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हजारों साल बाद भी सत्य सामने आया शिवलिंग के रूप में- मंगेश श्रीवास्तव


उज्जैन। धरती पर कहीं भी मस्जिद का नाम संस्कृत में नहीं है। तब, संस्कृत नाम ‘ज्ञानवापी’ को मस्जिद कैसे मान सकते हैं। यह मंदिर है और इसके ऐतिहासिक तथ्य उन किताबों में भी है, जिन्हें मुस्लिम आक्रांता अपनी कट्टरता और बहादुरी दिखाने के लिए खुद दर्ज भी कराते थे। 1194 से प्रयास करते-करते आखिरकार 1669 में ज्ञानवापी मंदिर को मस्जिद का रूप दिया गया और हर प्रयास, हर आक्रमण और मुस्लिम आक्रांताओं की हर कथित उपलब्धि इतिहास की किताबों में दर्ज है। 
                   भारत, तिब्बत समन्वय संघ के नगर जिला मंत्री मंगेश श्रीवास्तव ने कहा कि हजारों साल बाद भी सत्य सामने आता है। हिंदुओं का प्रसिध्द धर्मस्थल काशी मुस्लिम आक्रांताओं के हमेशा निभाने पर रहा। 1194 में मोहम्मद गोरी ने मंदिर को तोड़ा भी था, लेकिन फिर काशीवालों ने खुद ही उसका जीर्णोध्दार कर लिया। फिर 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तोड़ दिया। करीब डेढ़ सौ साल बाद 1585 में राजा टोडरमल ने अकबर के समय उसे दोबारा बनवा दिया। 1632 में शाहजहां ने भी मंदिर तोड़ने के लिए सेना भेजी, लेकिन हिंदूओं के विरोध के कारण वह असफल रहा। उसकी सेना ने काशी के अन्य 63 मंदिरों को जरूर तहसनहस कर दिया। औरगंजेब ने 8-9 अप्रैल 1669 को अपने सुबेदार तबुल हसन को काशी का मंदिर तोड़ने भेजा। सितंबर 1669 को अबुल हसन ने औरगंजेब को पत्र लिखा ‘मंदिर के तोड़ दिया गया है और उस पर मस्जिद बना दी गई है।’ औरगंजेब ने काशी का नाम औरंगाबाद भी कर दिया था। कथित ज्ञानवापी मस्जिद उसी के समय की देन है।

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