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देश का संविधान धर्म, जाति एवं भाषा के आधार पर कोई भेद नहीं करता


 
उज्जैन।ईश्वरवादी धर्म को नहीं मानते है जो दिख रहा है उस पर ही अनीश्वरवादी लोग विचार करते है एवं जो विज्ञान पर आधारित हो। यदि व्यक्ति नैतिक होगा तभी वह धार्मिक होगा। कालांतर में भारत में धर्मनिरपेक्षता- जेकब बोलते है हम धर्म नहीं मानते। निरपेक्ष ब्रह्म क्या है। निरपेक्ष को समझने के लिए उसकी तुलना करना पडेगी तब सापेक्ष से उसकी तुलना होगी- धर्म निरपेक्ष का शाब्दिक अर्थ धर्म की तुलना किसी से नही कर सकते। इसलिए वह निरपेक्ष है। सभी धर्मो के प्रति सम्मान की भावना किसी भी धर्म के प्रचार प्रसार में कोई व्यवधान नहीं उत्पन्न करेगा। दुनिया के अधिकांश देश धर्म निरपेक्षता को ही मानते है।
उपरोक्त उद्गार डॉ.हेमन्त नामदेव पूर्व प्राचार्य शा.माधव महाविद्यालय वर्तमान में ग्वालियर में पदस्थ (विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र) ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की 130वीं जयंती समारोह के अंतर्गत सेमीनार की प्रारम्भिक बेला के अवसर पर व्यक्त किये।
आपने आगे कहा कि धर्म के आधार पर, जाति एवं भाषा के आधार पर किया गया भेद व्यक्ति के निजी स्वार्थ के कारण होता है, जन्म के समय किसी भी व्यक्ति के हाथ पर नही लिखा होता है कि वह किस धर्म का है। हमारे संविधान के निर्माताओं ने कहा है कि नया जो भारत बनेगा उसमें धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेद नही होगा। 
1947 की अवधि तक जो भी व्यक्ति है उनका स्वागत है किन्तु अब जो लोग बाहर से आ रहे है उसके ऊपर प्रतिबंध है क्योंकि उससे देश की आंतरिक स्थिति में अव्यवस्था हो सकती है। हम धर्म निरपेक्षता की जब बात करेंगे तो सभी के प्रति समानता का भाव हो। धर्म का आधार है आस्था, श्रद्धा और विश्वास और सेक्यूलरिजम दर्शन। मनुष्य को ईश्वर ने विवेक दिया है हमें अपने कार्यो करते वक्त विवेक का प्रयोग करना चाहिए। किसी भी धार्मिक ग्रंथ में अगर कोई बात लिखी है तो उसका अंधविश्वास से न माने उस पर विवेक का प्रयोग को और उस बात का वर्तमान से सम्बंध देखे। सबको विकास के समान अवसर प्राप्त हो धर्म के आधार पर शासन ने कोई भेद नही किया। 
इस अवसर पर डॉ. जफर मेहमूद, डॉ.नीरज सारवान, डॉ. शोभा मिश्रा, डॉ. अंशु भारद्वाज, डॉ.लक्ष्मी मेहर, शोध छात्रा प्रीति जायसवाल, मंजू तिवारी, वर्षा चौऋषिया, देवदास साकेत एवं अनेक छात्र-छात्राऐं उपस्थित थे। 

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