्रमादित्य ने सम्पूर्ण एशिया को जीत लिया था। उस समय उनका साम्राज्य आधुनिक चीन, मध्य एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के कुछ भाग तक फैला हुआ था जो कि अभी तक के इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य है। इसके बाद भारत का कोई भी शासक इतने बड़े साम्राज्य का अधिपति कभी नहीं रहा।