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शनिमंदिर प्रांगण में गूंज रही वेद मंत्रों की ध्वनि



उज्जैन। न्यायाधीश श्री शनिदेव मंदिर प्रांगण में संपूर्ण वैदिक विधि विधान से नित्य की भांति दैनिक आहुति के साथ यज्ञशाला में श्री अग्नि देव को सैकड़ों की संख्या में लाखों आहुतियां अर्पित की गई। इस भव्य और दिव्य वातावरण में वेद मंत्रों की ध्वनि दसों दिशाओं में गुंजायमान हो रही है। दूर दूर से आए श्रद्धालु, साधु-संत, सन्यासी अपनी गरिमामयी उपस्थिति से महायज्ञ के प्रांगण को सुशोभित कर रहे हैं, आशीर्वाद दे रहे हैं।
यह प्रार्थना विशिष्ट महायज्ञ साहिब दयाल दास उस संकल्प को पूर्ण करने की दिशा में ईश्वरी और परम संत बाबा जयगुरुदेव महाराज की कृपा और आशीर्वाद के साथ निरंतर अग्रसर हो रहे हैं। महाकाल की आज्ञा और कृपा से उज्जैन के त्रिवेणी संगम क्षेत्र में यह महायज्ञ “कलयुग में कलयुग जाएगा कलयुग में सतयुग आएगा“ की बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की भविष्यवाणी और घोषणा की ओर समीप आने का संकेत सिद्ध होगा। ऐसा साहिब दयाल दास के संकल्पित प्रयासों से प्रतीत होता लग रहा है। गुरु वचन सत्संग चर्चा में साहिब दयाल दास ने सांसारिक मरमों को अपने समाज और दुनिया में व्याप्त उन पर्दों को हटाया कैसे जाए इस पर चर्चा की। उन्होंने बताया हमें संसार में नहीं हम संसार से लिप्त हो गए हैं हम शरीर नहीं-हम चीर जीवित आत्मा हैं। महापुरुषों ने अपने साधकों को किसी चमत्कार या इच्छा का विरोध करने को कहा यदि हमें सिद्धियां प्राप्त होती हैं, तो उनका उपयोग हमें कल्याण और समाज हित में करना चाहिए। हमें झूठे अभिमान और प्रदर्शन से बचना चाहिए उन्होंने प्रेम के संबंध में कहा विस्तारित प्रेम गुरु के द्वारा प्राप्त हो सकता है। यही विस्तारित प्रेम- परमात्मा का प्रेम है।
साहिब दयाल दास ने वर्तमान के विकास पर और उसके पड़ने वाले बुरे प्रभाव पर चिंता करने की बात कही। हम औद्योगिक क्रांति लाकर दुनिया को अशांति और वातावरण को प्रदूषित कर चुके हैं आज वायु नहीं बची की हम सांस ले सकें, नदियों का जल हो या भूगर्भ जल सब जहर में तब्दील हो चुका है प्रकृति के इस उपहार के लिए हम किमत दे रहे हैं। हमने प्रकृति के नाश के लिए हर उपाय खोज लिए। इस औद्योगिक क्रांति से शांति और प्रेम का उत्पादन नहीं किया जा सकता प्रेम और शांति का उत्पादन हमारी शरीर ही उस आत्मा की खोज से कर सकती है। साहिब दयाल दास ने उस मार्ग की ओर बढ़ने का सूत्र बताया हमारी भूमध्य से होकर ईश्वर तक जाने का मार्ग है उस मार्ग पर परम पुरुष प्रकाश सहस्त्र कमल स्वरूप है, उस ब्रह्मांड में प्रवेश करते ही अनेक ब्रह्मांडो के दर्शन होते हैं। उन ब्राह्मडो में भी भटकने का भय होता है, किंतु गुरु का सानिध्य प्राप्त होता है तो गुरु हमें उन सभी ब्राह्मडो को पार करा कर उस परमलोक में ले जाता है जहां किसी भी भय या माया से हम मुक्त हो जाते हैं। हर आत्मा बुरे कार्य करके पछताती है किंतु हम बार-बार उसकी अनदेखी करते हैं। उन आदतों का त्याग करना पड़ेगा जो हमें प्रमाद की ओर ले जाती है। इस साधना का सूत्र महापुरुष या गुरु की मार्गदर्शन और कृपा से ही प्राप्त हो सकता है।

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