राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस पर विशेष "विशेष लेख"
आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्न मंथन का सन्देश लेकर अवतरित हुए थे धन्वंतरि
उज्जैन | शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय के व्याख्याता डॉ.जितेन्द्र कुमार जैन और डॉ.प्रकाश जोशी ने जानकारी दी कि आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्नमंथन का सन्देश लेकर भगवान धन्वंतरि का अवतरण हुआ था। यद्यपि आयुर्वेदशास्त्र के जन्मदाता के रूप में धन्वंतरि का नाम जनसाधारण में प्रचलित है, परन्तु इतिहास में धन्वंतरि नाम के तीन आचार्यों का वर्णन प्राप्त होता है।
सर्वप्रथम धन्वंतरि आचार्य का वर्णन देवलोक में जो स्थान मधु कलश लिये हुए अश्विनी कुमारों को प्राप्त होता है, उसी प्रकार मृत्युलोक में अमृत कलश लिये गये आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि को प्राप्त है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार क्षीर सागर के मंथन से अमृत कलश लिये हुए धन्वंतरि समुद्र से निकले हुए 14 रत्नों में गिने जाते हैं। उल्लेखनीय है कि समुद्र मंथन के पहले समुद्र में विविध प्रकार की औषधियां डाली गई थी और मंथन से उनके संयुक्त रसों का स्त्राव अमृत के रूप में निकला, फिर अमृतयुक्त श्वेत कमण्डल धारण किये धन्वंतरि प्रकट हुए। इस प्रकार धन्वंतरि प्रथम का जन्म अमृत उत्पत्ति के समय हुआ।
वास्तव में समुद्र मंथन एक युक्ति प्रमाण का उदाहरण है, जब औषध रोगी परिचारक और वैद्य अपने गुणों से युक्त होती है, तब रोग का निमूर्लन होता है। आयुर्वेद के प्रथम अंग शल्यशास्त्र में पारंगत धन्वंतरि का आविर्भाव निरोगी, सुख के लिये तथा रोग शोक के निवारण के लिये हुआ है।
धन्वंतरि द्वितीय से तात्पर्य उन धन्वंतरि से है, जिन्होंने काशी के चन्द्रवंशी राजकुल में सुनहोत्र की वंशावली में चौथी और पांचवी पीढ़ी में जन्म ग्रहण किया था।
शल्य प्रधान आयुर्वेद परम्परा के जनक के रूप में धन्वंतरि तृतीय काशीराज दिवोदास धन्वंतरि का नाम लिया जाता है। धन्वंतरि सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा इनकी क्रिया-कुशलता का ही परिणाम है। ये शल्यकर्म विशेषज्ञ के रूप में चिकित्सा जगत में प्रतिष्ठित हैं।
धन्वंतरि का उपदेश आयुर्वेद, अथर्ववेद का उपवेद है। आयुर्वेद का प्रयोजन है रोगियों के रोग की मुक्ति और स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना। धन्वंतरि के अवतरण दिवस को आयुर्वेदिक समाज धन्वंतरि जयन्ती के रूप में मनाते चले आ रहे हैं। गौरतलब है कि भारत सरकार ने धन्वंतरि जयन्ती को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस वर्ष सम्पूर्ण भारतवर्ष में धन्वंतरि जयन्ती पंचम राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में बड़े उत्साह से मनाई जायेगी।