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कोरोना के चलते इस बार नहीं होगा कार्तिक मेले का आयोजन


शिप्रा तट पर कार्तिक मेले का आयोजन हर वर्ष होता आया है। राजा विक्रमादित्य के पिता ने इस मेले की शुरूआत की थी। पहली बार ये आयोजन इस बार नहीं होगा। क्योंकि कोरोना के चलते प्रशासन ने अनुमति देने से इनकार कर दिया है। ज्योतिषाचार्य आनंद शंकर व्यास ने कहा कि अफसर इस परंपरा को नहीं तोड़े।

आयोजन होने देवें भले ही स्वरूप छोटा कर दिन कम कर दें। कार्तिक मेले का आयोजन हर वर्ष नगर निगम करती है। मेला एक महीने तक चलता है और लोगों व व्यापारियों की डिमांड पर इसकी अवधि बढ़ाई जाती रही है। इस मेले में विभिन्न प्रांतों के व्यापारी अपनी दुकानें व झूले लगाने आते हैं और बड़ी संख्या में अंचल व शहरों से लोग मेले का लुत्फ उठाते हैं। इस बार मेला 29 नवंबर से 28 दिसंबर तक लगना था। मेले के संबंध में जब निगमायुक्त क्षितिज सिंघल ने अनुमति चाही तो प्रशासन की तरफ से एडीएम नरेंद्र सूर्यवंशी ने अनुमति से इनकार कर दिया। इस संबंध में निगमायुक्त को जारी पत्र में एडीएम ने लिखा कि कोरोना में शासन की गाइड लाइन के अनुसार किसी भी मेले का आयोजन नहीं किया जाना है। सिद्धवट पर लगने वाले मेले की अनुमति भी नहीं दी।

राजा विक्रमादित्य के पिता ने गंधर्व मेले के रूप में की थी शुरूआत, प्रशासन पुन: विचार करे
इधर पं. व्यास ने कार्तिक मेले की अनुमति नहीं देने काे गलत करार दिया। बोले कि कार्तिक मेला एक धार्मिक पर्व व परंपरा है, इसे रोकना नहीं चाहिए। प्रशासन क्या कार्तिक के स्नान व समापन पर अधिक मास के स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को रोक पाएगा? वे बोले कि अफसर इस परंपरा को तोड़े नहीं। मेले का स्वरूप छोटा कर देवें। महीने भर की बजाय इसे दस दिन का करें लेकिन परंपरा नहीं टूटने देवें। व्यास ने बताया कि कार्तिक मेले की शुरुआत राजा विक्रमादित्य के पिता गर्दभिल्ल ने शुरू की थी। इसके पीछे ये कहानी प्रचलित है कि विक्रमादित्य के पिता से जब कोई युद्ध लड़ने आता था तो वे तंत्र शक्ति के दम पर गधों की फौज बुला लेते थे और युद्ध जीतते थे। तब उन्होंने इस आयोजन की शुरुआत गंधर्व मेले के रूप में की थी। तभी से शिप्रा किनारे गधों का मेला भी लगते आया है। बाद में गंधर्व मेले काे कार्तिक स्नान के नाम से पहचान मिलने से ये कार्तिक मेले के रूप में अब तक होता आया है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब ये मेला नहीं लगा हो।

 

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