मंत्री स्टॉफ को रोकना ‘क्राइटेरिया’ के बस में नहीं....दिनेश निगम ‘त्यागी’(वरिष्ठ पत्रकार)
राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’(वरिष्ठ पत्रकार)
मंत्री स्टॉफ को रोकना ‘क्राइटेरिया’ के बस में नहीं....
- लगभग हर बार जब भाजपा प्रदेश की सत्ता में आती है तो मंत्रियों का स्टॉफ चर्चा में रहता है। कई बार की तरह इस बार भी एक क्राइटेरिया तय किया गया कि पिछली सरकारों में शामिल मंत्रियों के स्टॉफ में जो अमला रहा है, उसे इस सरकार के मंत्रियों के स्टॉफ में नहीं रखा जाएगा। आमतौर पर ऐसा निर्णय आरएसएस की सलाह पर लिए जाने की बात कही जाती है। बाद में तय किया गया यह क्राइटेरिया ‘जी का जंजाल’ बन जाता है। मंत्रियों के स्टॉफ में रहने के आदी अधिकारी- कर्मचारी इतने ताकतवर हो जाते हैं कि उन्हें अलग-थलग रखना मुश्िकल हो जाता है। इस बार भी ऐसा हुआ। क्राइटेरिया लागू करने के चक्कर में मंत्रियों के यहां स्टॉफ की पदस्थापना नहीं हो पा रही। इसकी आड़ में मंत्रियों ने बिना सरकारी आदेश के अपनी पसंद का स्टॉफ रख लिया। शुरुआत दोनों पूर्व उप मुख्यमंत्रियों ने पसंद के पुराने स्टॉफ को रखने से की। लगभग 7 माह बाद अब अन्य मंत्रियों के स्टॉफ की भी अनुमति मिलने लगी। पुराने स्टॉफ को रखने के कुछ आदेश निकल भी चुके हैं। हालांकि अधिकांश छोटे कर्मचािरयों के हैं। अब भी कई मंत्रियों को स्टॉफ का इंतजार है। साफ है कि सरकार ने हथियार डाल दिए हैं। मंत्रियों के यहां या तो स्टॉफ नियुक्त नहीं हो पा रहा, हो रहा है तो पुराना ही। यदि यही होना है तो कोई क्राइटेरिया बनाने का क्या औचित्य?
‘संघ की सुरक्षा’ को लेकर लापरवाही ठीक नहीं....
- राजधानी के अरेरा कालोनी स्थित आरएसएस कार्यालय समिधा से सुरक्षा व्यवस्था हटाने का निर्णय चौंकाने वाला है। यहां वर्ष 2009 में अस्थाई चौकी बना कर एक- चार का सुरक्षा अमला तैनात किया गया था। जवान सड़क किनारे टैंट लगाकर 24 घंटे संघ कार्यालय की सुरक्षा में तैनात थे। अचानक ये अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर चले गए। पुलिस द्वारा बताया गया कि सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया गया। भविष्य में जब भी जरूरत होगी, फिर सुरक्षा व्यवस्था दे दी जाएगी। इससे साफ है कि संघ को अब सुरक्षा की जरूरत नहीं है। इसका अर्थ यह भी है कि राजधानी की कानून व्यवस्था चाक-चौबंद है। ऐसा तब माना जा रहा है जब राजधानी में सबसे पॉश इलाके सांसदों-विधायकों के रचना टॉवर में बदमाशों ने रिवाल्वर की नोक पर 12 लाख रुपए लूट लिए। इससे पहले बोर्ड आफिस के पास सवा 5 लाख रुपए की लूट हो गई। श्योपुर से भोपाल आए एक डिप्टी कलेक्टर को ही लूट लिया गया। बंग्लादेश को लेकर तनाव की स्थिति भी निर्मित है। ऐसे हालात के चलते कानून व्यवस्था को दुरुस्त नहीं माना जा सकता। संघ को सुरक्षा को लेकर निर्णय पर पुनिर्विचार करना चाहिए। हालांकि यह दायित्व संघ से ज्यादा सरकार का है। उसे संघ कार्यालय के सामने की सुरक्षा जारी रखना चाहिए।
दिग्विजय ने किन्हें कह दिया ‘आस्तीन का सांप’....?
- नागपंचमी के दिन ग्वालियर दौरे पर गए दिग्विजय सिंह के बयान ने एक नई बहस छेड़ दी। उन्होंने कहा, नागपंचमी पर आप नागदेवता की पूजा करिए, लेकिन आस्तीन के सांपों से सचेत रहिए। सवाल है कि उन्होंने आस्तीन का सांप कहा किसे? दिग्विजय ने यह बात ग्वालियर में कही, इसलिए इशारा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर हो सकता है। सिंधिया द्वारा समर्थक विधायकों के साथ पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ गई थी। निशाने पर इसी अंचल के दूसरे नेता राम निवास रावत भी हो सकते हैं। रावत ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। दिग्विजय के निशाने पर उनके ही अनुज लक्ष्मण सिंह भी हो सकते हैं। वे लंबे समय से कांग्रेस को आइना दिखाने का काम कर रहे हैं और दिग्विजय के खिलाफ खड़े नजर आते हैं। हालांकि यह सिर्फ कयास हैं। मौजूदा दौर में कांग्रेस में आस्तीन के सांपों की कमी नहीं है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान हजारों की तादाद में नेता- कार्यकर्ता पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुए हैं। नतीजा, विधानसभा चुनाव बाद सत्ता में आने का सपना देखने वाली कांग्रेस बुरी तरह हारी। लोकसभा चुनाव में उसे एक भी सीट नहीं मिली। दिग्वजय ने सच कहा, कांग्रेस को यदि बदतर स्थिति से उबरना है तो सबसे पहले आस्तीन के सांपों पर नजर रखना होगी।
लो.. कांग्रेस ने फिर करा ली अपनी छीछालेदर....
- इंदौर के शहर और ग्रामीण जिला अध्यक्षों को निलंिबत करने के कारण आलोचना के केंद्र में रही कांग्रेस इस मामले से पूरी तरह उबर भी नहीं पाई थी, और एक नए प्रकरण में अपनी छीछालेदर करा बैठी। इंदौर जिला अध्यक्षों को महज इसलिए निलंबित कर दिया गया था क्योंकि पार्टी कार्यालय पहुंचने पर उन्होंने प्रदेश सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का शिष्टाचार के चलते स्वागत कर दिया था। कैलाश दलगत राजनीित से ऊपर उठकर एक सामाजिक कार्य में कांग्रेस की मदद मांगने के उद्देश्य से गए थे। खास बात यह कि प्रदेश कांग्रेस ने दोनों अध्यक्षों से नोटिस देकर जवाब मांगा, लेकिन जवाब का इंतजार किए बगैर निलंिबत करने का भी निर्णय सुना दिया था। इसे लेकर कांग्रेस की जमकर फजीहत हुई। अंतत: पार्टी को दोनों का निलंबन वापस लेना पड़ा। अब पार्टी एक नए झमेले में फंस गई। कार्पोरेट कल्चर स्टाइल में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के खुलने और बंद होने का समय तय कर दिया गया। कार्यालय में बोर्ड लगाया गया ‘कार्यालय खुलने का समय, सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक और रविवार को अवकाश रहेगा।’ जैसे ही बोर्ड वायरल हुआ, भाजपा ने घेर लिया। मीडिया में आलोचना हुई। अंतत: कांग्रेस के दो प्रदेश प्रवक्ताओं ने ही बोर्ड तोड़कर फेंक दिया। अब उस नेता की खोज हो रही है, जिसके आदेश पर यह बोर्ड लगाया गया और पार्टी की फजीहत हुई।
आखिर, कैसी ख्याति अर्जित करना चाहती है कांग्रेस....!
- वजह अलग-अलग हैं लेकिन प्रदेश कांग्रेस इस समय है चर्चा में। अच्छी बात यह है कि पार्टी को मजबूत करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी अन्य नेताओं के साथ मिलकर प्रदेश भर में जंगी प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसा कर कार्यकर्ताओं को हताशा से उबारने और उनमें जान फूंकने की कोशिश हो रही है। चर्चा में रहने के इससे बड़े कारण पार्टी के कुछ अटपटे निर्णय और वरिष्ठ नेताओं के मर्यादा की सीमा लांघते बयान हैं। इंदौर जिलाध्यक्षों को निलंबित करने पर पार्टी फजीहत करा चुकी है। अब कांग्रेस के कुछ नेता बेतुके बयान देकर पार्टी को असहज कर रहे हैं। जैसे पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कह दिया कि अपने देश के हालात भी ऐसे बन रहे हैं कि जनता पीएम हाउस में घुस जाएगी। कांग्रेस के नेता जानते हैं कि भारत में यह संभव नहीं। फिर बंग्लादेश की आड़ में ऐसे बयान का क्या औचित्य? इसकी जमकर आलोचना हुई। महज आदिवासी दिवस पर अवकाश को लेकर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कह दिया कि भाजपा जहरीला काला सांप है जो आदिवासियों को डस रही है। भाजपा सरकार की नीतियों की आलोचना होना चाहिए लेकिन इस तरह का कथन मर्यादित नहीं माना जा सकता। चर्चा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह का लहार के मंच पर फूट-फूट कर रोना भी है। डॉ सिंह जैसा दबंग नेता भी रो सकता है, इस पर किसी को भरोसा नहीं होता। कांग्रेस को ही तय करना चाहिए कि उसे कैसी ख्याति अर्जित करना है?
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