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कालिदास का साहित्य वैज्ञानिक आधार पर केन्द्रित -प्रो.पाण्डे



विशिष्ट व्याख्यान एवं शोध संगोष्ठी सम्पन्न
उज्जैन |  अ.भा. कालिदास समारोह 2020 के अवसर पर प्रातः शोध संगोष्ठी का सत्र आयोजित हुआ। इसमें विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो.अखिलेश कुमार पाण्डेय ने महाकवि कालिदास का वैज्ञानिक दृष्टिकोण विषय पर विशिष्ट व्याख्यान सह प्रस्तुति करते हुए कहा कि महाकवि कालिदास का चिंतन वैज्ञानिक आधारों पर खड़ा है। वे विज्ञान के ज्ञाता थे। प्रकृति के पंचतत्व रहेंगे तो यह संस्कार बना रहेगा। कालिदास का संदेश है कि प्रकृति और संस्कृत के मध्य संतुलन आवश्यक है, तभी मानवीय सभ्यता जीवित रहेगी। आज भारतीय संस्कृति और जीवन दृष्टि की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित हो रहा है। कालिदास के साहित्य में अनेक वनस्पतियों और पशु-पक्षियों का सुन्दर रूपांकन हुआ है, जो हमारे जीवन को आधार देते हैं। पारिस्थिकीय तंत्र से जुड़े अनेक उपादानों का चित्रण कालिदास साहित्य में मिलता है। कालिदास जैसे महान् कवियों की ईको पोयट्री के माध्यम से सामाजिक चेतना का प्रसार किया जाना चाहिए। मेघदूत में कालिदास ने प्रकृति के साथ मनुष्य के साहचर्य का वर्णन किया है। उनका साहित्य जैव विधिवता संरक्षण का संदेश देता है।  कालिदास के साहित्य में भूगोल जीवन विज्ञान एवं चिकित्सा विज्ञान के अनेक सूत्रों का संकेत मिलता है। उन्होंने जीवन में जल की महिमा के साथ विविध जल संरचनाओं का सुन्दर चित्रण किया है।
    इस अवसर पर प्रसिद्ध मुद्राशास्त्री डॉ.आर.सी. ठाकुर ने कालिदास साहित्य में शिव के विविध रूप और उनका शिल्पांकन पर केन्द्रित व्याख्यान देते हुए कहा कि महाकवि कालिदास द्वारा वर्णित शिव के अनेक रूपों का सुन्दर शिल्पांकन हुआ है। मूर्तिशिल्प में शिव के अंकन के पूर्व मुद्राओं में उनका रूपांकन हुआ है। उज्जयिनी से डमरू आकार की मुद्राएँ भी मिलती हैं। उज्जयिनी एवं अन्य मुद्राओं में शिव के विविध रूप अंकित किए गए। मालवा क्षेत्र में उपलब्ध मुद्राओं आदि में नागपाश, डमरू आदि लिए हुए शिव का चित्रण हुआ है। कालिदास साहित्य में वर्णित शिव के कई रूपों को उन्हीं के सयम में प्रचलित सिक्कों में अंकित किया गया है। इस दिशा में गहन अनुसंधान की आवश्यकता है। सिंधु-सभ्यता में अंकित शिव का अंकन कालिदास युग की मुद्राओं में मिलता है। डाॅ. डी.डी. वेदिया ने कालिदास और व्यवसाय प्रबन्ध पर विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी सत्र में राष्ट्रीय कालिदास पुरस्कार से अलंकृत शोधपत्र प्रस्तोता डॉ.श्वेता पंड्या उज्जैन एवं डॉ.रागिनी शुक्ला नईदिल्ली ने शोध पत्रों का वाचन किया। इनके अतिरिक्त डॉ.रामसिंह सौराष्ट्रीय, डॉ.पंकजा सोनवलकर, डॉ.जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ.तुलसीदास परोहा, डॉ.धर्मेन्द्र शर्मा, श्री मोहनसिंह हिंगोले, श्री गिरीश व्सास, श्री हेमन्त पंड्या, श्री भगवती जोशी, सुश्री रामकुमारी, सुश्री पूजा, सुश्री रूपाली सारये, सुश्री पूनम यादव, सुश्री आरती शर्मा ने शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
    पुराविद् डॉ.रमण सोलंकी ने पुरातत्व एवं स्तर विन्यास का उल्लेख करते हुए प्राचीन शिल्पकला पर महाकवि कालिदास के प्रभाव की चर्चा की। प्रारंभ में व्याख्यान एवं संगोष्ठी सत्र की पीठिका कालिदास समिति के सचिव प्रो.शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने प्रस्तुत की। डॉ.जगदीशचंद्र शर्मा ने प्रकृति काव्य परम्परा और ऋतुसंहार पर विशद प्रकाश डाला।
    संगोष्ठी सत्र की अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि कालिदास साहित्य में जीवन एवं समाज के अनेक रूपों का रूपांकन हुआ है। अतिथियों का स्वागत कालिदास समिति के सचिव प्रो.शैलेन्द्रकुमार शर्मा, अकादमी निदेशक श्रीमती प्रतिभा दवे एवं उपनिदेशक डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया ने किया। संचालन डॉ.जगदीशचंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ.सन्तोष पण्ड्या ने किया।

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