top header advertisement
Home - उज्जैन << उज्जैन का जंतर मंतर बना आकर्षण का केंद्र

उज्जैन का जंतर मंतर बना आकर्षण का केंद्र


उज्जैन । उज्जैन का जंतर मंतर (जीवाजी वेधशाला) वैसे तो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है लेकिन अब यहां की नक्षत्र वाटिका भी लोगों को अपनी ओर खींचने को विवश कर देगी। नक्षत्र वाटिका का शुक्रवार को स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने उद्धाटन किया। वाटिका में सूर्य और आठ ग्रहों के मॉडल बनाए गए हैं। सूर्य से सभी ग्रहों की दूरी, तुलनात्मक आकार, मूल रंग और परिक्रमा को दर्शाया गया है। वाटिका में 12 राशियों, उनके तारा समूह और आकार को भी मॉडल के रूप में बनाकर सौरमंडल की परिकल्पना की गई है। इसी तरह 27 नक्षत्रों के बारे में भी बताया गया है। उनके साथ उनके औषधीय वृक्षों को भी लगाया गया है। वाटिका में राशियों, नक्षत्रों और प्रमुख तारा मंडलों की आकाशीय स्थिति को समझने के लिए स्टार ग्लोब की मदद ली जा सकेगी। इस ग्लोब के माध्यम से विश्व के किसी भी देश का समय (क्लॉक टाइम) का पता लगाया जा सकता है।
मंत्री ने कहा कालगणना की दृष्टि से उज्जैन की काल गणना विश्व में आदर्श रही है। कुछ समय के लिए इसे भुला दिया गया था लेकिन इसे फिर से स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। भारतीय कालगणना वैज्ञानिक पद्धति पर की जाती है। इसलिए उज्जैन की वेधशाला का विकास होगा। जीवाजी वेधशाला के अधीक्षक डॉ राजेंद्र प्रकाश गुप्त ने बताया कि पर्यटकों, विद्यार्थियों, वास्तुकारों, इतिहासविदों और खगोलविदों के लिए जीवाजी वेधशाला हमेशा से जिज्ञासा का केंद्र रही है। यह पर्यटकों के लिए तो आकर्षण का केंद्र रहेगी, साथ ही छात्रों के खगोलीय ज्ञान को बढ़ाने में सबसे उपयुक्त साबित होगी। उन्होंने बताया कि जिस तरह से पृथ्वी को भूगोलविद 36 अंश की रेखाओं में चिन्हाकिंत करते हैं, उसी तरह से सौरमंडल को भी 27 भागों में बांटा गया है। हर एक भाग को एक नक्षत्र माना गया है। इन नक्षत्रों की पहचान भी आकाश में तारों की स्थिति से होती है।

सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि ये सात पिण्डीय ग्रह हैं। राहु और केतु नवग्रह हैं लेकिन ये पिण्ड नहीं बल्कि छाया ग्रह हैं।

अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढ़ा, उत्तरा षाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।

अश्विनी- कुचला, भरणी- आँवला, कृत्तिका- गूलर, रोहिणी- जामुन, मृगशिरा-खैर, आर्द्रा- कृष्णागुरु, पुनर्वसु- बाँस, पुष्य- पीपर, अश्लेषा- चंपा, मघा- बड़वट, पूर्वा फाल्गुनी- पलाश, उत्तरा फाल्गुनी- कनेर, हस्त- चमेली, चित्रा- बेल, स्वाति- कोह, विशाखा- कैथ, अनुराधा- मौलसरी, ज्येष्ठा- सेवर, मूल- सखुआ, पूर्वाषाढ़ा- वैंत, उत्तराषाढ़ा- कटहल, श्रवण- आंकड़ा, धनिष्ठा- समी, शतभिषा-कदंब, पूर्वा भाद्रपद- आम, उत्तरा भाद्रपद- नीम और रेवती- महुआ ।

वेधशाला जंतरमंतर की स्थापना वर्ष 1719 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने किया था। उनका उद्देश्य प्राचीन भारतीय खगोल गणित को अधिक सटीक बनाना था। वेधशाला का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है। यहां पर आठ इंच व्यास का टेलिस्कोप है जिससे सौरमंडल में होने वाले परिवर्तनों को देखा जाता है।

शंकु यंत्र- शंकु यंत्र के माध्यम से सूर्य की स्थिति प्रत्यक्ष देख सकते हैं।

सम्राट यंत्र- इसके माध्यम से रात्रि में ध्रुव तारा देखा जा सकता है।

नाड़ी वलय यंत्र- उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध में ग्रह, नक्षत्रों और तारों की स्थिति का पता लगाते हैं।

दिगंश यंत्र- इस यंत्र से ग्रह-नक्षत्रों की क्षितिज से ऊंचाई और कोणात्मक दूरी का पता लगाते हैं।

भित्ति यंत्र- इससे ग्रह-नक्षत्रों का नतांश प्राप्त करते हैं।

तारामंडल- आकाशीय स्थिति को समझने के लिए तारामंडल की स्थापना की गई है।

टेलिस्कोप- रात्रि में चंद्रमा की सतह, उसके गड्ढे, पहाड़, शुक्र की कलाएं, बृहस्पति की सतह, शनि की वलय, चंद्र ग्रहण आदि का पता करते हैं।

ग्रंथालय- इसमें 424 प्राचीन खगोलीय ग्रंथ, 173 अन्य ग्रंथ और 5000 पंचांग उपलब्ध हैं। 900 मध्ययुगीन व प्राचीन दुर्लभ पुस्तकों और पंचांगों को डिजिटलाइजेशन किया गया है। जो पर्यटकों और खगोल विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए उपलब्ध है।

Leave a reply