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गुरू समर्थ रामदास स्वामी की चरण पादुकाएं भोपाल रवाना



9 दिनों तक उज्जैन में रहीं, सांप्रदायिक भिक्षा हेतु गूंजे भजन
उज्जैन। हिंदवी स्वराज्य संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू समर्थ रामदास स्वामी की चरण पादुकाओं का 9 दिनों तक उज्जैन में रहने के बाद भोपाल की ओर प्रस्थान हुआ। उज्जैन में 9 दिनों तक सांप्रदायिक भिक्षा हेतु ‘रघुपति राघव राजाराम’ के भजन गूंजे। अंतिम दिन बुधवार को पादुकाएं महाकाल मंदिर, सांदीपनि आश्रम पहुंची। 
मिलिंद पन्हालकर के अनुसार श्री क्षेत्र सज्जनगड़ जिला सातारा महाराष्ट्र से तीन महीने के पादुका प्रचार दौरे पर निकले रामदासी संतगण 31 दिसंबर से 8 जनवरी तक उज्जैन में श्री बापू तात्या दत्त मंदिर बक्षी बाजार में रहे। सुबह 6 बजे काकड़ आरती से रात्रि 10 बजे तक प्रतिदिन विभिन्न धार्मिक आयोजन हुए। प्रतिदिन रामदासी मंडली शहर के विभिन्न क्षेत्रों में सुबह 8 से 12 तक भिक्षा हेतु निकलती थी व सुबह शाम घर-घर पादुकायें पूजन के लिए लाई जाती थीं। पादुका के साथ हरि भक्त परायण योगेश बुवा रामदासी आए तथा 9 दिनों तक कीर्तन सेवा हरि भक्ति परायण मकरंद बुवा रामदासी ने की। 
समर्थ रामदास स्वामी ने भारत की प्राचीन भिक्षा परंपरा को आत्मसात करते हुए उसका प्रचार किया और भिक्षा के माध्यम से भारत भर में तीर्थाटन करते हुए एक विचार के लोगों को जोड़ा और छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंदवी साम्राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय समर्थ रामदास स्वामी ने लगभग 1100 मठों की स्थापना की और इन मठों में भक्ति और शक्ति की उपासना के साथ शिवाजी महाराज के गुप्त संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का कार्य किया। सन् 1936 में समर्थ रामदास स्वामी के भक्त श्रीधर स्वामी द्वारा श्री समर्थ सेवा मंडल की स्थापना की गई और सर्मि रामदास स्वामी के विचारों का प्रचार प्रसार प्रारंभ किया। श्री समर्थ सेवा मंडल द्वारा सज्जनगड़ में समर्थ रामदास स्वामी समाधि और संपूर्ण किले का जीर्णोध्दार किया गया और भिक्षा में प्राप्त धन और अनाज से निर्माण कार्यों का प्रारंभ हुआ। सन् 1950 से श्री समर्थ सेवा मंडल द्वारा समर्थ रामदास स्वामी की पादुकाओं के साथ देशभर में अर्थाजन की दृष्टि से और समर्थ विचारों के प्रचार प्रसार हेतु प्रचार दौरा प्रारंभ किया। पादुका प्रचार दौरे में समर्थ रामदास स्वामी की जो पादुकाएं आई वे शिवाजी महाराज द्वारा उन्हें भेंट स्वरूप दी गई जो समर्थ रामदास स्वामी ने कुछ दिन पहनी और अपने अनुयायी देशमुख को प्रसाद स्वरूप दी। देशमुख घराने ने लगभग 300 वर्षों तक इन पादुकाओं की सेवा पूजा अर्चना की ओर सन् 1950 में समर्थ सेवा मंडल को दी। तब से यह पादुकाएं श्रीसमर्थ सेवा मंडल के पास हैं। 

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