हमारे देश की नींव धर्म निरपेक्षता पर टिकी है
माधव कॉलेज में जवाहरलाल नेहरू की 130वीं जन्मशती, समारोह समापन अवसर पर सेमिनार आयोजित
उज्जैन। राष्ट्र किसी विशेष धर्म का संरक्षण देता है तो वह अनुचित होगा विकास के दौरान हमें सभी को साथ लेकर चलाना है। हम सभी को समान रूप से देखे। इसका प्रयोग नेहरू जी विज्ञान में बढावा देने के लिए व्यवहार में लाए है। मतभेदों से ऊपर उठने के लिए सबको समान लेकर चलना होगा संविधान ने व्यक्ति की नागरिकता को ध्यान में रखा है। राजनीति में धर्म के आधार पर कभी भेदभाव होता है। नेहरू जी धर्म संबंधी सम्मेलन में नही गए उसका उद्देश्य धर्म को बढ़ावा नही देना है। हम सार्वजनिक रूप से धर्म निरपेक्ष हो सकते है जिनका जन्म से किसी धर्म में उत्पन्न हुए उससे हम विलग नही हो सकते है। किसी व्यक्ति का आचार-विचार उसके जन्म के धर्म से जुडा होता है।
यह उद्गार पंडित जवाहरलाल नेहरू की 130वीं जन्मशती समारोह में आयोजित सेमिनार में विशिष्ट वक्त डॉ.पुष्पा कपूर शासकीय कन्या महाविद्यालय रतलाम ने व्यक्त किये।
सेमिनार में वक्ता विवेक जोशी ने कहा कि धर्म निरपेक्षता भारतीय राजनीति में जीवित रहने वाला विष है। मेरा मानना है कि धर्म शब्द के द्वारा कई अर्थो में उपयोग देखते है। धर्म शब्द का अर्थ परिवार में कर्तव्य के अर्थ में लिया जाता है। जब संसार के लिए धर्म की बात करते है तो प्राकृतिक व्यवस्थाओं की बात करते है। हम संविधान में पंथ निरपेक्षता की बात करते है। धर्म निरपेक्षता की नहीं।
इस अवसर पर वर्षा चैऋषिया ने कहा कि, धर्म निरपेक्षता का अर्थ है तटस्थ भाव (एक भाव) रखना कहीं-कहीं इसे सर्वधर्म समभाव भी मानते है। हम सभी पक्षों और धर्मो को एक जैसा ही माने। धर्म निरपेक्षता का श्रेय जवाहरलाल नेहरू का जाता है वे देखना चाहते थे कि सभी धर्मो के लोग एक साथ समभाव से चले और अपने सपनों का भारत, 21वीं सदी का भारत बनाए।
डॉ.प्रवीण जोशी ने आयोजित सेमिनार में अपने वक्तव्य में कहा कि धर्म निरपेक्षता नेहरू की अपनी प्रकृति से उन्होंने इसे आगे बढाया। सत्ता में बैठा हर व्यक्ति उठकर अपनी बात कहेगा। उनको लगता था भारत को अपने मूल्य में आना है राष्ट्र को विकसित होने के लिए धर्म शब्द को छोडना होगा। भारत में धर्म निरपेक्षता को सबसे बडी ताकत हो गई कहीं बीच में हम धर्म निरपेक्षता एक ढकोसलाबाजी की बात हो गई थी। जिस मिट्टी में हम पले, बढे हुए जो हमारा प्राकृतिक मूल गुण है सहिष्णुता। नेहरू यह सिद्ध करना चाहते थे कि भारत को अगर विकसित होना है तो इसे हमें महत्व देना होगा किसी भी देश को धर्म से नही जोडें। 1946 में धर्म निरपेक्षता को नवाचार के रूप में देखा जाता था। धर्म निरपेक्षता का अर्थ आम जनता तक अभी नहीं पहुंच पाया है।
इस अवसर पर मंजू तिवारी ने कहा कि धर्म निरपेक्षता जवाहरलाल नेहरू के संदर्भ में अगर हम उस समय की स्थिति को देखें तो उस समय की स्थिति में धर्म निरपेक्षता की बात करके वैज्ञानिक व तकनीकी क्षेत्र में देश को ऊँचाईयों पर ले जाने का प्रयास किया हमारी संस्कृति अध्यात्म की रही शक, कुषाण आदि सबको हमने आत्मसात किया क्योंकि हमारी भूमि इसी प्रकार की है सबको हम आत्मसात करने की कौशिश करते है हम धर्म निरपेक्ष है नेहरू जी ने इस बात को बहुत अच्छे से समझा था की सभी जाति जब एक साथ मिलकर कार्य करे तभी हम देश को ऊँचाईयों पर ले जा सकते है।
अल्पना दुभाषे ने समारोह में कहा कि, बच्चों के कंधों पर आने वाला भविष्य बनना है। धर्म जो धारणा किया जा सके। धर्म को विशेष धर्म नही धारण करने योग्य चिन्तन ही धर्म हो। आकर्षक व्यक्ति की सुन्दरता नही है जो बातें वह बोलता है उससे हो आकर्षित है। पुस्तक का पेज अवश्य पढ़ना चाहिए। भारत को अगर देश की ऊँचाईयों तक पहुंचाने का योगदान रहा है।
संगोष्ठी में सभी वक्ताओं ने अपने-अपने उद्गार प्रकट किये इसी तारतम्य में मंदसौर कॉलेज की इतिहास विभाग की अध्यक्षा डॉ.उषा अग्रवाल ने बताया कि इतिहास के सभी राजा जो सभी धर्मो को लेकर चलते रहे, वो शासन अच्छा चला पाए जैसे अशोक किन्तु औरंगजेब का शासनकाल कट्टरतावादी रहा। अशोक के शासनकाल में मानवाधिकार चाहे सर्वधर्म अशोक ने यह बात कही की राजा एवं दास दोनों के साथ ही अच्छा व्यवहार हो किसी व्यक्ति का व्यवहार अगर देखना हो तो हमें यह देखना है कि वह अपने दासों के साथ कैसा व्यवहार करता है।
इस अवसर पर लॉ कालेज की प्रोफेसर डॉ.एस.एन.शर्मा, डॉ.अरूणा सेठी, डॉ.हिमांशु पांडे एवं डॉ. जफर मेहमूद, डॉ. नीरज सारवान, डॉ.अंशु भारद्वाज, डॉ.लक्ष्मी मेहर, शोध छात्रा प्रीति जायसवाल एवं देवदास साकेत सहित अनेक छात्र-छात्राऐं उपस्थित थे। समारोह की अंत में सभी अतिथिगणों का आभार डॉ.शोभा मिश्र ने प्रकट किया।